साहित्य चक्र

09 September 2024

कविता- मैं कागज



मैं कागज़ तू मेरी स्याही ज़रा
टांक दे मुझको, आसमां में यहां
करवटें बदलता मैं, दिन रात की तरह
मिलता हूं तुमसे, उलझी बात की तरह
जो ख़्वाब पिरोए सांझ के तन पर
वो खिलते हैं कैसे चांदनी के मन पर
मैं कागज़ तू मेरी स्याही ज़रा
टांक दे मुझको, आसमां में यहां
तकिए के सिरहाने कोई सो रहा
मुझको लगा था तूने कुछ कहा
दर्पण भी मुझको टोकने लगा है
ख़्वाब कोई भीतर जैसे चल रहा
खोया है मुझमें, नींद का जिक्र
निगाहों में तैरती मेरी ही फिक्र
मैं कागज़ तू मेरी स्याही ज़रा
टांक दे मुझको, आसमां में यहां

- अनुभूति गुप्ता


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