साहित्य चक्र

30 January 2022

पढ़िए 30 जनवरी 2022 की शीर्ष-10 कविताएं












राज्य पशु चिंकारा की चीख कोई तो सुने ?


        
राज्य पशु चिंकारा को पर्याप्त संरक्षण की आज भी दरकार, निगरानी बढ़ाने की सख्त जरूरत





  चिंकारा राजस्थान राज्य का वन्य श्रेणी में राज्य पशु है। जिसे 22 मई 1981 को राजस्थान का वन्य श्रेणी में राज्य पशु घोषित किया गया। चिंकारा एंटिलोप प्रजाति का जीव हैं। यह एक शर्मिला प्राणी होने के साथ-साथ अकेले में रहना पसंद करता हैं। चिंकारा को सामान्य आम बोलचाल में छोटा हिरण कहकर भी पुकारा जाता है। चिंकारा की आंखे बहुत ही सुन्दर और लाजवाब होती है । चिंकारा का रंग लाल-भूरा होता है । जो हर किसी को अपनी ओर सहजता से आकर्षित कर लेता है।


  चिंकारा मुख्य रूप से दक्षिण एशिया में पाए जाते है। भारत में राजस्थान की जलवायु चिंकारा के अनुकूल बन पड़ी है। राजस्थान में चिंकारा बहुतायत में पाए जाते है। चिंकारा बच्चे को जन्म देने वाला एक स्तनधारी प्राणी है । चिंकारा को भारतीय गजेला के नाम से भी जाना जाता है। इसकी घ्राण शक्ति और दृष्टि सामान्य होती है, लेकिन यह शिकारी की आहट पाकर तेजी से छिप जाता है या उस स्थान से भाग जाता है। वहीं चिंकारा बहुत ही सीधा पशु हैं । जो किसी को नुकसान नहीं पहुचाता हैं। लेकिन चिंकारा स्वयं आज शिकारियों की मार से बेबस होकर चीख रहा है। जिसे शिकारियों द्वारा बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया जाता है । हमें इन बेजुबान, निरीह प्राणी की पुकार सुननी चाहिए और उनके संरक्षण के प्रयास करने चाहिए।


  चिंकारा को राज्य पशु घोषित करने के बाद इनके संरक्षण का सरकार व प्रशासन का राजकीय दायित्व बन जाता है, वहीं संरक्षण को लेकर कई प्रकार के कानून भी लागू हो जाते है। जिससे उम्मीद रहती है कि राज्य पशु पर्याप्त संरक्षण मिल सकेगा। लेकिन चिंकारा का जीवन आज भी शिकारियों के चुंगल में फंसा हुआ है। अरण्य, जंगलों और खेतों में स्वच्छन्द विचरण करने वाला मनोहारी चिंकारा शिकारियों की चालबाजियों से नही बच पाता है। 



शिकार के कई मामले प्रकाश में भी आते है । लेकिन कई मामले प्रकाश में ही नही आते है। शिकार तक हो जाता है परन्तु खबर तक नही पड़ती है। वहीं राज्य में वन्य जीवों के संरक्षण विशेषकर हिरणों के संरक्षण को लेकर विश्नोई सम्प्रदाय की ओर से बहुत सहरानीय कार्य किया जा रहा है। साथ ही वन्य जीवों के संरक्षण में जुटी संस्थाएं अथवा कार्यकर्ता अपने-अपने स्तर बहुत अच्छा कार्य कर रहे है। जिनकी बदौलत वन्य प्राणियों को जीवन-दान प्राप्त हो रहा है। जहां-जहां राजकीय चौकियां अथवा व्यवस्था दल है, वहां-वहां चिंकारा को पर्याप्त संरक्षण मिल जाता है। उपलब्ध साधनों के बेहतर उपयोग के सहारे स्थानीय कार्यालय आगे बढ़ रहे है । परन्तु आज भी कई स्थानों पर अथवा चिंकारा की उपस्थिति के निकट वाले क्षेत्रों में विभाग की ओर से व्यवस्था को और अधिक पुख्ता करने की जरूरत है।



