साहित्य चक्र

27 January 2022

कविताः हां हम फौजी है


हां हम फौजी है देश के रक्षक है,
देश की खातिर दुश्मन से लड़ते हैं,
हर मौसम से हम लड़ते भिड़ते है,
कभी तपते रेगिस्तान में तपते है,
तो कभी (कश्मीर)ठंड में अकडते है,
तो कभी बरसात के थपेड़े सहते हैं,
हर हाल में भारत मां की रक्षा करते हैं,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है, का
तेरी मोहब्बत में तो हम अपना घर परिवार तक भूल जाते हैं,
जीवन की इस पाठशाला में हम डर को भी भूल जाते हैं,
तेरे प्यार में सारे जहां को छोड़ आते हैं,
भारत मां की खातिर खुद की मां को रोता छोड़ आए हैं,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है,
देश की शान, मान, अभिमान की खातिर हर मुश्किल से जुझते है,
देश के फर्ज की खातिर खुद को भी कुर्बान कर देते हैं, मृत्यु को स्वय हाथों पर लेकर चलते है,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है,
कड़कड़ाती ठंड में भी हम सब रह लेते हैं,
भारत मां की ममता में हर मुसिबतो को  हंस कर सह जाते,
भारत मां की रक्षा के खातिर बहनों की राखीया भी भुल आते हैं,
तुझसे जुड़ा है जबसे नाता अपने भाई बहनों को बिलखता छोड़ आए हैं,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है,
इसलिए हर रिश्ते नाते छोड़ आए है,
ऐ मेरे प्यारे वतन तेरे लिए तो हम खुद को भी भूल आए हैं,
तेरी मोहब्बत में हम अपना घर आंगन छोड़ आए हैं,
देख था मां ने शादी का जो सपना उसे भी तोड़ आए हैं,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है,
तेरे इश्क में तो हम सारे जहां को भूल आए हैं,
अपने बचपन को भी भूल आए हैं,
उन मस्ती के पलों को एक संदूक में बंद कर आए हैं,
तेरी आगोश में जिन्दगी को भी भुल कर आए हैं,
अब तो दिवाली, और ईद सब कुछ तु ही है,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है,
माता ,पिता ,भाई, बहन आदि सब कुछ तु ही है,
और तु ही अब गीता कुरान बाईबल है,
और तु अब हमारी जिंदगी है शान मान अभिमान है,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है।


लेखिकाः कुमारी गुड़िया गौतम


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