साहित्य चक्र

02 August 2024

जुलाई माह की 15 कविताएँ एक साथ पढ़ें...




!! बारिश !!

काले -काले बादल आए,
संग अपने है बारिश लाए।
बारिश की वो बूंद सुहानी,
जब मिट्टी को गले लगातीं हैं,
मिट्टी से मिल कर वो बूंदे,
धरा पर सौंधी खुशबू फैलातीं हैं।
काले बादल उमड़ - घुमड़ कर,
धरती पर अपना प्यार लुटाते हैं,
बारिश की फिर बूंदें बन वो,
वसुधा को गले लगाते हैं।
बूंदें फिर बौछारें बन कर,
धरती की प्यास बुझातीं हैं।
बारिश की वो सुहावनी बूंदें,
सब पर रंग दिखलाती हैं,
मौसम तब बदले धरा पर,
नया रंग चढ़ जाता सब पर,
हरियाली छाए वसुधा पर,
मन की कलियां खिल जातीं हैं।
वृक्षों का हर पत्ता - पता,
बारिश में धुल जाता है।
बारिश के पानी में नहा कर,
सब बच्चे,बूढ़े और जवान,
जीवन का आनन्द उठाते हैं।
बारिश के पानी में कुछ पल,
हर ग़म को भूल वो जातें हैं,
बारिश का पानी सावन में,
सबके मन को लुभाता है,
क्यों कि ये वो बारिश है,
जो कृषकों के मन भाती है।
गर्मी से राहत मिलती सब को,
और धरा हरी-भरी हो जाती है।

- कंचन चौहान

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!! छाता !!

छाता लेकर निकले हम,
पानी बरसा छम-छम छम-छम।
फिसला पैर और गिर गये हम,
सभी ने टांगा घर को पहुंचे हम।
बाहर आकर मम्मी देखे,
पापा के मारे छिप जाते।
रोज सबेरे चुपके-चुपके,
खिलने को हम सब निकलें।
दादा कहते आराम से जाना,
दादी कहती भीग मत जाना।
बहना कहती ख्याल रखना,
भाई कहता जीत कर आना।
दोस्तों के साथ दंगा ना करना,
मिलजुल कर सदा साथ रहना।
सुख दुख में सदा साथ में रहना,
जो भी पास तुम्हारे मिलबांट खाना।

- रामदेवी करौठिया

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कभी-कभी जिंदगी...
बंजर भूमि सी लगने लग जाती है।
ना जोतने के लिए हल होता है,
ना बैलों की जोड़ी दिखाई देती हैं
और ना ही बौने के लिए बीज होते हैं।
होता है तो सिर्फ शारीरिक मेहनत
और मानसिक ताकत के रूप में हौंसला...

- दीपक कोहली


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!! उत्सव !!

जीवन के हर पल को
उत्सव रूपी
खुशियों से सजाए हम
जीवन के इस रंगमंच को
रंगीन कर जाए हम।
सुख दुःख को जीवन
संगिनी समझ कर,
बेझिझक इसे अपनाएं हम।
जीवन बहुत सरल हो जाएगा
हर पल में अगर
उत्सव मनाए हम।

- सूरज महतो


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!! दिल का रिश्ता !!

कोई तो ऐसा फ़रिश्ता होगा,
जिससे दिल का रिश्ता होगा!
हमने सुकूँ खोया इश्क़ में,
वो भी यादों में पिसता होगा!
होंगे बयां अहसास एक दिन,
ये प्यार ज़रा आहिस्ता होगा!
दिल का सौदा महंगा निकला,
हमको लगा कि सस्ता होगा!
निकल ही पड़े आँख से आँसू,
और वो ज़ालिम हँसता होगा!
उम्मीद ए वफ़ा छोड़ चुके हम,
क्या पता कैसा रास्ता होगा!
क़सम क्या देते यार को अपने,
उसे ख़ुद रब का वास्ता होगा!

- आनन्द कुमार


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आँसू भी महफ़िल में हसीनो की बहाया नहीं जाता।
शमां मुताल्लिक तेरे शिक़वे सारे तमाम हो जाते।

परवानों को मुताबिक़े रस्म गर दफ़ना दिया जाता।
मान लेता हुं कि तेरा गुनहगार तो हूँ मैं ए शमा।

सर ये सिवा सामने ख़ुदा के झुकाया नहीं जाता।
आतिशे शमां में जलते है हर शब ही हज़ारों मासूम।

आँसू भी महफ़िल में हसीनो की बहाया नहींजाता।
जाने से पहले तु मुक़ाबिल शमा के सोचले नादान।

बढ़े जो क़दम इश्क़ में वापस उन्हें क्या नहीं जाता।
शमां पर इल्ज़ाम लगाना दुरुस्त नहीं है "मुश्ताक"।

मरता है ख़ुद परवाना उसको बुलाया नहीं जाता।


- डॉ. मुश्ताक़अहमद शाह


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!! सुन लो मेरी पुकार !!

