रह गया नि:शेष
खूब अन्याय,
खूब लूट!
खूब नाम !
खूब ख्यात !
आखिर वही
दो गज़ जमीन !
छोडा क्या?
कुछ नहीं
रह गया नि:शेष
अबलाओं की आह
गरीब की राह
झूठे प्यार के दस्तावेज
झूठी दलीलों की दीवारें
और क्रुर चित्कारे
हा....मिलेगी
जरूर दो गज़ जमीन
जो मिली है
हमसे पहले जिन्हे....
और...
उनसे एक प्रश्न करना
जीवन क्या है?
जीवन की कामनाओं,झूठी लालच
का अंतिम निष्कर्ष क्या है?
या पुछना
कि हम मृत है या जीवित?
पर छोड़ता नहीं
मोह...
हा....मोह
जिसमे जकड़ लिया है
पकड़ लिया है
काल ने
ग्रसित कर लिया है
डॉ०नवीन दवे मनावत
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