साहित्य चक्र

30 January 2022

कविताः अधूरे ख़्वाब



मन की अनेकों हसरतों को,
इक सांचे में जो ढाले।
नयनों में समाते है वो,
बन ख़्वाब बड़े ही प्यारे।

लक्ष है बन जाता जीवन का,
ख्वाबों को पूरा करना।

लगे रहते हम न ठहरते,
हमें तो बस ख्वाबों को,
यथार्थ में लाना।

पर फिर भी जीवन के कुछ,
रह जाते ख़्वाब अधूरे।
चाहते है सच हो जाएँ,
पर कर नहीं पाते पूरे।

इक निराशा सी मन में,
फिर घर कर जाती हैं।
अधूरे ख्वाब लिए जिंदगी,
नीरस हो जाती हैं।

पर नीरसता के भाव से,
जीवन तेरा बोझिल हो जाएगा।
अधूरे ख्वाबों को पूरा करने का,
फिर जज़्बा कहाँ से लाएगा।

रख विश्वास स्वयं पर बन्दे,
और कर्म तू कर।
अधूरे ख़्वाब हो सकते पूरे ,
तू कोशिश तो कर।


                                         लेखिका- नंदिनी लहेजा


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