किसने कहा तुमसे ऐ जिंदगी में व्यस्त हूं।
आज कल मैं भी उस उगते और अस्त होते
सूर्य की तरह ही मस्त हूं।
इन व्यवस्था में मैं भी वक्त दे देती हूं।
उन अनखिले फूलों को खिलखिलाने का मौका,
जिन्हें कभी तेज हवाओं ने था रोका,
दे देती हूं उन बूढ़ी हड्डियों को मजबूती,
जो अब मेरे ही सहारे से चलती है।
और कभी झांक आती हूं,
उन पुश्तैनी घरों के बंद पड़े किबाड़ो में,
खोल आती हूं उन झरोखों को जो खुलते ही
बड़ी आहट करते हैं।
किसने कहा तुमसे ऐ जिंदगी में व्यस्त हूं।
आजकल मैं भी उस उगते और अस्त होते
सूर्य की तरह ही मस्त हूं।
- डॉ. कांता मीना
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