  बदलते दौर में चिंकारा पर जंगली जानवरों के साथ-साथ शिकारियों का संकट कहीं ज्यादा छाया हुआ है। वहीं जंगली अथवा पालतु कुतों ने भी चिंकारा के जीवन में दुविधा पैदा कर रखी है। यदा-कदा कुतों के द्वारा चिंकारा को घायल अथवा मृत कर दिया जाता है। इन सबसे अधिक दुःखद तो शिकारियों का आतंक है, जो अक्सर रात्रि के समय घात कर चिंकारा का शिकार कर लेते है। 



वहीं इन मूक प्राणियों को कई बार विभिन्न रोगों से भी बचाने की जरूरत है। साथ ही प्राकृतिक कारणों से घायल चिंकारा को भी प्राथमिकता से उपचार देने की जरूरत है। ऐसे में सरकारी स्तर के साथ-साथ सामुदायिक स्तर पर भी चिंकारा के संरक्षण को लेकर बहुत अधिक कार्य करने की जरूरत है। साथ ही विभाग की ओर से नियमित निगरानी, प्रतिपुष्टि एवं क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं का हौसंला बढ़ाने जैसी गतिविधियों की बेहद जरूरत है।




                                                 लेखक- मुकेश बोहरा अमन


कविताः माता-पिता



मेरे आदरणीय, प्यारे माता-पिता
आपका प्रेम, मेरी जिंदगी है,
आप दोनों ही, मेरी बंदगी है!

आप ही मेरे माता-पिता हो, हर जन्म में,
आप की झलक हो, मेरे हर करम में!

कितना सुंदर आप दोनों को प्रकृति ने बनाया,
आपके आशीर्वाद का हो, हमेशा मुझ पर साया!

मुस्कुराते रहो आप, यही मेरी चाहत है,
आपको खुश देखकर, मेरे दिल में राहत है!

सबसे अनमोल तोहफा, आप हो मेरे लिए,
मुझे खुश रखने के लिए, आपने तो हर जतन किए!

बचपन में जब भी मैंने जिद करना शुरू किया,
जब जो भी मांगा, कैसे भी दिला दिया!

आपकी दी हुई तहजीब ने, मुझे हर एक का सम्मान करना सिखाया,
सही राह पर चलना आपने ही हमेशा समझाया!
   
जब भी बैठी हूं मैं आपके पास
खत्म हो जाती है जन्नत की तलाश!


                                   लेखका- डॉ. माध्वी बोरसे

कविताः माँ-बच्चा




धूप में दिनभर बाप जलता है, चूल्हे पे मां तपती  है,
तब कहीं जाके इस जमाने में, घर-गृहस्थी चलती है।।

           थकानें पूरे दिन की वो, जो माथे पर झलकती है,
           शाम मुस्काते बच्चो की, हंसी में ही पिघलती है।।

भले दिन भर मशक्कत बाद खाली हाथ लौटे बाप,
जब बच्चे मुस्कराते हैं, कसम से जां निकलती  है।।

          बाप का हाथ घिसता है, लकीरे मां की भी मिटती हैं,
          कहीं जाके फिर औलादों की, तकदीरे  लिखती  हैं।।

कभी जो झांककर देखो, तनिक उन धुन्धली आन्खो में,
ख्वाब  अपने  सुलाकर सब, तुम्हारे ख्वाब  बुनती  हैं।।

          उन्हे चिन्ता ना खाने की, दवाई की  ना  जीने  की,
          फिक़र बच्चो की बस उनको, आठो धाम रहती है।।

भले कितनी  उमर के  भी, बड़े  हो जाते  है बच्चे,
कि लम्बी उम्र खातिर और, मां उपवास करती है।।

           जमाने भर की  दौलत को, कमा लेते हैं  वो  बच्चे,
           विरासत में बुजुर्गों की दुआएं, जिनको मिलती हैं।।


