साहित्य चक्र

09 September 2024

संजय एम. तराणेकर जी पांच कविताएँ



मिच्छामी दुक्कड़म

आओ मिटाए जाति, धर्म का भेद,
अपनी गलतियों पर व्यक्त करें खेद।
ये दो शब्द "मिच्छामी दुक्कड़म"
विशेष हैं सभी को याद रहे हरदम।
ज़ब शब्दों, कर्मों या विचारों से,
हुई हो किसी भी प्रकार की पीड़ा।
गलती से भी पैरों में आकर, 
अस्तित्व से मिट गया हो कोई कीड़ा।
इस पवित्र अवसर पर हृदय से,
उन सभी से क्षमा मांग उठाओं बिड़ा।
करो त्याग अहंकार की भावना,
कर लो सच्चे मन से क्षमा की कामना।
सच्ची शांति और सुख संभव तभी,
करों एक-दूजे को क्षमा का साहस सभी। 
दिलों में प्रेम और करुणा का हो भाव,
जलाओ ज्योत प्रेम की हर-घर में हो छांव।

*****


उम्मीदवार और टिकट 

हरियाणा के उम्मीदवार,
कह रहे हैं शान से। 
टिकट मिले ना मिले, 
लड़ेंगे की जान से।  
आलाकमान जो चाहे, 
अब वह नहीं होगा। 
हम जो भी कहेंगे, 
अब वही सही होगा। 
देख रहे हैं राह,
मिलेगा हमको टिकट? 
नहीं मिला हमको तो,
परिस्थिति होगी विकट।  
विरोधी पार्टी से मिल,
हम सुलझा लेंगे संकट। 
जब जीतेंगे चुनाव,
तब कहलाएंगे विधायक। 
हो जाएंगे तब हम,
सब मंत्री बनने लायक।

*****


लो आया तीज का त्यौहार

लो आया तीज का त्यौहार,
सखियों हो जाओ तैयार।
आओ करें सोलह श्रृंगार,
पाए खूब पति का प्यार।
बढ़ाओ माथे की चमक,
लगा लो गोल बिंदियाँ।
आज तो न आएगी निंदिया।
लो आया तीज का त्यौहार,
सखियों हो जाओ तैयार।

जिनमें हो चूड़ी की खनक
छमा-छम पायल की झनक।
रचाओं मेहंदी हाथों में,
चाहे न सूखे बरसातों में।
पिया भले न ले जाए लंदन,
ये मजबूत हैं स्नेह बंधन।
लो आया तीज का त्यौहार,
सखियों हो जाओ तैयार।

आओं झूलों पर खूब झूले,
आज आसमान को छू लें।
करूँ स्थापित शिव और गौरा,
पूजूँ सुहाग का सिन्दूरहोरा।
चले मंदिर करें शिव दर्शन,
हो अमर सुहाग रहें आकर्षण।
लो आया तीज का त्यौहार,
सखियों हो जाओ तैयार।

*****


हे द्रौपदी !

हे द्रौपदी !
तुम्हें तो कोई छू भी नहीं सकता। 
फिर भी तुम्हें डर है,
उन हैवानों का, उन नर पिशाचों का।
जिनसे बेटियों की आबरू,
अंदर तक काँप गई है।
आपने कहा "अब बहुत हो चुका।"
क्या, इन दरिंदों से लड़ पाओगी?
न्याय के झंडे को ऊंचा कर पाओगी?
चिंता बड़ी गहरी है। अफ़सोस...
लेकिन उस पर कोई प्रहरी नहीं है।
डर समझ में आता है।
मुझे तो हर बार,
एक सपोला नजर आता है।
जो झुंड बनाकर आता है,  
कोमल शरीर का जर्रा-जर्रा
अंदर तक काँप जाता है?
बस, कुचलना है उसका फन,
आत्मा भी पूछ हिलाते फिरेगी।
इन सपोलों में "डर" बिठाना है,
वासना की आग को 
हमेशा के लिए मिटाना हैं।
हे द्रौपदी!
बस एक बार मन में ठान लेना,
फिर कभी कोई सपोला,
तुम्हें छू भी नहीं सकता। 

*****


अहसांस आस-पास 

किसी का होना इतना आसाँ नहीं। 
जब ख़ुद की ही कोई पहचान नहीं।

तुम्हें तो डूब के करना होगा प्यार।  
बिन इसके अपना जीना है बेकार। 

चाहे हो जाए कितनी भी तकरार।  
एक-दूजे पर कभी ना करना वार।

खूब खाओ कसमें निभाओं रसमें। 
जमाने को करलों अपने ही बस में।

एक तू है जिसका मुझे अहसांस है। 
ऐसा लगता है तू मेरे आस-पास है।


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