जन्म से आज तक 60 वर्ष यानि 21900 दिन गुजर गए जिसमें कई बार ज़िंदगी से खफा होकर मैं जीते जी कई बार मरा हूँ। दुनिया में कोई भी हो अधिकांश के साथ जीवन छल करता है ओर वे अपने में पूरी तरह टूट कर खुद को मरा हुआ मानते है, पर वे मरते नहीं। कारण, मृत्यु तो एक बार ही आती है ओर खूब झूमती हुई, इठलाती हुई सामने खड़ी अट्टहास करती है, जब मृत्यु आती है तो घर के आँगन में खड़ी होकर हँस हँस कर सिर्फ एक बार ताना कसती है कि जल्द से कुछ पलों में अपने घर परिवार के नातेदारों –रिस्तेदारों से ममता की जंजीरों को तोड़ मेरे साथ चलने को तैयार हो जाओ।
मृत्यु का आना यानि एक नागिन के दांतों के बीच साँसों की डोर का होना है ओर मरने वाला मृत्यु को देख अपने होशोहवाश खो देता है, वह किसी से भी अपनी व्यथा नही कह पाता ओर अपने दिल की ज्वाला में धधकता हुआ शांत हो जाता है, सदा के लिए एक तस्वीर बनकर दीवाल पर टँगने के लिए, ये जो 60 वर्ष की मैं बात कर रहा हूँ , वह कम या ज्यादा हो सकता है जिसमें मौत के आने के बाद शरीर सबसे बंधनमुक्त हो जाता है। मेरे अपने जीवन के 60 वर्ष सुख दुख में, स्नेह बांटते प्यार को तरसते, छोटे बड़े भाइयों सहित परिवारजनों का तिरष्कार, अपमान ओर अन्याय की चक्की में पिसते हुये, उन्हे रूठने मनाने में गुजार दिये पर वे रिश्तो को तोड़कर अपनी मस्ती में रहे। मैं जानता हूँ की वे तीस साल यानि आधी उम्र के 10950 दिन अकड़ में जिये, पर उनकी अकड़ की गांठ खुलती ही नहीं की अचानक मृत्यु ने मुझे अपनी गोद की शरण दे दी। बरसों बाद परम शांति महसूस हुई जब मौत की सुहानी गोद में मुझे गहरी मीठी नींद में सुला दिया अब ये आंखे सदा सदा के लिए बंद हो गई ओर पलक झपकते ही दुनिया के सारे नाते रिश्तो के बंधनो के मुक्ति मिल गई ।
इधर मेरे मरने की खबर जैसे ही लोगों के पास पहुंची कुछ जागरूक समाजसेवी सक्रिय हो गए ओर कब प्राणान्त हुये, क्या कर रहे थे, क्या बीमार थे, आखिरी शब्द क्या थे उनका अंतिम संस्कार कब होगों किस घाट पर होगा आदि जानकारी लेकर उसे सोसल मीडिया पर मेरे फोटो के साथ पोस्ट करना शुरू कर दिया की बड़े दुख की बात है हमारे भाई पत्रकार आत्माराम यादव हमारे बीच नही रहे उनका अंतिम संस्कार फला घाट पर इतने बजे किया जाएगा ओर लोग सामान्य घटना की तरह हमदर्दी जताकर मृतक आत्मा की शांति हेतु संवेदना व्यक्त कर दुख जाहीर करेंगे। जिनके मन में मेरे प्रति भावनात्मक जुड़ाव होगा वह सीधा शव को कंधा देने घर पहुचेगा जिसकी साक्षी यह देह नहीं किन्तु मेरे शरीर के प्रति मोह न छोड़ पाने वाली सूक्ष्म आत्मा अवश्य दर्शक दीर्घा में खड़ी होगी जो घर से शव ले जाने के साथ आखिरी समय तक की तमाशवीन होगी।