                                                      पंकज श्रीवास्तव 


कविताः वो आई थी




वो लौट के आई थी 
लेकिन अब मैं वैसा नहीं था 
उस होने में और अब होने में 
कितना कुछ बदल गया था 
प्रेम, लगाव, अपनापन और 
इस तरह के हर शब्दों की 
जाने कितनी परिभाषाएं 
मन ने बना ली थीं
तब मन जानता नहीं थी कि 
जब कोई अच्छा लगता है 
तो कैसा लगता है 
किसी को देख लेने भर से 
कैसे दिल धड़कता है 
किसी की याद में घंटों बिताना 
कैसा लगता लगता है 
किसी का देख कर यूँ मुस्कुराना 
कैसा लगता है 
तब पता नहीं था कि प्रेम में
स्वाभिमान आहत नहीं होता 
तब पता नहीं था कि 
किसी के ना मिलने से 
प्रेम खत्म नहीं होता 
तब पता नहीं था 
किसी से प्रेम हो जाना 
मुझे इतना अच्छा बना देगा 
कि मैं किसी से नफ़रत नहीं कर पाऊंगा 
अब भी  मैं प्रेम का होना स्वीकार नहीं कर पाता 
क्योंकि मैं डरता हूँ कि ये स्वीकार करते ही कि 
मुझे उससे प्रेम है 
मैं फिर से उसे खो दूंगा


                                                    लेखक- अभिषेक कुमार मिश्र


कविताः अधूरे ख़्वाब



मन की अनेकों हसरतों को,
इक सांचे में जो ढाले।
नयनों में समाते है वो,
बन ख़्वाब बड़े ही प्यारे।

लक्ष है बन जाता जीवन का,
ख्वाबों को पूरा करना।

लगे रहते हम न ठहरते,
हमें तो बस ख्वाबों को,
यथार्थ में लाना।

पर फिर भी जीवन के कुछ,
रह जाते ख़्वाब अधूरे।
चाहते है सच हो जाएँ,
पर कर नहीं पाते पूरे।

इक निराशा सी मन में,
फिर घर कर जाती हैं।
अधूरे ख्वाब लिए जिंदगी,
नीरस हो जाती हैं।

पर नीरसता के भाव से,
जीवन तेरा बोझिल हो जाएगा।
अधूरे ख्वाबों को पूरा करने का,
फिर जज़्बा कहाँ से लाएगा।

रख विश्वास स्वयं पर बन्दे,
और कर्म तू कर।
अधूरे ख़्वाब हो सकते पूरे ,
तू कोशिश तो कर।


                                         लेखिका- नंदिनी लहेजा


कविताः शराब माफ़िया




शराब माफ़िया का फैला जाल
खबर नहीं किसी को कानों कान
कैसे यह धंधा चलता रहा इतने दिन
न पुलिस ने न एक्साइज ने दिया ध्यान

पैसे के खेल ने काम दिया बिगाड़
मेज के नीचे से पैसा चल रहा था
किसी की मजाल बिना पैसे के होता
तभी तो यह धंधा खूब पल रहा था

मन में क्यों नहीं आया तेरे
नकली दारू क्यों बना रहा
चार पैसों की खातिर लालची
क्यों अपनों की चिता जला रहा

मिलावट करके तूने क्या पाया
कई घरों के बुझा दिए चिराग
पुलिस और आबकारी दोनों
सोए क्यों थे अब तक विभाग

कितना स्वार्थी आज हो गया
मालिक देख तेरा इंसान
पैसे के लालच में रहता
दूसरे को समझता जानवर समान

दूसरों के स्वास्थ्य से जो कर रहे खिलवाड़
बंद क्यों हैं उनके लिए जेलों के किवाड़
मौत की सूली पर चढ़ा दो उन्हें
हरी भरी जिंदगियां जिन्होंने दी उजाड़

बड़ा दुखद है हमारे तंत्र का घटना 
घटित होने के बाद ही हरकत में आना
यदि पहले से विभाग रहें सतर्क
तो किसी को न पड़े फिर पछताना


                                      लेखक- रवींद्र कुमार शर्मा


कविताः सन्नाटा



एक सन्नाटा सा छाने लगा है
अंदर ही अंदर।
बहुत कुछ मेरा अंतर्मन
कहना चाहता है,
मगर पता नहीं क्यों ?

