साहित्य चक्र

07 May 2023

हवाई समझौते से बेहतर है जमीनी स्तर पे समझौते हों

सत्ता व सरकार में समान भागीदारी न मिलने की पीड़ा

हवाई समझौते तो नेताओं के बीच में हो जाते हैं पर जमीनी स्तर के समझौते को सता व संगठन मे बैठे लोग नही चाहते कि वोट जो देते हैं उनके बीच में समझौते भी हों । मुख्यमंत्री जी ये कर रहे हैं वो भारी पड़ सकती है पिछले दिनों की बात है जब मुख्यमंत्री बीकानेर के दौरे पर आए थे मुस्लिम समाज ने उनकी मीटिंग का बायकॉट किया था अबकी बार जब मुख्यमंत्री जी बीकानेर आए तो उनके आसपास वही व्यक्तिगत काम वाले लोग जबकि जिन लोगों ने मुख्यमंत्री जी की मीटिंग का बायकॉट किया उन लोगों के बीच मुख्यमंत्री जी ने किसी भी प्रकार से संवाद कायम करने की कोशिश नहीं की न ही अन्य जन प्रतिनिधियों ने उसे उचित समझा उस डैमेज कंट्रोल को हालांकि स्थानीय स्तर पर कुछ मुस्लिम लोगों ने रोजा इफ्तार पार्टी व ईद मिलन के बहाने लोगों को एकत्रित कर डैमेज कंट्रोल का प्रयास किया।


फोटो सोर्स- गूगल



शिक्षा मंत्री जी को वहां भी ऐसा देखने में आया आपस में कानाफूसी करते हुए नजर आए मुख्यमंत्री जी की बात तो दूर की बात है शिक्षा मंत्री जी ने भी मुस्लिमों की नाराजगी को भांप कर आपस में जो भी गिले-शिकवे उन्हें दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया हां ईद मिलन समारोह में जबकि सभी धर्मों के लोग मौजूद थे और केवल अखलियत्त के लिए घोषणाएं करना यह एक अजीब सा लगा जबकि ईद मिलन में सिर्फ सौहार्द की बात होनी चाहिए क्योंकि उस कार्यक्रम में सभी जाति धर्म के लोग आमंत्रित थे।धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने यह कार्यक्रम रखा पर कुछ लोगों द्वारा उन घोषणाओं का पोस्टमार्टम करते हुए घुसर फूसर ये घोषणाएं अमली जामा पहनाने के लिए क्या योजना है ? कहां जमीन है ? इसके लिए क्या करना है ? कहीं घोषणाएं ,घोषणा बन रह जाए, आचार संहिता से पहले हो जाए तो वरना कुछ नहीं । 27 अप्रैल को मुख्यमंत्री का बीकानेर स्टे था।

मुख्यमंत्री जी को भी यह प्रयास करना था स्थानीय राजनेताओं को भी प्रयास करना था कि मुस्लिम वर्ग 95% वोट कांग्रेस को देता रहा है और प्रत्यक्ष रूप से 4 विधानसभा सीटों को प्रभावित करता है जिन्हें 5 साल के दौरान सत्ता व संगठन मैं जो भागीदारी मिलनी चाहिए वह भागीदारी नहीं मिली और उनकी उपेक्षा भी हुई है ये डैमेज कंट्रोल 27 तारीख की जनसुनवाई में हो सकता था पर चंद लोग जो अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति के लिए आए थे वहीं कतारों में नजर आए बाकी बीकानेर के नामी-गिरामी मुस्लिम नेता अन्य जातियों के लोग भी मुख्यमंत्री के जनसुनवाई कार्यक्रम व अन्य कार्यक्रम में नही नजर आये, यहां तक भी देखने में आया कि अबकी किसी भी समाज के लोग समूह में नहीं आए न ही किसी" शेरे " का नारा सुनने में आया 5 मिनट में सुनवाई खत्म।

29 अप्रैल को हवाई समझौते में आपस के नेताओं के बीच समझौते मे मिठाईयां बांटी जाती है ,नेता एक दूसरे को हरा व जिताने में समझौता कर सकते हैं वे पाला भी बदल सकते हैं सिर्फ वोटर पार्टी से बंधा रहे और जो वोट देने वाला तबका है उसकी उपेक्षा होती हो यह कहां का न्याय है मुख्यमंत्री जी ।

मुख्यमंत्री जी ने दो दर्जन से ज्यादा कल्याण बोर्ड और फाउंडेशन बनाए हैं जैसे भी मुस्लिम बोर्ड के लोग मांग करते हैं तो ठंडे बस्ते मांग, क्या नाई, दर्जी, धोबी, मोची आदि का काम मुस्लिम नही करते कोई मेंबर नही बनाया।और कोई स्थान नहीं दिया ।किसी मुस्लिम बोर्ड के गठन की घोषणा अब तक क्यों नही हुई ?