मेरी सूक्ष्म आत्मा मेरे जन्म से मौत तक की साक्षी रही है वह एक एक घटना को देखकर मेरा मूल्याकन मुझसे कराएगी ओर मेरे सामने हर घटनाक्रम जीवित हो उठेगा कि मैं अपने इस जीवन में अपनी भुजाओ की पूरी ताकत लगाने के बाद, जी भरकर समाचार,लेख, व्यंग्य आदि लिखते हुये इतना नही कमा सका की बच्चों को घर बनवा सकूँ, मैंने बच्चो को पढ़ाने लिखाने में अपने सपने न्योछावर किए, बच्चों के सपनों के आगे में हमेशा बौना ही रहा। अब जबकि मौत की गोद में पहुचा तब मुझे बहुत ख्याल आए कि अब तक मुझसे मेरे भाइयो से प्रेम करने में कहाँ चूक हुई जबकि मेरा हृदय सदैव उनके लिए पूर्ण समर्पित रह उनके साथ अपने सुख दुख बाटने के लिए तड़फता रहा था। मेरे बेटे नादान है, वे मेरे विषय में जो धारणा रखे मैं उन्हे दोष नहीं दूंगा , पर बेटी के लिए सिर्फ पढ़ाई के अलावा कुछ न कर पाने की मेरे दिल में गहरी वेदना रही है, अगर में अपने बच्चों को आसमान कि ऊंचाइयों तक पहुचाकर अपरिमित धन दे सकता तो शायद वे मुझे योग्य पिता मान लेते, न माने तो भी वे मेरे दिल के टुकड़े ही रहेंगे, हा बेटी जब अपने लक्ष्य पर पहुँच जाये तो वह मेरी मेलआईडी के पोस्ट किए सारे लेखों को पुस्तक का स्वरूप देने के अलावा लिखी चारों पुस्तकों को सभी तक पहुंचाने हेतु बेटों से ज्यादा सजग है। परिवार में ओर भी सदस्य है, विशेषकर बड़े घर में बड़ी भाभी, बहू सीता जैसी परीक्षा किसी ने नही दी, जो सक्षम है वे रिश्तों से बहुत दूर है, उनके लिए उनका अपना संसार ही सब कुछ है, बाकी उनके अपने उनके लिए कुछ नहीं। अरे ये क्या मृत्यु कि गोद में भी मोह ममता का बुखार आ गया जबकि यह शरीर मृत्यु के हवाले हो जाने से मृत हो गया है ओर अब लोग जल्द इस शरीर को यहा से हटाने कि तैयारी में जुटने लग गए।
घर के अंतपुर में रोने कि आवाज तेज हो गई है, सभी मेरे मृत शरीर से उमड़ पड़ रहे है ओर ताने दे रहे है कि आखिर हमे भी साथ ले जाते, किसके भरोसे छोड़ जा रहे हो, हम आपके बिना जी के क्या करेंगे, हमे भी साथ ले चलो। हे भगवान कितने निर्दयी हो, हमे क्यो नहीं ले गए, इनकी जगह हमे ले जाते तो अच्छा होता.... बगैरह बगैरह । ये जितने भी मेरे शव पर रोने वाले चीख चीख कर दिखावा कर प्रेम दिखा रहे है वे सब दिखावटी है मेरे घर परिवार के सदस्य जो मोह दिखा रहे है, उनका मोह मैं जानता हूँ इसलिए अब इनके द्वारा मेरे शव को श्मशान ले जाने कि तैयारी हो गई है । मैं अपने शव के इर्द गिर्द देख रहा हूँ, जिस घर में जिस परिवार के साथ मैंने कई साल गुजारे वह घर अब मेरा नहीं रहा, जिस बस्ती में मेरा घर है उस बस्ती से मैं उजड़ गया,यानि अब बह बस्ती मेरे लिए घर नहीं रही थी, मुझे मौत अपने साथ ले गई ...