लपक कर बैठ जाता है
ये सन्नाटा जुबान पर।
बहुत सी बहती हुई वेदनाए
ह्रदय तल से
बाहर निकलना चाहती हैं,
मगर पता नहीं क्यों ?

ये सन्नाटा इन वेदनाओं को
अपनी सर्द हवाओं से
अंदर ही अंदर
क्यों जमा देता है ?

                                    लेखक- राजीव डोगरा



कविताः "तरूणी"

संगीता


सुंदर सलोनी तरुणी।
गागर ले चली तीर ताल।
गागर भरन परंतु गागर।

भरन पूर्व सूर्य अस्ताचल।
होने को बेताब तबही। 
अनायास पिया स्व दृग।

सम्मुख पा सुध-बुध खो।
गागर भरन भूल।
गागर तज जल मध्य।

पिया पा बाहों में आलिंगनबद्ध।
हुई भाव विभोर स्व को भूल। 
एक दूजे में खो गए।

द्वौ तन हुए एक मानो।
द्वौ तन आत्मा मिलन।
पा हुई एक-दूजे में समा।
हो गई एक ही आत्मा।


                     लेखिका- संगीता सूर्यप्रकाश


कविताः सिर्फ राजनीति है

जितेंद्र कबीर



दूसरों को दबाकर
और अपनों को मूर्ख बनाकर रखने की
एक सोची-समझी रणनीति है,
बताया जाता है दुनिया में धर्म-रक्षा जिसे
असल में वो सिर्फ और सिर्फ राजनीति है।

वृहद अर्थों में 
अपने-अपने ढंग से
जीवन-यापन का महज एक तरीका 
भर है धर्म,
फूट उसके आधार पर 
लोगों की आपस में डलवाकर 
राज उनके ऊपर करने की
सदियों से चली आ रही रीति है,
बताया जाता  है दुनिया में धर्म-रक्षा जिसे
असल में वो सिर्फ और सिर्फ राजनीति है।

धर्म के आधार पर 
कट्टरता को बढ़ावा देने वाले देशों का
हाल देख लो दुनिया भर में,
भूख, गरीबी, हिंसा, भ्रष्टाचार और
तानाशाही से हैं सब के सब जूझ रहे,
धर्म के नाम पर जनता को
मूलभूत अधिकारों से वंचित करने की
सबमें चल रही अनीति है,
इसलिए कहता हूं कि
वक्त है अभी समझ जाओ
बताया जाता है दुनिया में धर्म-रक्षा जिसे
असल में वो सिर्फ और सिर्फ राजनीति है।


                                 लेखक- जितेन्द्र 'कबीर'


कविताः शहिदों से मिली आजादी



शुरू हुई गणतंत्र दिवस की तैयारी,
सीमाओं पर लड़ते लड़ते कितनों,
ने है अपनी जान गंवाई (सैनिक)।

तब जाकर मिली हमें ये आज़ादी,
देश के सैनिक है दुश्मन पर भारी।

अब लड़ने की है हम सबकी बारी,
देश के प्रति है अपनी भी जिम्मेदारी।

लक्ष्मीबाई, भगतसिंह, सुभाष चन्द्र,
सावित्रीबाई, गांधी की है बलिदानी।

जिन्होंने रचाया इतिहास बनी कहानी,
मानो लो तुम लाख तीज त्यौहार,
पर न भूलों इन सब की है कुर्बानी।

न भूलों आजादी की वो रात पुरानी,
उठो देश के जवानों तुम हो पहरेदारी।
शुरू हुई गणतंत्र दिवस की तैयारी।।



