सोशल मीडिया को भारत में आए हुए करीब 17 या 18 साल हो गए हैं। 2014-15 के बाद से भारत में सोशल मीडिया का एक अलग ही नशा चढ़ा जो भारतीय समाज से उतारने का नाम ही नहीं ले रहा है। सोशल मीडिया आज पूरे विश्व के लिए एक मुसीबत बन गई है। इसके प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न देशों ने अपने देश में अलग-अलग कानून और नियम बनाए हैं। सोशल मीडिया के प्रभाव को देखते हुए अब भारत में भी सोशल मीडिया को लेकर कठोर कानून बनाए जाने की जरूरत है।
सोशल मीडिया का जितना अच्छा प्रभाव है, उतना ही नुकसान भी है। पिछले कुछ सालों में सोशल मीडिया के कारण कई ऐसे केस सामने आए हैं, जो हमारे समाज के लिए चिंताजनक या फिर खतरनाक है। इसके अलावा इन दिनों युवाओं और महिलाओं से लेकर हर किसी में सोशल मीडिया के जरिए लोकप्रिय होने की होड़ मची हुई है। इसके लिए लोग विभिन्न प्रकार की हरकतें करते हुए दिखाई दे देते हैं। उदाहरण के लिए- महिलाओं का अंग प्रदर्शन करना और युवाओं का जान को जोखिम में डालकर वीडियो बनाना आदि। इनके अलावा कई ऐसे उदाहरण हैं जो हमारे समाज के लिए कैंसर का काम कर रही हैं।
आज सोशल मीडिया पर देश का लगभग हर युवा अपना वक्त बर्बाद कर रहा है। चाहे वह घंटों रील देखना हो या फिर चैट करना या इत्यादि वीडियो देखना हो। सोशल मीडिया के आने के बाद से विभिन्न प्रकार की बीमारियां भी हमारे समाज में बढ़ी हैं जैसे- डिप्रेशन और आंखों का कमजोर होना इत्यादि। भारत की जनसंख्या 140 करोड़ से अधिक है और हर देश भारत का डाटा इकट्ठा करना चाहता है। अगर सीधे शब्दों में कहूं तो अमीर देशों द्वारा डाटा के माध्यम से हमें मानसिक गुलाम बनाया जा रहा है। आज हम अपने फोन के सामने अगर कुछ खरीदने को लेकर बात करते हैं तो हमें हमारे फोन में उस चीज के विज्ञापन दिखाई देने लगते हैं। क्या यह मानसिक गुलामी का संकेत नहीं है ? मेरा मानना है यह मानसिक गुलामी का संकेत नहीं बल्कि मानसिक गुलाम हमें बनाया जा चुका हैं।
बतौर भारतीय नागरिक हम सभी को इस पर विचार करना चाहिए कि सोशल मीडिया हमारे जीवन और समाज के लिए कितना जरूरी है ? और हम सोशल मीडिया में अपना कितना समय बर्बाद कर रहे हैं ? इसके इस्तेमाल से हमें क्या फायदे और क्या नुकसान हो रहे हैं ? क्या जीवन का मकसद सिर्फ लोकप्रिय होना रह गया है ?
- दीपक कोहली
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