जहा मौत हो वह बस्ती क्यो कहलाती है , यह मेरी आत्मा सोच रही थी । जहा सभी कि शान बराबर हो वह शमशान भूमि जहा से कभी किसी के लौटा कर नही ले जाते वह अब मेरी हो गई है जहा पर चिता की मृदुल गोद मुझे चिर-विश्राम देगी। अब जबकि आप सभी जान गए कि मेरा अवसान हो गया तब एक प्रश्न उनसे जरूर करूंगा कि मैं जब जीवित रहा तब कभी भी आपने मेरी कुशल नही पूछी, जिस भाई भतीजों को चाहा वे घर से घर लगा होने के बाद घर के सामने से ऐसे बिना बोले निकलते थे मानों मैंने उनका सर्वस्य छिन लिया है। मैंने अपने जीवन काल में जिसे कभी जाना नहीं पहचाना नहीं, जिससे मेरी दोस्ती नहीं वह भी तब मेरे विषय में इस प्रकार दुष्प्रचार करता रहा जैसे सच में मैंने उसके घर का चीर हरण किया हो, आखिर मुझे सदमार्ग पर चलने के लिए जीते जी यह संत्रास क्यो झेलना पड़ा। यह अलग बात है कि इसी प्रकार के लोग मृत्यु के पश्चात मेरा सम्मान करने कि प्रतिस्पर्धा करेंगे, जिसे मैं देख नहीं पाऊँगा। मेरी आंखे मुँदने के बाद मेरी मृत्यु पर मुझे अंतिम क्रिया हेतु आज शाम से पहले ही ले जाने का निमंत्रण भी दिया जा चुका है अर्थात पंचायती हंका करा दिया गया है जिससे लोग घर पर जुटने लगे है। जो भी मेरी मौत की खबर सुनता,कहता विश्वास ही नहीं हो रहा कि आखिर अचानक यह कैसे हो गया।
मरने से पहले मैं एक सामान्य आम आदमी रहा हूँ जिसके प्राणों में क्या चलता रहा इसे कोई समझ नहीं सका मेरे मन को मेरे हृदय को जब मेरे भाई नहीं समझ सके तो फिर दुनियादारी के किसी ओर रिश्ते से क्या उम्मीद करता। मैंने सभी के गंभीर से गंभीर कष्टों को झेला है, जब जीवन भर गलतिया करके मेरे भाई गल्तियो को स्वीकारने की ताकत नही जुटा सके तब उन्हे एहसास कराने हेतु में दिल की गहराइओ तक तड़फकर क्षमा कर देता, मेरी इन कमजोरिया को मेरे भाइयों ने अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया । कई रातों में जागते हुये लेखन चिंतन मनन ओर साधना करते मुझे लगा जैसे विधाता मेरे विचारों में इस प्रलय का सामना करने का बल दे रहा है ओर मैं अपने भाइयो के लिए किसी बल की ढाल से सुरक्षा नही चाहता था। मैंने माता ओर पिता का एकांतवास देखा है, जिन्होने अपने खून पसीने से सींचा वे बेटे उनके नहीं हो सके तो मैं उनके सामने किस खेत की मुली था, आश्चर्य होता है की मेरे इन भाइयों को क्या चोदह भुवन का राज्य मिल गया था या तीनों लोकों के वे राजा हो गए थे जिनके समक्ष माँ ओर पिता तिरस्कृत हो जाये ओर उनकी ममता का मूल्य उनसे ज़िंदगी भर की दूरी बनाकर दे ओर अपना स्वार्थ निकालने के लिए ही उन्हे याद किया जाय ये सारी बाते मेरे आत्मा के सामने आ जा रही थी जब घर से मेरे शव को शमशानघाट लेकर जाया जा रहा था ओर मैं जीते जी राम नाम सत्य है, यह सत्य से दूर रह किन्तु मेरे शव को सुनाने के लिए लोग रास्ते भर कहते जा रहे थे, सब शमशान घाट का वह चबूतरा आ गया जहा मेरे शव को एक मिनिट रोककर , मृत्युकर चुकाकर कंधे बदले जाकर चिता पर लिटाया गया।
