साहित्य चक्र

19 October 2019

माना बहुत बिखरा हूँ मैं

" मैं अभी खुद से हारा नही"



माना बहुत कुछ खोया है मैंने,
पर में अभी हारा नही।
देख जिंदगी तेरे सितम से,
मैं अभी घबराया नहीं।


आ रहा हूँ दहाड़ देने,
तू जिंदगी रंजिष न कर।
मैं बस थक कर बैठा हूँ,
मैं अभी खुद से हारा नहीं।


माना बहुत बिखरा हूँ मैं,
पर इतना भी टूटा नही।
देख जिंदगी तेरे कहर से,
मैं अभी तक रूठा नहीं।


आ रहा हूँ खुद का वजूद ले कर,
तू जिंदगी इंतजार कर।
मैं बस थक कर बैठा हूँ,
मैं अभी खुद से हारा नही।


माना कोई साथ नही है,
पर खुद का साथ मैंने छोड़ा नहीं।
देख जिंदगी अकेले होकर भी ,
मैंने खुद का वजूद तोड़ा नहीं।


आ रहा हूँ एक जवाब बनकर,
तू जिंदगी स्वागत कर।
मैं बस थक कर बैठा हूँ,
मैं अभी खुद से हारा नही।


                                           ममता मालवीय

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