राज्य पशु चिंकारा को पर्याप्त संरक्षण की आज भी दरकार, निगरानी बढ़ाने की सख्त जरूरत
चिंकारा राजस्थान राज्य का वन्य श्रेणी में राज्य पशु है। जिसे 22 मई 1981 को राजस्थान का वन्य श्रेणी में राज्य पशु घोषित किया गया। चिंकारा एंटिलोप प्रजाति का जीव हैं। यह एक शर्मिला प्राणी होने के साथ-साथ अकेले में रहना पसंद करता हैं। चिंकारा को सामान्य आम बोलचाल में छोटा हिरण कहकर भी पुकारा जाता है। चिंकारा की आंखे बहुत ही सुन्दर और लाजवाब होती है । चिंकारा का रंग लाल-भूरा होता है । जो हर किसी को अपनी ओर सहजता से आकर्षित कर लेता है।
चिंकारा मुख्य रूप से दक्षिण एशिया में पाए जाते है। भारत में राजस्थान की जलवायु चिंकारा के अनुकूल बन पड़ी है। राजस्थान में चिंकारा बहुतायत में पाए जाते है। चिंकारा बच्चे को जन्म देने वाला एक स्तनधारी प्राणी है । चिंकारा को भारतीय गजेला के नाम से भी जाना जाता है। इसकी घ्राण शक्ति और दृष्टि सामान्य होती है, लेकिन यह शिकारी की आहट पाकर तेजी से छिप जाता है या उस स्थान से भाग जाता है। वहीं चिंकारा बहुत ही सीधा पशु हैं । जो किसी को नुकसान नहीं पहुचाता हैं। लेकिन चिंकारा स्वयं आज शिकारियों की मार से बेबस होकर चीख रहा है। जिसे शिकारियों द्वारा बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया जाता है । हमें इन बेजुबान, निरीह प्राणी की पुकार सुननी चाहिए और उनके संरक्षण के प्रयास करने चाहिए।
चिंकारा को राज्य पशु घोषित करने के बाद इनके संरक्षण का सरकार व प्रशासन का राजकीय दायित्व बन जाता है, वहीं संरक्षण को लेकर कई प्रकार के कानून भी लागू हो जाते है। जिससे उम्मीद रहती है कि राज्य पशु पर्याप्त संरक्षण मिल सकेगा। लेकिन चिंकारा का जीवन आज भी शिकारियों के चुंगल में फंसा हुआ है। अरण्य, जंगलों और खेतों में स्वच्छन्द विचरण करने वाला मनोहारी चिंकारा शिकारियों की चालबाजियों से नही बच पाता है।
शिकार के कई मामले प्रकाश में भी आते है । लेकिन कई मामले प्रकाश में ही नही आते है। शिकार तक हो जाता है परन्तु खबर तक नही पड़ती है। वहीं राज्य में वन्य जीवों के संरक्षण विशेषकर हिरणों के संरक्षण को लेकर विश्नोई सम्प्रदाय की ओर से बहुत सहरानीय कार्य किया जा रहा है। साथ ही वन्य जीवों के संरक्षण में जुटी संस्थाएं अथवा कार्यकर्ता अपने-अपने स्तर बहुत अच्छा कार्य कर रहे है। जिनकी बदौलत वन्य प्राणियों को जीवन-दान प्राप्त हो रहा है। जहां-जहां राजकीय चौकियां अथवा व्यवस्था दल है, वहां-वहां चिंकारा को पर्याप्त संरक्षण मिल जाता है। उपलब्ध साधनों के बेहतर उपयोग के सहारे स्थानीय कार्यालय आगे बढ़ रहे है । परन्तु आज भी कई स्थानों पर अथवा चिंकारा की उपस्थिति के निकट वाले क्षेत्रों में विभाग की ओर से व्यवस्था को और अधिक पुख्ता करने की जरूरत है।
बदलते दौर में चिंकारा पर जंगली जानवरों के साथ-साथ शिकारियों का संकट कहीं ज्यादा छाया हुआ है। वहीं जंगली अथवा पालतु कुतों ने भी चिंकारा के जीवन में दुविधा पैदा कर रखी है। यदा-कदा कुतों के द्वारा चिंकारा को घायल अथवा मृत कर दिया जाता है। इन सबसे अधिक दुःखद तो शिकारियों का आतंक है, जो अक्सर रात्रि के समय घात कर चिंकारा का शिकार कर लेते है।
वहीं इन मूक प्राणियों को कई बार विभिन्न रोगों से भी बचाने की जरूरत है। साथ ही प्राकृतिक कारणों से घायल चिंकारा को भी प्राथमिकता से उपचार देने की जरूरत है। ऐसे में सरकारी स्तर के साथ-साथ सामुदायिक स्तर पर भी चिंकारा के संरक्षण को लेकर बहुत अधिक कार्य करने की जरूरत है। साथ ही विभाग की ओर से नियमित निगरानी, प्रतिपुष्टि एवं क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं का हौसंला बढ़ाने जैसी गतिविधियों की बेहद जरूरत है।
लेखक- मुकेश बोहरा अमन
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