युगों से निरंतर यही चला आ रहा है कि जिसकी आयु पूरी हो जाये उसे मरना है, यही कारण है कि इस धरती पर कोई भी वीर महावीर, अवतार तक नहीं रुक सका ओर पानी के बुलबुला के तरह मिटकर वह चला गया तब यदि मैं मर गया तो कोई अजूबा नहीं हुआ। जग में जिसने जन्म लिया है उसे मरना पड़ा है,आज मैं मर गया तो इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है आखिर कभी तो मरना था। जगत के लोगों ने मेरे साथ कैसा व्यवहार किया या मैंने अपने प्राणों में उठी उमंगों को कुचलकर क्षितिज कि ऊंचाइयों तक क्यो नही पहुँच सका यह मेरे प्रारब्ध के किसी श्राप या बददुआ के कारण हो सकता है, वरना इस जीवन में सभी से वरदान ही मिला था जो कुछ कमाए बिना लोगो से मांगचुंगकर हंसी खुसी जीवन निकल गया। हाँ अब शमशान में मेरी चिता को अग्नि में देने के बाद मेरी कपालक्रिया तक बैठकर या जब भी मेरी याद आए तब मेरी कथनी करनी से लेकर मेरी उपेक्षा, मान, निंदा स्तुति का मुरब्बा तैयार कर अपने-अपने हिसाब से मसाला मिलाकर अपनी श्वासों के कारागार में मुझे बंदी बना सकते हो या मेरे जीवन भर का आँसुओ पर पत्थर बन मुझ अभागे को कोस कर अपनी भड़ास निकल सकते हो , पर ऐसी बहदुरी करने का साहस न कर सभी लोग खाक हो चुके मेरे शव को लकड़ी दे परिक्रमा कर वही शोकसभा आयोजित करके मेरे परिजनो को मेरे न रहने का दुख सहन करने कि ताकत परमात्मा दे, ये कोरे शब्द किसी नसेलची के किए गए नशे की खुराक की तरह बोलकर चल दोगे। कोरे अर्थात खाली, शून्य तिक्त ... ये शून्य तिक्त शब्द अर्थहीन है ,क्योकि इन्हे सिर्फ आपके होंटों ने छुआ है ये हृदय की गहराइयों से निकले शब्द नहीं है।
मेरा शरीर शमशान मे खाक हो चुकने के बाद मेरे जीवन के जुड़े मेरे प्रसंगो को याद कर लोगों को सुनकर मुझे श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। जिसे मेरे जीते जी संपर्क में जो अच्छाई या बुराई मुझमे दिखी वह दुख से साथ याद कर मेरी याद को जिंदा रखने के लिए अपने अपने प्रयास करेगा ओर अधिकारियों से मांग कर ज्ञापन सौपेगा ओर फोटो के साथ समाचार पत्रों में छपवाएगे। मेरी आत्मा मेरे मरने कि सभी शोक सभाए सुनती, किन्तु मेरे स्वजन जिनकी दी गई व्यथा की आग में दिनरात घुल-घुल कर मेरी मौत हुई यह बात की मेरी आत्मा अकेली साक्षी रही है ओर वह गवाही देने तो आएगी नहीं, हा पंद्रह दिन एक महीने बाद मेरा जिक्र ही समाप्त हो गया ओर जैसे मेरे पैदा होने से पहले दुनिया चल रही थी, मेरे मरने के बाद भी वैसे ही दुनिया चलती रहेगी॥
- आत्माराम यादव पीव
इधर मेरे मरने की खबर जैसे ही लोगों के पास पहुंची कुछ जागरूक समाजसेवी सक्रिय हो गए ओर कब प्राणान्त हुये, क्या कर रहे थे, क्या बीमार थे, आखिरी शब्द क्या थे उनका अंतिम संस्कार कब होगों किस घाट पर होगा आदि जानकारी लेकर उसे सोसल मीडिया पर मेरे फोटो के साथ पोस्ट करना शुरू कर दिया की बड़े दुख की बात है हमारे भाई पत्रकार आत्माराम यादव हमारे बीच नही रहे उनका अंतिम संस्कार फला घाट पर इतने बजे किया जाएगा ओर लोग सामान्य घटना की तरह हमदर्दी जताकर मृतक आत्मा की शांति हेतु संवेदना व्यक्त कर दुख जाहीर करेंगे। जिनके मन में मेरे प्रति भावनात्मक जुड़ाव होगा वह सीधा शव को कंधा देने घर पहुचेगा जिसकी साक्षी यह देह नहीं किन्तु मेरे शरीर के प्रति मोह न छोड़ पाने वाली सूक्ष्म आत्मा अवश्य दर्शक दीर्घा में खड़ी होगी जो घर से शव ले जाने के साथ आखिरी समय तक की तमाशवीन होगी।
