साहित्य चक्र

08 August 2024

प्रकृति ने निःशुल्क पर्याप्त हवा और पानी दिया: महात्मा गांधी

         
          दुनिया ने विकास की गति के जिस रफ्तार को पकड़ा है। उस रफ्तार से पीछे आना संभव नहीं है। आज जो पर्यावरण प्रदूषण की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। भारत अगर महात्मा गांधी के पर्यावरणीय वैज्ञानिक सोच को अपना रास्ता स्वयं बनाए तो स्वयं विनाश से बचेगा ही, दुनिया का आदर्श-आत्मक मॉडल भी बन सकेगा। स्वतंत्र भारत का गांधीवादी दृष्टिकोण ग्रामीण पुनरुद्धार पर केंद्रित था। आज लोक कल्याणकारी राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति का चेहरा हमारे नियोजन और विकास के केंद्र में बना रहे। अन्त्योदय से सर्वोदय हो। प्रकृति की अपनी नियम है। 



मनुष्य धरती पर उस नियम से बंधा है, वह तभी तक जीवित रहेगा, जब तक यह बंधन कायम रहेगी। वनस्पति के बिना इस पृथ्वी पर जीवधारी एक क्षण के लिए भी नहीं रह सकते हैं। गांधीजी का प्रसिद्ध वक्तव्य धरती के पास सभी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधन है। किंतु किसी के लालच के लिए नहीं। यह समकालीन पर्यावरणीय आंदोलनों के लिए नारा बन गया है।

              आज हमने अपने को अनावश्यक वस्तुओं का भंडार बना रखा है। परिणामतः अनेक अवांछित बीमारी यथा-स्वाइन फ्लू, कैंसर, मधुमेह, किडनी की बीमारियां, कोरोना जैसी बीमारियां मानव जीवन को प्रभावित करने लगी है। गांधी ने कहा है कि आहार में उतनी ही चीजें लेनी चाहिए जो कि प्राकृतिक पदार्थों के अधिक उपयोग से इन सारी बीमारियों से बचा जा सकता है और इसे विज्ञान भी बखूबी मानने लगे हैं।

              गांधीजी का मानना था कि हमारी जीवन पद्धति ऐसी हो कि पर्यावरण को कम-से-कम ठेस पहुंचे। गांधी के द्वारा बताएं उद्योग शिल्प और आवश्यकताओं पर नियंत्रण की नीति को अपनाने की जरूरत है। गांधी के ग्राम उद्योग का विचार आधुनिक परिवेश में पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए प्रासंगिक है।  महात्मा गांधीजी यह मानते थे कि मनुष्यों एवं प्रकृति को कम से कम हानि पहुंचा कर सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। 

जबकि गांधीजी ने प्रत्यक्ष पर्यावरण पर किसी पुस्तक की रचना नहीं किया लेकिन अपने दैनिक व्यवहार एवं हिंद स्वराज में उनके पर्यावरण व पारिस्थितिकी संबंधी विचार दृष्टिगोचर होते है। गांधीजी के लिए स्वच्छता बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा था। गांधी जी लिखते हैं कि हमारी जरूरत के हिसाब से प्रकृति ने निःशुल्क पर्याप्त हवा और पानी दिया है, लेकिन आधुनिक सभ्यता ने इसकी कीमत निर्धारित कर दिया। दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए हमें कम उपयोग, ज्यादा साझेदारी और सरल जीवन को अपनाना होगा। सामूहिक प्रयास करने होंगे।


                                        - डॉ नन्दकिशोर साह



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