साहित्य चक्र

27 January 2022

कविताः कलयुग की सीता



एक सीता थी सतयुग में जिसके नयनो में थी ज्वाला
जिसके मात्र क्रुद्ध दृष्टिपात से दुराचारी हो जाते भष्म
वह हरी गई दुष्ट रावण से देनी पड़ी अग्नि परीक्षा
रही रावण की कैद में बचा नहीं पाई अपना गृहस्थाश्रम

राम जैसे सदाचारी पति लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न से देवर
रहे निहारते निरंकुश स्वार्थी समाज के तेवर
"कलयुग की सीता" ने त्यागा निर्मम समाज जनित संस्कारशीलता
गहरे तालाब में किया विसर्जन छद्म आचार शालीनता

तब था एक रावण सद्गुणी आज हैं कण कण में रावण
कलयुग की सीता के नहीं वीर पुत्रवत रक्षक देवर
राम से एक पत्नी-व्रती, वीर,सदाचारी मर्यादाशील, सहचर
उसने सीखे जुडो और कराटे उसे कुश्ती के भी गुर हैं आते

अब उसे स्वयँ पर है विश्वास नहीं करती पति देवर की आस
कलयुग में पति बन जाता रावण पुत्रवत देवर बन रहा दुःशाशन
रिश्तों की कहाँ बची है मर्यादा लज्जाशील कैसे बने "कलयुग की सीता"


- लेखकः निर्मला कर्ण


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