मेरी सूक्ष्म आत्मा मेरे जन्म से मौत तक की साक्षी रही है वह एक एक घटना को देखकर मेरा मूल्याकन मुझसे कराएगी ओर मेरे सामने हर घटनाक्रम जीवित हो उठेगा कि मैं अपने इस जीवन में अपनी भुजाओ की पूरी ताकत लगाने के बाद, जी भरकर समाचार,लेख, व्यंग्य आदि लिखते हुये इतना नही कमा सका की बच्चों को घर बनवा सकूँ, मैंने बच्चो को पढ़ाने लिखाने में अपने सपने न्योछावर किए, बच्चों के सपनों के आगे में हमेशा बौना ही रहा। अब जबकि मौत की गोद में पहुचा तब मुझे बहुत ख्याल आए कि अब तक मुझसे मेरे भाइयो से प्रेम करने में कहाँ चूक हुई जबकि मेरा हृदय सदैव उनके लिए पूर्ण समर्पित रह उनके साथ अपने सुख दुख बाटने के लिए तड़फता रहा था। मेरे बेटे नादान है, वे मेरे विषय में जो धारणा रखे मैं उन्हे दोष नहीं दूंगा , पर बेटी के लिए सिर्फ पढ़ाई के अलावा कुछ न कर पाने की मेरे दिल में गहरी वेदना रही है, अगर में अपने बच्चों को आसमान कि ऊंचाइयों तक पहुचाकर अपरिमित धन दे सकता तो शायद वे मुझे योग्य पिता मान लेते, न माने तो भी वे मेरे दिल के टुकड़े ही रहेंगे, हा बेटी जब अपने लक्ष्य पर पहुँच जाये तो वह मेरी मेलआईडी के पोस्ट किए सारे लेखों को पुस्तक का स्वरूप देने के अलावा लिखी चारों पुस्तकों को सभी तक पहुंचाने हेतु बेटों से ज्यादा सजग है। परिवार में ओर भी सदस्य है, विशेषकर बड़े घर में बड़ी भाभी, बहू सीता जैसी परीक्षा किसी ने नही दी, जो सक्षम है वे रिश्तों से बहुत दूर है, उनके लिए उनका अपना संसार ही सब कुछ है, बाकी उनके अपने उनके लिए कुछ नहीं। अरे ये क्या मृत्यु कि गोद में भी मोह ममता का बुखार आ गया जबकि यह शरीर मृत्यु के हवाले हो जाने से मृत हो गया है ओर अब लोग जल्द इस शरीर को यहा से हटाने कि तैयारी में जुटने लग गए।
घर के अंतपुर में रोने कि आवाज तेज हो गई है, सभी मेरे मृत शरीर से उमड़ पड़ रहे है ओर ताने दे रहे है कि आखिर हमे भी साथ ले जाते, किसके भरोसे छोड़ जा रहे हो, हम आपके बिना जी के क्या करेंगे, हमे भी साथ ले चलो। हे भगवान कितने निर्दयी हो, हमे क्यो नहीं ले गए, इनकी जगह हमे ले जाते तो अच्छा होता.... बगैरह बगैरह । ये जितने भी मेरे शव पर रोने वाले चीख चीख कर दिखावा कर प्रेम दिखा रहे है वे सब दिखावटी है मेरे घर परिवार के सदस्य जो मोह दिखा रहे है, उनका मोह मैं जानता हूँ इसलिए अब इनके द्वारा मेरे शव को श्मशान ले जाने कि तैयारी हो गई है । मैं अपने शव के इर्द गिर्द देख रहा हूँ, जिस घर में जिस परिवार के साथ मैंने कई साल गुजारे वह घर अब मेरा नहीं रहा, जिस बस्ती में मेरा घर है उस बस्ती से मैं उजड़ गया,यानि अब बह बस्ती मेरे लिए घर नहीं रही थी, मुझे मौत अपने साथ ले गई ...