                                लेखिका- कुमारी गुड़िया गौतम


कविताः इंकलाब जिन्दाबाद रहे




हम हिन्दुस्तानी हैं यहाँ अब हर एक जन बताएगा 
हिन्दु हो या मुस्लिम नौजवान जन गण मन गायेगा
और अम्बर बाटा बाटी धरती अब तिरेंगे को न बाटों
जोश हो की हर बच्चा हिमालय पर तिरंगा लहराएगा

ये एक दिन की देशभक्ती नहीं हमे यहाँ जूनून होना चाहिएं
में रहु या न रहु मिट्टी हो जाऊं पर मेरा ये देश होना चाहिएं
मरना हैं यहाँ हर इंसा को जिसका कफ़न उसके वस्त्र होंगे
में मरू देश के लिए तो मेरा कफ़न बस तिरंगा होना चाहिएं

यहाँ तिरंगा हैं उन दीवानो का जो इसकी शान पर मर मिटे
धन्य हैं वह माँ जिसके बेटे इसके गौरव गान पर मर मिटे
भगत सिंह राजगुरु और बिस्मिल जैसे हुएं हैं परवाने यहां
जो हंसते हंसते हमारे ईस प्यारे से हिन्दुस्तान पर मर मिटे

जब भी लब से निकले दुवा तो यही मेरा मुल्क आबाद रहे
छोड़कर गये अपने परिवार को शहादत में वो वीर याद रहे 
में खड़ा रहुं देश की सीमा पर अपने सीने पर गोली खाऊ
चेहरे पर मुस्कान हो और लबों पर इंकलाब जिन्दाबाद रहे


                                   लेखक- सोनू धनगाया


कविताः विश्वजननी भवानी माँ

डॉ. मनीषा कुमारी



विश्वजननी माँ कर दो मेरी नैया भवर से पार ,
जगतजननी माँ भवानी दे दो अपना थोड़ा प्यार ,
बहुत दिन से शरण में आई हूं माँ तेरी ,
माँ भवानी कर लो न स्वीकार मेरी गुहार ,

जिस उद्देश्य से इस दुनियां में भेजी हो माँ,
उस लक्ष्य तक पहुंचने के क़ाबिल बना दो माँ,
इतनी शक्ति दो मुझे की डगमगाये न कदम कही ,
हर राह के काँटो को फुल समझ कर आगे बढूँ माँ ,

बस इतनी सी विनती स्वीकार करो माँ,
अपने चरण कमलों में थोड़ा सी जगह दे दो माँ ,
नही चाहिए कोई जग में अपना न किसी का साथ 
 अपना साथी बना लो धन्य हो जाये मेरा यह संसार,

वह आत्मबल शक्ति दो मुझें  माँ ,
दुनियां की कुरीतियों को मिटा पाऊँ,
हर घर में तिमिर को मिटाकर ,
शिक्षा का अलख जगाऊँ माँ,

चाहे दुःख दर्द हज़ार मिले मुझे माँ,
उससे लड़ पाऊँ वह हिम्मत दो माँ,
मेरी हर चूक को क्षमा करके माँ ,
अपने सीने से लगाके अपना प्यार देदो माँ 


