साहित्य चक्र

30 January 2022

कविताः विश्वजननी भवानी माँ

डॉ. मनीषा कुमारी



विश्वजननी माँ कर दो मेरी नैया भवर से पार ,
जगतजननी माँ भवानी दे दो अपना थोड़ा प्यार ,
बहुत दिन से शरण में आई हूं माँ तेरी ,
माँ भवानी कर लो न स्वीकार मेरी गुहार ,

जिस उद्देश्य से इस दुनियां में भेजी हो माँ,
उस लक्ष्य तक पहुंचने के क़ाबिल बना दो माँ,
इतनी शक्ति दो मुझे की डगमगाये न कदम कही ,
हर राह के काँटो को फुल समझ कर आगे बढूँ माँ ,

बस इतनी सी विनती स्वीकार करो माँ,
अपने चरण कमलों में थोड़ा सी जगह दे दो माँ ,
नही चाहिए कोई जग में अपना न किसी का साथ 
 अपना साथी बना लो धन्य हो जाये मेरा यह संसार,

वह आत्मबल शक्ति दो मुझें  माँ ,
दुनियां की कुरीतियों को मिटा पाऊँ,
हर घर में तिमिर को मिटाकर ,
शिक्षा का अलख जगाऊँ माँ,

चाहे दुःख दर्द हज़ार मिले मुझे माँ,
उससे लड़ पाऊँ वह हिम्मत दो माँ,
मेरी हर चूक को क्षमा करके माँ ,
अपने सीने से लगाके अपना प्यार देदो माँ 


                                   लेखिका- मनीषा कुमारी


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