सभी जाति धर्म के लोगों ने महापंचायते कि उन्होंने अपनी ताकत दिखाइ यहां तक की mla अधिक टिकट व आरक्षण की मागे की, मुख्यमंत्री बन सके नारे लगाए जो 5 % वोट नहीं देता है उनको कल्याण बोर्ड से नवाजा गया यह मुख्यमंत्री जी किस तुष्टीकरण की ओर बढ़ रहे हैं आम लोगों में यह धारणा है मुस्लिमों को कांग्रेस ने अपनी जेब का लड्डू समझकर लोग इस्तेमाल करते हैं कि यह कहां जाएंगे वह तो हमे ही वोट देंगे साडे 4 वर्ष के इस दौरान मुस्लिम दिल्ली जयपुर के चक्कर निकाल निकाल कर थक गए स्थानीय विधायकों ने भी मुस्लिमों के वही काम जो मुस्लिमों के लिए जायज हो मुस्लिम सराय के लिए जमीन नहीं मुस्लिम आबादी क्षेत्र खाजूवाला छतरगढ़ पुगल बीकानेर जहां यारु खान पड़िहार, अजीम खान शाहू , फते खान नायच आदि अनेक जो उस जमाने से अपनी साख रखते थे उनके लिए क्या किया ? क्या इनके नाम पर मुस्लिम हॉस्टल मुस्लिम समुदाय भवन कि कहीं भी जमीन आवंटित की ।इनकी पॉलिसी सिर्फ अल्पसंख्यक रूपी आइसक्रीम ,आइसक्रीम देते रहे जिसमें मुस्लिमों का भला क्या हुवा ?

अब कांग्रेस ने भी और कुछ मुस्लिम लोगों ने भी मुस्लिमों में फूट डालो और राज करो की नीति अपनानी शुरू कर दी है मुसलमान किसी जाति ,पार्टी विरोधी, व्यक्ति विरोधी नहीं है उनको अपने हक के लिए आवाज उठाने के लिए अभी विवश किया जा रहा है और जिस के स्थानीय विधायकों ने व मुख्यमंत्री जी ने भी मुस्लिमों की उपेक्षा की है क्या मुख्यमंत्री जी के इंटेलिजेंस कमजोर है जो इस वोट बैंक के बारे में मुख्यमंत्री को पहुंचाने में नाकामयाब रही है मेरा मानना है कि छोटी मोटी समस्याएं हैं , मुख्यमंत्री जी के osd बीकानेर आते हैं स्वागत कराते हैं क्या वे मुस्लिमो से फीड बैक लेते हैं उनकी समस्याओं का निवारण भी करते हैं क्या ?

छोटे-मोटे ट्रांसफर के लिए महीनों चक्कर निकालने पड़ते हैं जबकि विपक्षी दलों के लोगों के ट्रांसफर 2 दिन में हो जाते हैं आम बात है आम मुसलमान शांत हैं क्या सड़क नाली या किसी सामुदायिक भवन में कुछ घोषणाएं कर देना क्या पर्याप्त है ? ये घोषणाएं तो हर जाति के लिए होती है यह तो सरकारी काम है इसके अलावा कितने काम हुए हैं 51 वर्ष से वीर चक्र शहीद की उपेक्षा हो रही है जबकि कल परसों ही मुख्यमंत्री जी ने शहीदों के नाम से मूर्ति अनावरण के कार्यक्रम किए हैं क्या यह सोतेलापन नहीं है वीर शहीद रफीक खान के नाम से आज तक स्कूल नहीं बनी है जिसको शिक्षा विभाग ऑब्जेक्शन पर ऑब्जेक्शन लगाकर उसको क्या दर्शाता है ? क्या मुस्लिम राजनेता व स्थानीय स्तर के तीनों मंत्रियों ने भी मुस्लिमों के व्यक्तिगत काम के अलावा कोई सार्वजनिक मुस्लिम हित का प्रकरण हल करने में रुचि दिखाई ?

मोहम्मद उस्मान आरिफ महबूब अली के नाम से कोई चौराहा बाग बगीचा समुदायिक भवन ,कॉलेज का नामकरण बना जबकि कई समुदायों के लोगों के एमएलए के नाम से चौराहे कॉलोनी बन चुके हैं यह भी तो भेदभाव है इसमें भी समानता होनी चाहिए क्यों नहीं बने अभी भी कई नेताओं के नाम से मांगे उठ रही है कौमी एकता का मरकज है बीकानेर लेकिन राजनीति के लोगों की सोच मुसलमान सिर्फ वोटर हैं इक्के दुक्के लोगों पे हाथ रख मुसलमानों को रिझाया नहीं जा सकता हर क्षेत्र में भागीदारी सुनिश्चित हो। मुसलमान भाईचारा आपसी सौहार्द में विश्वास रखते हैं परंतु राजनीति में ठगा महसूस करते हैं,अब यदि मुसलमान सता व संगठन मे भागीदारी की बात करता है तो ठेंगा ! सभी पार्टियों का चरित्र एक सा ही है।

मुसलमान का वोट तो ले लेंगे पर मुसलमान को कोई वोट नही देता नहीं, ऐसा क्यों ? तो फिर मुसलमान अपना वोट क्यों दे अपने वोट को सोच समझ कर दे। भाजपा भी मुस्लिम को एक टिकट देकर मुस्लिम कार्ड खेल सकती है अबकी बार ओबीसी एस सी में भी असंतोष है जब रंधावा जी अशोक जी ने पूर्व विधानसभा के लिए जिताऊ उम्मीदवार पूछा तो स्थानीय मंत्रियों ने किसी जाति विशेष का नाम लेने से भी लोगों में रोष व्याप्त है। अब मुस्लिम भी अपने राजनैतिक अस्तित्व व हक की बात के लिए उचित निर्णय लेने के मूड में नजर आ रहा है, वर्तमान घटनाओं से कुछ ऐसा नजर आता है।

                                                                           - नाचीज़ बीकानेरी 


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