                                   लेखिका- मनीषा कुमारी


27 January 2022

कविताः हां हम फौजी है


हां हम फौजी है देश के रक्षक है,
देश की खातिर दुश्मन से लड़ते हैं,
हर मौसम से हम लड़ते भिड़ते है,
कभी तपते रेगिस्तान में तपते है,
तो कभी (कश्मीर)ठंड में अकडते है,
तो कभी बरसात के थपेड़े सहते हैं,
हर हाल में भारत मां की रक्षा करते हैं,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है, का
तेरी मोहब्बत में तो हम अपना घर परिवार तक भूल जाते हैं,
जीवन की इस पाठशाला में हम डर को भी भूल जाते हैं,
तेरे प्यार में सारे जहां को छोड़ आते हैं,
भारत मां की खातिर खुद की मां को रोता छोड़ आए हैं,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है,
देश की शान, मान, अभिमान की खातिर हर मुश्किल से जुझते है,
देश के फर्ज की खातिर खुद को भी कुर्बान कर देते हैं, मृत्यु को स्वय हाथों पर लेकर चलते है,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है,
कड़कड़ाती ठंड में भी हम सब रह लेते हैं,
भारत मां की ममता में हर मुसिबतो को  हंस कर सह जाते,
भारत मां की रक्षा के खातिर बहनों की राखीया भी भुल आते हैं,
तुझसे जुड़ा है जबसे नाता अपने भाई बहनों को बिलखता छोड़ आए हैं,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है,
इसलिए हर रिश्ते नाते छोड़ आए है,
ऐ मेरे प्यारे वतन तेरे लिए तो हम खुद को भी भूल आए हैं,
तेरी मोहब्बत में हम अपना घर आंगन छोड़ आए हैं,
देख था मां ने शादी का जो सपना उसे भी तोड़ आए हैं,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है,
तेरे इश्क में तो हम सारे जहां को भूल आए हैं,
अपने बचपन को भी भूल आए हैं,
उन मस्ती के पलों को एक संदूक में बंद कर आए हैं,
तेरी आगोश में जिन्दगी को भी भुल कर आए हैं,
अब तो दिवाली, और ईद सब कुछ तु ही है,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है,
माता ,पिता ,भाई, बहन आदि सब कुछ तु ही है,
और तु ही अब गीता कुरान बाईबल है,
और तु अब हमारी जिंदगी है शान मान अभिमान है,
हां हम फौजी है देश के रक्षक है।


लेखिकाः कुमारी गुड़िया गौतम


कविताः तेरे जाने के बाद


खुद को पहचानने लगे हैं अब हम,
खुद को जानने लगे हैं अब हम,
खुद से खुद को खुश करने लगे हैं अब हम,
तेरे जाने के बाद खुद को बदलने लगे हैं अब हम,

खुद की वजूद से रुबरू होने लगे हैं हम,
सबको नजरअंदाज कर आगे बढ़ने लगे हैं हम,
जिंदगी में बहुत परिवर्तन होने लगें हैं है अब
तेरे जाने के बाद तेरा ही नाम भूलने लगे हैं अब हम,

दुनिया की हकीकत से वाकिफ होने लगें हैं अब हम,
खुद को सपनें को पूरे करने की उड़ान भरने लगे है अब हम,
दर्द को खुशियों में बदलने लगें हैं अब हम,
तेरे जाने के बाद अपनी एक पहचान बनाने लगे है अब हम,


लेखिकाः मनीषा कुमारी 


कविताः गणतंत्र दिवस



गणतंत्र दिवस आ गया, हर्षोल्लास हो गया,
 चारों और धूम मची, हर गली में नारा गूंज गया।

 प्रभात फेरी का दौर चला, हर भारतीय में जोश बढ़ा,
भारतीय संस्कृति की चुनर ओढ़, चल पड़े सब नर नारी, 
तिरंगे की धूम मची, भारत माता की जय के नारे गूंजे, 
गणतंत्र दिवस आ गया हर्षोल्लास छा गया।

नवपरिधान बसंती रंग का, भारत माता आयी हैं,
रंग-बिरंगे फूलों से, मां का आंचल सजाया है।

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सबने शान बढ़ाया है,
वीरों ने इसकी रक्षा में अपना रक्त बहाया है,
आओ मिलकर हम तिरंगा फहरायें झूमें नाचें गाएं बजाएं,
गणतंत्र दिवस आ गया हर्षोल्लास छा गया।


लेखिकाः गरिमा लखनवी


पढ़िए 23 जनवरी 2022 की शीर्ष- 10 कविताएँ



पहली कविता



दूसरी कविता



तीसरी कविता




चौथी कविता



पांचवी कविता



छठीं कविता



सातवीं कविता



आठवीं कविता



नौवीं कविता



दसवीं कविता