साहित्य चक्र

09 May 2023

प्रेम दो हृदयों का मिलन

दो हृदयों के जुड़ने में वर्षों लग जाते हैं। वर्षों एक हृदय दूसरे किसी ऐसे हृदय की प्रतीक्षा करता है जो उस तक पहुंचे, उसकी लयताल को सुने, समझे और उसका ही हो जाए, अपनी लय में समाहित कर ले। दो हृदयों का यह मिलन उत्सव है। उनके लिए ही नहीं, उनसे जुड़े हर किसी के लिए।




इसके अतिरिक्त वह कुछ भी और हो सकता है लेकिन कुछ भी टूटना, कोई विच्छेद उत्सव का विषय नहीं हो सकता है। किसी से जुड़े रहना चाहे कितना भी पीड़ादायक हो, उससे अलग होना कभी भी सार्वजनिक आनन्द मनाने का कारण नहीं हो सकता है। हो सकता है, अलग होकर राहत मिले, आज़ादी की चन्द साँसें आएं लेकिन अलगाव का दुःख, उसकी पीड़ा मन में चटकती रहेगी। जिसके साथ ज़रा भी समय बिताया हो, उसे विदा कहना कभी आसान नहीं होता फिर वह तो जीवनसाथी था! मन्त्रों और अग्नि की मानें तो सात जन्मों का!

इधर सब कुछ तोड़ देना, क्षण में कुछ सुंदर, थोड़ा धैर्य और ढ़ेर सारी प्रतिबद्धता माँगने वाली शै को नष्ट कर देना बहुत आसान हो गया है। क्षण भर के लालच के आगे वर्षो के नेह की कीमत बहुत कम आँक दी जाती है।
ठीक है अगर किसी भी हाल में जुड़े रहना, जोड़े रख पाना सम्भव नहीं है तो अंतिम विकल्प हमेशा वहाँ से ख़ुद को अलग करना है। लेकिन उस अलग होने की भी अपनी गरिमा होगी, अपने क़ायदे तो होंगे।

मुक्त करने से पहले मुक्त होना होता है। पूरी तरह! हर दिखावे से। मन से किसी को पूरी तरह हटा देना, क्षमा करना और आगे बढ़ जाना। प्रेम के बाद अगर इतनी घृणा शेष रह गयी है तो आप मुक्त नहीं हैं, वहीं छूट गए हैं! इतनी घृणा कि उसका ऐसा हिंसक सार्वजनिक प्रदर्शन आपको करना पड़ रहा है! दिखावे के इस युग में प्रेम तो क्या नफ़रत भी ऐसे दिखाई जा रही कि सामने वाले तक यह संदेश पहुंचे! क्यों? वह जो आपके प्रेम के योग्य ही नहीं था, जिसने आपके प्रेम का मान ही नहीं रखा, उसे अब घृणा से भी क्यों बांधे रखना! आप उसे दुःख पहुंचाने का सोच रहे हैं, इस पूरी प्रक्रिया में पीड़ा सिर्फ़ आपको मिलेगी।

मुझे वहाँ मुक्ति का उत्सव नहीं, बहुत सारी पीड़ा, अवसाद और अकेलापन नज़र आया। किसी दूसरे को यंत्रणा देने के प्रयास में अपने ही दुःख को धृणा और हिंसा में छिपाने का असफल प्रयत्न करती एक स्त्री जिसका दिल बुरी तरह टूटा है। जिसे किसी ने भयंकर छला है, तोड़ दिया है पूरी तरह से!

बस इतना ही कहना चाहती हूँ, मुक्त होना है तो इस घृणा से भी मुक्त हो जाओ। क्षमा नहीं कर सकती तब भी आगे बढ़ जाओ। इस तरह के सार्वजनिक प्रर्दशन से तुम अपने उस घाव को कमतर कर दोगी जो न दिखे , न रिसे, तुम जानती हो वह है, वह रहेगा और तुम्हें इतनी ताक़त देगा कि तुम मुक्ति तक धीरे- धीरे ही सही, एक दिन पहुँचोगी ज़रुर।

तुम्हारे प्रेम को किसी ने सस्ता साबित कर झटक दिया लेकिन तुम्हारे दुःख बाज़ार में बेचे जाने की चीज़ नहीं हैं। उन्हें सहेजो और आगे बढ़ती जाओ। एक दिन वे तुम्हें और सुंदर कर जाएंगे।


- रश्मि भारद्वाज


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