साहित्य चक्र

19 October 2019

उन्मुक्त पंछी

उन्मुक्त पंछी
उन्मुक्त गगन का पंछी हूँ
दूर कही जा
उड़ जाऊंगा।

लेकर तेरी यादों को संग
अंबर की छोर में
जा अकेला
कही छुप जाऊंगा।

ढूंढेंगी तेरी अखियां
तलाश करेगी
तेरे दिल की हर धड़कनें।

पर मैं तेरी
यादों की नाव ले
समुंदर की गहरी ओट में
कही जा छुप जाऊँगा।

तुम ढूंढगे मुझे
टूटी हुई
अपनी हर अनुभूति में।

तुम तलाश करोगें मुझे
बिखरी हुई
अपनी हर अभिव्यक्ति में।

पर मैं तुम्हें मिलूंगा
उस अनंत ईश्वर की
अब छोर में।

क्योंकि तुमने
मुझे छोड़ दिया था
जीवन के हर मोड़ में।


                                      राजीव डोगरा


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