महात्मा गांधी की पत्रकारिता शैली एवं दर्शन आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी आजादी के अनुभूति है। अगर समाचार पत्रों में भाषा का स्तर गिर रहा है तो इसके पीछे महात्मा गांधी द्वारा अपनाई गई भाषा की शुद्धता एवं सरोकार के मुद्दों का आभाव है। महात्मा गांधी की नजर में पत्रकारिता का उद्देश्य राष्ट्रीयता और जन जागरण था। वह जनमानस की समस्याओं के मुख्यधारा की पत्रकारिता में रखने के प्रबल पक्षधर थे। शब्द किसी हथियार से कमतर नहीं है। इन्हीं को ध्यान में रखकर महात्मा गांधी अपनी पत्रकारिता करते थे। उनकी राय में पत्रकारिता एक सेवा है। पत्रकारिता को कभी-भी निजी हित या आजीविका कमाने का जरिया नहीं बनना चाहिए। उन्होंने अपनी पत्रिका का प्रसार बढ़ाने के लिए किसी गलत तरीके का इस्तेमाल नहीं किया, ना ही कभी दूसरे अखबारों से स्पर्धा की। अंग्रेजी का अखबार निकालने में उनकी कोई विशेष रुचि नहीं थी। उन्होंने हिंदी और गुजराती में नवजीवन के नाम से नया प्रकाशन शुरू किया। इनमें वे रोजाना लेख लिखते थे। उनके अखबारों में कभी-कोई सनसनीखेज समाचार नहीं होता था। वे बिना थके सत्याग्रह, अहिंसा, खान-पान, प्राकृतिक चिकित्सा, हिंदू-मुस्लिम एकता, छुआछूत, सूत काटने, खादी, स्वदेशी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और निषेध पर लिखते थे। वे शिक्षा व्यवस्था के बदलाव और खानपान की आदतों पर जोर देते थे।
गांधी जी का मानना था कि जब बाजार की सभी लाठियां और चाकू बिक गए तो एक पत्रकार यह अनुमान लगा सकता है कि दंगे होने वाले हैं। एक पत्रकार की जिम्मेदारी है कि वह लोगों को बहादुरी का पाठ सिखाए, ना कि उनके भीतर भय पैदा करे। गांधी जी ने कभी-भी कोई बात सिर्फ प्रभाव छोड़ने के लिए नहीं लिखी, न ही किसी चीज को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया। उनके लिखने का मकसद था, सच की सेवा करना, लोगों को जागरुक करना और अपने देश के लिए उपयोगी सिद्ध होना। वे लोगों के विचारों को बदलना चाहते थे। भारतीयों और अंग्रेजों के बीच मौजूद गलतफहमियों को दूर करना चाहते थे। उन्होंने कहा था कि मैंने एक भी शब्द बिना विचारे, बिना तौले लिखा हो या किसी को केवल खुश करने के लिए लिखा हो अथवा जान-बूझकर अतिशयोक्ति की हो, ऐसा मुझे याद नहीं पड़ता। उनके प्रतिष्ठित पाठकों में भारत में गोपाल कृष्ण गोखले, इंग्लैंड में दादाभाई नौरोजी और रूस में टॉलस्टॉय शामिल थे। उन्हें यह बात बताने में गर्व का अनुभव होता था कि नवजीवन के पाठक किसान और मजदूर हैं, जो कि असली हिंदुस्तानी है।
गांधीजी की पत्रकारिता का सफर अफ्रीका से शुरू होता है। वहां पर एक कोर्ट परिसर में गांधी जी को पगड़ी पहनने से मना कर दिया गया और कहा गया कि उन्हें केस की करवाई बिना पगड़ी के ही करनी होगी। जिसके कारण गांधी जी को अपनी पगड़ी को कोर्ट परिसर में ही उतारनी पड़ गई। अगले ही दिन गांधीजी ने डरबन के स्थानीय संपादक को पत्र लिखकर इस मामले पर अपना विरोध जताया। विरोध के तौर पर लिखी गई उनकी चिट्ठी को अखबार में जस का तस प्रकाशित किया। यह पहली बार था जब गांधी जी का कोई लेख अखबार में प्रकाशित हुआ था। इस प्रकार से गांधी जी की पत्रकारिता का सफर एक दुखद परिस्थिति से शुरू होती है। इसके बाद शायद गांधी जी को यह बात समझ में आ गई थी कि पत्र-पत्रिकाएं ही वह माध्यम है जिसके द्वारा अपनीं बातों को लोगों तक आसानी से पहुंचा सकते हैं। इसके बाद गांधी जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब वह अपनी बातों को लोगों तक पहुंचाने के लिए लेख के रूप में पत्र-पत्रिकाओं में छपवाने लगे।
सन 1888 से लेकर 1896 तक का समय गांधी जी के पत्रकारिता के संपर्क में आने और स्थापित होने का समय कहा जा सकता है। गांधी जी अखबारों के नियमित पाठक 19 साल की उम्र में इंग्लैंड पहुंचने के बाद बने। 21 साल की उम्र में उन्होंने 9 लेख सरकार के ऊपर एक अंग्रेजी साप्ताहिक वेजिटेरियन के लिए लिखे। दक्षिण अफ्रीका पहुंचने पर गांधी जी ने भारतीयों की शिकायतों को दूर करने और उनके पक्ष में जनमत जुटाने के लिए समाचार पत्रों में लिखना शुरू किया। जल्द ही उन्होंने भारतीय समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष करने हेतु पत्रकार बनने की आवश्यकता महसूस हुई और अफ्रीका में ही उन्होंने अपने संपादकत्व में इंडियन ओपिनियन नामक साप्ताहिक पत्र निकाल दिया। उस दौर में उन्होंने इस अखबार को पांच भारतीय भाषाओं में प्रकाशित किया। गांधी जी ने अपनी साहित्यिक प्रेम को भी बखूबी तौर से निभाया और कई दशकों तक साहित्यिक लेखक और पत्रकार के रूप में कार्य किया तथा कई समाचार पत्रों का संपादन भी किया। महात्मा गांधी ने उस समय में जब भारत में पत्रकारिता अपने शैशव काल में थी, पत्रकारिता की नैतिक अवधारणा प्रस्तुत की। गांधी ने जिन समाचार पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन अथवा संपादन किया, वह अपने समय में सर्वाधिक लोकप्रिय पत्रों में माने गए, जिनको जानना आज के युवा पीढ़ी के लिए बहुत जरुरी हो गया है।
भारत आने पर युवा भारत के संपादकीय दायित्व को भी संभाला और साथ ही यंग इंडिया और नवजीवन का संपादन भी शुरू किया। 1893 में गांधी जी ने हरिजन बंधु और हरिजन सेवक को क्रमश: अंग्रेजी, गुजराती और हिन्दी में शुरू किया। इन पत्रों के माध्यम से उन्होंने अंग्रेजों पर आंदोलन का संचालन किया। गांधीजी ने चार दशकों के पत्रकारिता काल में कुल 6 पत्रों का संपादन किया। उन्हें समाचार पत्रों का प्रकाशन कई बार बंद करना पड़ा, लेकिन वे ब्रिटिश सरकार की नीतियों के आगे झुके नही। गांधी जी की गिरफ्तारी हुई और उनके पत्र बंद हुए लेकिन मौका मिलते ही उनके प्रकाशन में जुट जाते थे। गांधीजी सबसे महान पत्रकार हुए हैं।
- डॉ. नन्दकिशोर साह
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