साहित्य चक्र

02 August 2024

कविता- गाय के मुख से





मत  बांटो  मुझे
हिन्दू - मुस्लिम  में
मैं  सारी  मानव जाति की पोषक हूँ।

मुझ से सभी स्नेह रखते हैं
आदि काल से आज तक
मैंने जाति - धर्म का दामन नही थामा।

अब तो सब सभ्य कहलाते हो
मुझे माता कह पुकारते हो
हाँ , मुझ पर पहली कक्षा से ही
 लेख लिखते आए हो।

तुम ,तथाकथित लोगों ने
मुझे हाइजैक कर
राज की पगडण्डी का एक हथियार बना
राजनैतिक पक्ष  को मजबूत करने का साधन बना
लिया है ।

मेरे नाम से चन्दे वसूल ने
गौ रक्षक - सेवादार का ढोंग 
मैं बहुत दुखी हूँ
समाज व देश में मेरा नाम ले जहर क्यों फैला रहे हैं।

जबकि मैं और मेरे वंशज दर-दर
भटकते हुए प्रताड़ना झेल जीवन जी रहे हैं
हम आवारा बेसहारा भटकते हैं
हमारे नाम से गो- शालाएं चलती है।

सरकार व् लोग गाय के नाम का पैसा खुर्द बुर्द कर जाते हैं
मैं व मेरे वंशज गन्दगी में मुहँ मारते 
कचरा पॉलीथिन खाते 
गली-गली में भटक आप लोगों के डंडे खा-खा...

मुझे  सम्मान देने वालों , मुझे व् मेरे वंशज को
घरों-खेतों में आश्रय दो
दूध दुह लेने के बाद घर से बाहर
मार खाने क्यों निकालते हो।

कहाँ गयी ओरण -चरागाह
कहाँ है घास - ग्वार- व् पौष्टिक चारा
मेरे बछड़े व् गोधो की बड़ी दयनीय हालत है जरा सोचो।

मैं पूजनीय हूँ
मैं गाय माता कहलाती हूँ
मुझे माता मानते हो तो मुझे
जाति-धर्म मे बांट ,रुसवा न करो।

मैं सबकी हूँ
क्योंकि मैं सारी धरती को
अपना घर मानती हूँ ।
       

                                                           - नाचीज़ बीकानेरी


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