जहा मौत हो वह बस्ती क्यो कहलाती है , यह मेरी आत्मा सोच रही थी । जहा सभी कि शान बराबर हो वह शमशान भूमि जहा से कभी किसी के लौटा कर नही ले जाते वह अब मेरी हो गई है जहा पर चिता की मृदुल गोद मुझे चिर-विश्राम देगी। अब जबकि आप सभी जान गए कि मेरा अवसान हो गया तब एक प्रश्न उनसे जरूर करूंगा कि मैं जब जीवित रहा तब कभी भी आपने मेरी कुशल नही पूछी, जिस भाई भतीजों को चाहा वे घर से घर लगा होने के बाद घर के सामने से ऐसे बिना बोले निकलते थे मानों मैंने उनका सर्वस्य छिन लिया है। मैंने अपने जीवन काल में जिसे कभी जाना नहीं पहचाना नहीं, जिससे मेरी दोस्ती नहीं वह भी तब मेरे विषय में इस प्रकार दुष्प्रचार करता रहा जैसे सच में मैंने उसके घर का चीर हरण किया हो, आखिर मुझे सदमार्ग पर चलने के लिए जीते जी यह संत्रास क्यो झेलना पड़ा। यह अलग बात है कि इसी प्रकार के लोग मृत्यु के पश्चात मेरा सम्मान करने कि प्रतिस्पर्धा करेंगे, जिसे मैं देख नहीं पाऊँगा। मेरी आंखे मुँदने के बाद मेरी मृत्यु पर मुझे अंतिम क्रिया हेतु आज शाम से पहले ही ले जाने का निमंत्रण भी दिया जा चुका है अर्थात पंचायती हंका करा दिया गया है जिससे लोग घर पर जुटने लगे है। जो भी मेरी मौत की खबर सुनता,कहता विश्वास ही नहीं हो रहा कि आखिर अचानक यह कैसे हो गया।
मरने से पहले मैं एक सामान्य आम आदमी रहा हूँ जिसके प्राणों में क्या चलता रहा इसे कोई समझ नहीं सका मेरे मन को मेरे हृदय को जब मेरे भाई नहीं समझ सके तो फिर दुनियादारी के किसी ओर रिश्ते से क्या उम्मीद करता। मैंने सभी के गंभीर से गंभीर कष्टों को झेला है, जब जीवन भर गलतिया करके मेरे भाई गल्तियो को स्वीकारने की ताकत नही जुटा सके तब उन्हे एहसास कराने हेतु में दिल की गहराइओ तक तड़फकर क्षमा कर देता, मेरी इन कमजोरिया को मेरे भाइयों ने अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया । कई रातों में जागते हुये लेखन चिंतन मनन ओर साधना करते मुझे लगा जैसे विधाता मेरे विचारों में इस प्रलय का सामना करने का बल दे रहा है ओर मैं अपने भाइयो के लिए किसी बल की ढाल से सुरक्षा नही चाहता था। मैंने माता ओर पिता का एकांतवास देखा है, जिन्होने अपने खून पसीने से सींचा वे बेटे उनके नहीं हो सके तो मैं उनके सामने किस खेत की मुली था, आश्चर्य होता है की मेरे इन भाइयों को क्या चोदह भुवन का राज्य मिल गया था या तीनों लोकों के वे राजा हो गए थे जिनके समक्ष माँ ओर पिता तिरस्कृत हो जाये ओर उनकी ममता का मूल्य उनसे ज़िंदगी भर की दूरी बनाकर दे ओर अपना स्वार्थ निकालने के लिए ही उन्हे याद किया जाय ये सारी बाते मेरे आत्मा के सामने आ जा रही थी जब घर से मेरे शव को शमशानघाट लेकर जाया जा रहा था ओर मैं जीते जी राम नाम सत्य है, यह सत्य से दूर रह किन्तु मेरे शव को सुनाने के लिए लोग रास्ते भर कहते जा रहे थे, सब शमशान घाट का वह चबूतरा आ गया जहा मेरे शव को एक मिनिट रोककर , मृत्युकर चुकाकर कंधे बदले जाकर चिता पर लिटाया गया।