हे नन्दी महादेव से कहना सुन लें मेरी पुकार।
चहुं ओर फैला हुआ कलिकाल में हाहाकार।
अत्याचारी दुष्ट जनों की होती है जिन्दगी में मौज।
सतकर्मी सज्जनों को दुनिया रुलाती हर रोज।
पाप हो रहा पुण्य पे भारी नित दिन कैसा ये न्याय है।
शिष्टाचारी संत जनों के जीवन का यही अध्याय है।
कितने संकट आएं पथ में डिगेंगे नहीं मेरे कदम।
गुहार रोज करूंगा महादेव से नाम जपूंगा हरदम।
कष्टप्रद इस जीवन से मुझको मुक्ति का वर दो।
सारे दुख समस्याओं को महादेव तुम हर लो।
गंगाजल सादर अर्पण करता मैं भोलेनाथ को।
दुर्भाग्य मिटाओ बाबा थाम लेना मेरे हाथ को।
विनती इतनी सी है बस मेरी भोलेनाथ से।
कष्ट दूर हो दुख की रेखाएं मिटे मेरे हाथ से।
पूजन करते जीवन आधा मेरा है बीत चला।
प्रभु कृपा का आशीष अब तलक न मिला।
अब सुन लें मेरे महादेव मेरी ये करुण पुकार।
दुख लेकर खुशियां दे दे मेरा कर दे उद्धार।।

- मुकेश कुमार सोनकर


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!! जय बाबा धारनाथ !!

भोले शम्भु तेरा नाम बड़ा,
मैं तो कब से खड़ा तेरे दर्शन को।
मैं तो कब से खड़ा तेरे दर्शन को।
तुझे दुध चड़ाने आया हूँ,
संग जल जमुना का लाया हूँ।
बिलपत्र प्रभु स्वीकार करो,
मैं तो कब से खड़ा तेरे दर्शन को।
तुझे फूल चड़ाने आया हूँ,
संग भांग धतूरा लाया हूँ।
मेरी भेंट प्रभु स्वीकार करो,
मैं तो कब से खड़ा तेरे दर्शन को।
नही वेद पुराण कोई जानू,
नही पूजा पाठ की विधि जानू।
मन में श्रद्धा भक्ति लाया हूँ,
मैं तो कब से खड़ा तेरे दर्शन को।
भोले शम्भु तेरा नाम बड़ा,
मैं तो कब से खड़ा तेरे दर्शन को।
मैं तो कब से खड़ा तेरे दर्शन को।
मैं तो कब से खड़ा...

- कमल पांचाल


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मैं क्या चाहती,
मुझे तो बताना भी नहीं आता।
मेरे अपने रूठ जाते हैं मुझे से,
मुझे तो सच कहूं,
तो मनाना भी नहीं आता।
मुझे कुछ बुरा लगे,
तो मैं रो पड़ती हूं,
मुझे तो
कुछ जताना भी नहीं आता।
लोग कहते हैं
मुझमें अकड़ है बहुत,
पर मुझे उनको अपना
स्वभाव बताना भी नहीं आता।
जो मुझसे प्यार से बात करें,
उनको मैं
अपने दिल की गहराइयों
से अपना लेती हूं।
मैं जैसी अंदर से हूं, और
वैसी ही बाहर से हूं,
मुझे तो झूठा मुस्कुराना
भी नहीं आता।

- रेखा चंदेल


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!! मजा !!

माँ का दुलार हो
सर पर पिता का साया हो
तो बड़ा मजा आता है।
भाई बहन में प्यार हो
थोड़ा तकरार भी हो
तो बड़ा मजा आता है।
नाते रिश्तेदार हो
उनका आना जाना भी लगा रहे
तो बड़ा मजा आता है।
अपने हो
अपनापन भी जताते हो
तो बड़ा मजा आता है।
मित्रगण साथ हो
मित्रता को भी निभाते हो
तो बड़ा मजा आता है।
घर पर अनेकों व्यंजन बनें हो
प्रेम से खाए सारा परिवार
तो बड़ा मजा आता है।
गाँव का समाज हो
टयाले पर बैठ कर सुख दुःख बांटें
तो बड़ा मजा आता है।

- विनोद वर्मा


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!! सौगात-ए-सुकून !!

