भारत विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं का देश है। यहां हर राज्य अपनी सांस्कृतिक और पर्वों के लिए जाना जाता है। हर राज्य की पहचान वहां की संस्कृति और तीज-त्योहारों से होती है। उत्तर भारत के राज्यों में गणेश विसर्जन नहीं होता है। मगर टेलीविजन और डिजिटाइजेशन होते समाज ने एक-दूसरे राज्यों के तीज-त्योहारों को मनाना शुरू कर दिया है।
इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव हैं। अगर सकारात्मक प्रभाव की बात करें तो इससे अलग-अलग संस्कृतियों में बंटा भारत धीरे-धीरे सांस्कृतिक तौर पर एक बन सकता है। यानी सांस्कृतिक और क्षेत्रवाद की भावना कम होगी। जैसे दक्षिण भारत में उत्तर भारतीयों के साथ और उत्तर भारत में दक्षिण भारतीयों के साथ जो भेदभाव होता है, वह धीरे-धीरे कम होगा। मगर हमें यह ध्यान देना होगा कि अन्य राज्यों के बड़े त्योहारों के चक्कर में किसी दूसरे राज्य के लोकपर्व खत्म ना हों। उदाहरण के लिए दुर्गा पूजा, छठ पूजा, करवा चौथ और गणेश चतुर्थी जैसे बड़े और अलग राज्यों के त्यौहार उत्तर भारत के उत्तराखंड, हिमाचल और अन्य राज्यों के लोक पर्वों पर हावी हो रहे हैं।
हर राज्य के तीज-त्योहारों का महत्व वहां की भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर हैं। जैसे महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी सबसे बड़ा और लोकप्रिय पर्व है। इस पर्व में भगवान गणेश को 10 दिनों के लिए घर में स्थापित किया जाता है और उसके बाद समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है। इस पर्व के पीछे विभिन्न धार्मिक मान्यताएं हैं। अगर उत्तर भारत (उत्तराखंड और हिमाचल) की बात करें तो उत्तर भारत में गणेश पूजा शुभ कार्यों और दीपावली के मौके पर की जाती है। उत्तर भारत में गणेश विसर्जित विवाह, जनेऊ आदि शुभ कार्यों के बाद किया जाता है। मगर वह गाय के गोबर से बना गणेश होता है, जिसे शुभ अवसर पर स्थापित किया जाता है। इसके अलावा उत्तर भारत में भगवान गणेश हमेशा विराजमान रहते हैं।
आधुनिकता के कारण आज कई राज्यों के लोक पर्व और स्थानीय संस्कृति खत्म होने की कगार पर आ गई हैं। आज संपूर्ण भारत में जन्मदिन, शादी की सालगिरह जैसे विभिन्न शुभ अवसरों को मनाने की परंपरा चल रही हैं, जो कभी भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं थी। भारत विभिन्न संस्कृतियों का देश है और सभी संस्कृतियों को जीवित रखना ही भारत की पहचान है। भारत लोकतांत्रिक देश है, इसलिए सभी नागरिकों को अपने-अपने अनुसार तीज-त्यौहार मनाने की आजादी है। मगर हम सभी का कर्तव्य हैं कि हम अपने पूर्वजों की भाषा-बोली और राज्य की संस्कृति को जिंदा रखें।
हमें सिर्फ देखा-देखी और भेड़चाल नहीं चलनी चाहिए। ऐसा करने से विभिन्न राज्यों की संस्कृति और सभ्यता का पतन हो सकता है। इसलिए हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता को बचाएं रखने के लिए दूसरे राज्यों और दूसरी संस्कृति को अपनाना के साथ-साथ में अपनी संस्कृति और रीति-रिवाजों का भी संरक्षक बना होगा। दूसरी संस्कृति को भी तभी अपनाएं जब आपको उस संस्कृति के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी हो। सिर्फ बाहरी नकल करने से उस संस्कृति का भी अपमान होता है। इसलिए हमें सर्वप्रथम अपनी संस्कृति, बोली-भाषा और रीति-रिवाज को जिंदा रखना चाहिए।
- सुमन डोभाल काला
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