युगों से निरंतर यही चला आ रहा है कि जिसकी आयु पूरी हो जाये उसे मरना है, यही कारण है कि इस धरती पर कोई भी वीर महावीर, अवतार तक नहीं रुक सका ओर पानी के बुलबुला के तरह मिटकर वह चला गया तब यदि मैं मर गया तो कोई अजूबा नहीं हुआ। जग में जिसने जन्म लिया है उसे मरना पड़ा है,आज मैं मर गया तो इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है आखिर कभी तो मरना था। जगत के लोगों ने मेरे साथ कैसा व्यवहार किया या मैंने अपने प्राणों में उठी उमंगों को कुचलकर क्षितिज कि ऊंचाइयों तक क्यो नही पहुँच सका यह मेरे प्रारब्ध के किसी श्राप या बददुआ के कारण हो सकता है, वरना इस जीवन में सभी से वरदान ही मिला था जो कुछ कमाए बिना लोगो से मांगचुंगकर हंसी खुसी जीवन निकल गया। हाँ अब शमशान में मेरी चिता को अग्नि में देने के बाद मेरी कपालक्रिया तक बैठकर या जब भी मेरी याद आए तब मेरी कथनी करनी से लेकर मेरी उपेक्षा, मान, निंदा स्तुति का मुरब्बा तैयार कर अपने-अपने हिसाब से मसाला मिलाकर अपनी श्वासों के कारागार में मुझे बंदी बना सकते हो या मेरे जीवन भर का आँसुओ पर पत्थर बन मुझ अभागे को कोस कर अपनी भड़ास निकल सकते हो , पर ऐसी बहदुरी करने का साहस न कर सभी लोग खाक हो चुके मेरे शव को लकड़ी दे परिक्रमा कर वही शोकसभा आयोजित करके मेरे परिजनो को मेरे न रहने का दुख सहन करने कि ताकत परमात्मा दे, ये कोरे शब्द किसी नसेलची के किए गए नशे की खुराक की तरह बोलकर चल दोगे। कोरे अर्थात खाली, शून्य तिक्त ... ये शून्य तिक्त शब्द अर्थहीन है ,क्योकि इन्हे सिर्फ आपके होंटों ने छुआ है ये हृदय की गहराइयों से निकले शब्द नहीं है।
मेरा शरीर शमशान मे खाक हो चुकने के बाद मेरे जीवन के जुड़े मेरे प्रसंगो को याद कर लोगों को सुनकर मुझे श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। जिसे मेरे जीते जी संपर्क में जो अच्छाई या बुराई मुझमे दिखी वह दुख से साथ याद कर मेरी याद को जिंदा रखने के लिए अपने अपने प्रयास करेगा ओर अधिकारियों से मांग कर ज्ञापन सौपेगा ओर फोटो के साथ समाचार पत्रों में छपवाएगे। मेरी आत्मा मेरे मरने कि सभी शोक सभाए सुनती, किन्तु मेरे स्वजन जिनकी दी गई व्यथा की आग में दिनरात घुल-घुल कर मेरी मौत हुई यह बात की मेरी आत्मा अकेली साक्षी रही है ओर वह गवाही देने तो आएगी नहीं, हा पंद्रह दिन एक महीने बाद मेरा जिक्र ही समाप्त हो गया ओर जैसे मेरे पैदा होने से पहले दुनिया चल रही थी, मेरे मरने के बाद भी वैसे ही दुनिया चलती रहेगी॥
- आत्माराम यादव पीव
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