हे प्रभु तेरी ये सौगात-ए-सुकून,
फैले दुनिया के हर कोने कोने में।
प्रेम दया शांति का उपजे बीज,
हर मानव दिल के कोने कोने में।
द्रवित हो हर मानव ह्र्दय,
देख दुखिया किसी भी कोने में।
जग में बांटो खुशियाँ,पहल दो सबको,
मज़ा‌‌ आता है औरों के खातिर जीने में।
चहुं ओर फैले जग मे प्रीत प्यार भाईचारा,
नफरत वैर का न रहे बीज दिल के कोने में।
रहें सब प्राणी खुशहाल गाएं खुशी के गीत,
वास करे चाहें वो दुनिया के किसी कोने में।
बांटो खुशियाँ और अपनापन इतना जग में
बीते नहीं किसी का इक भी पल फिर रोने में।

- राज कुमार कौंडल


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!! विद्रोही कविताएं !!

नसीब का फोड़ा जब टपकता है
लबों से शब्द मेवाज की तरह बह उठते है,
आंखों की सरस्वती सुख जाति है और
देह पर नमक का स्वाद बचा रह जाता है
मेरी कविताओं से तुम्हे मेरे खून की खुशबू आएगी
मैंने इन्हें तब लिखा जब मेरा दिल खौल रहा था
मैं जानता हूं तुम्हे खून,
पानी और आंसू में फर्क नही मालूम
तुम्हारे लिए ये कविताएं मात्र वर्णमाला होंगे,
किंतु एक मजदूर के लिए खजाना,
प्रेमियों के लिए शस्त्र और
क्रांतिकारियों के लिए आवाज
क्योंकि पीड़ा से उपजी कविताएं विद्रोही होती है।

- धीरज 'प्रीतो'

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!! कामयाबी की बारात !!

सुकून के धागे कोई काट रहा जनाब
काँटों से जैसे कोई छांटता गुलाब
इज्ज़त के पुलिंदे ढह जाते भराभर
गिरे-पड़े बाशिंदे पर जब डोलती शराब
अंधेरे मे रहने की जिसको लग गयी है लत
दिन के उजाले नहीं दिखता आफताब
हवाओं का रुख कुछ बदला इस कदर
मुज़रिम चले सीना तान सज्जन ओडे नकाब
मरहम पे दवा छिड़कने आ रहे
ज़ख्मों पे जिन्होंने लगायी आग
बेताब था जो उड़ने को कभी
डाल पे परिंदा क्यों बैठा उदास
ये जिंदगी ख़ुदा की नेमत है यारों
इठलाती उम्मीदों का क्यों छोड़ते हो साथ
मेहनत के रंगों की रंगोली सजाओ
कामयाबी की फिर निकलेगी बारात

- उमा पाटनी 'अवनि'


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वर्षा आई हरियाली लाई
पहली बूंद से धरा हर्षाई।
सूख रही डाली डाली पर
नई कोंपल है सुंदर आई।
भटक रहे थे जीव यहां वहां
वर्षा रानी ने प्यास बुझाई।
खिल गए हैं खेत खलियान
किसान की खुशी लौट आई।
सिकुड़ गए थे नदी के छोर
पानी ने इसकी हिम्मत बढ़ाई।
लो आ गए अब टर्र टर्राने वाले
भरकर वर्षा ताल तलैया लाई।
मस्ती में भीग झूम रहे हैं बच्चे
उदास चेहरे पर है रौनक आई।
छपक छपाक चारों ओर पानी
कागज़ की कश्ती पानी में तैराई।
तान के छाते रंग बिरंगे निकले
इंद्रधनुष के संग प्रकृति है नहाई।
हर मौसम का अपना मज़ा है
पर वर्षा संग अनेक रंग है लाई।

- कांता शर्मा

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!! किसके लिए !!

हर जद्दो जहद किया किसके लिए
हर पल हर घड़ी जिया किसके लिए
आज जब दिखाते वो ही आँख
सोचता जिंदा हूं अब किसके लिए
कभी ना निकाला एक पल अपने लिए
हर समय उपलब्ध रहा मैं किसके लिए
कहने को सब है अपने बहुत करीबी
पड़ा वक्त बोले क्या करूं किसके लिए
निकल गया पूरा वक्त परिवार पर बेताब
सोच रहा ये प्राण निकालूँ अब किसके लिए

- आलोक सिंह बेताब


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