साहित्य चक्र

04 December 2018

4 दिसंबर भारतीय नौसेना दिवस


नौसेना हमारे देश की एक सामुद्रिक अंग है। जिसकी स्थापना 1612 में हुई..। भारतीय नौसेना केवल सामुद्रिक सीमाओं में ही नहीं बल्कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति की भी ऱक्षक माना जाता है...। हमारे नौसेना विश्व की पांचवी सबसे बड़ी नौसेना है।
जो लगभग 65 हजार भारतीय नौसैनिकों से लैस है..। जो पूर्वी, पश्चिमी, दक्षिणी तीन कमांडों में बटी हुई है..। पूर्वी कमांड का हेड ऑफिस विसाखापट्टा, पश्चिमी कंमाड का हेड ऑफिस मुंबई तो दक्षिणी कमांड का हेड ऑफिस कोच्चि में स्थित हैं।  
आपको बता दें पिछले कुछ सालों में हमारी नौसेना लगातार तेजी से आधुनिकीकरण की ओर सफल तरीके से आगे बढ़ रही है...। भारतीय नौसेना की कमान वर्तमान में एडमिरल सुनील लांबा के हाथों में है। भारतीय नौसेना का इतिहास सैकड़ो वर्ष पुराना है...। आजादी से पहले जहां हमारी नौसेना की कई बार नामाकरण और विभाजन हुआ..। जहां शुरु में इसे इंडियन मेरीन के नाम से जाना जाता था, तो वहीं 1685 में इसका नाम बंबई मेरीन रखा गया जो 1830 तक चला..। भारतीय नौसेना का द्वितीय विश्वयुद्ध के समय विस्तार हुआ जहां पहले 2 हजार सैनिक थे उसे बढाकर 30 हजार किया गया..। साथ ही आधुनिक जहाजों की संख्या भी बढ़ाई गई..।स्वतंत्रता के पश्चात हमारी नौसेना नाम मात्र की थी..। विभाजन के वक्त लगभग एक तिहाई नौसेना पाकिस्तान के हिस्से में चली गई..। इतना ही नहीं बल्कि देश के महत्वपूर्ण नौसैनिक संस्थान भी दुश्मनी मुल्क पाकिस्तान के ही हिस्से में आए..। जिसके बाद हमारी सरकार ने नौसेना के विस्तार की तत्काल योजना बनाई...। जिसके बाद सरकार ने नौसेना के लिए हजारों टन क्रूजर खरीदा...। जिसमें राजपूत, राणा, गोदावरी, शामिल है...।
सन् 1964 तक भारतीय नौसेना कई बड़े हथियारों से लैस हो गई..। जिसमें विक्रांत जैसे वायुयानवाहक भी शामिल था...। धीरे-धीरे हमारी सरकारों ने नौसेना सहित देश के तीनों सेनाओं को मजबूत और आधुनिक बनाया..। जिसके परिणाम स्वरूप आज हमारी नौसेना विश्व की पांचवी सबसे बड़ी नौसेना के रूप में विश्वभर में जानी जाती है...। आज हमारी नौसेना के पास आधुनिक हथियारों सहित पनडुब्बियां भारी मात्रा में मौजूद है..।
वैसे आपको बता दूं...। हमारे तीनों सेनाओं का प्रमुख हमारे देश के राष्ट्रपति होता है..। जिसे सुप्रीम कमांडर भी कहा जाता है..। इन्हीं नौसैनिकों इस वजह से हमारे देश की समुद्री सीमा सुरक्षित है..। अन्यथा 26/11 जैसे हमले हर दिन सहने पड़ते...।
नौसेना दिवस के मौके पर देश के सभी नौसैनिकों को हमारे ओर से हार्दिक शुभकामनाएं...। जय हिंद जय भारत..। 

                        संपादनः- दीपक कोहली

01 December 2018

हिंसात्मक अहिंसा

हिंसात्मक अहिंसा

जब - जब क्रान्तिकारियों ने आजादी का बिगुल बजाया था
तब-तब अहिंसा ने उनके मनोबल पर कहर बरपाया था
वतन के नौजवानो पर जुल्म हो तो हिंसा नही थी उन्ही,
नौजवानो से कीड़ा भी मर गया तो असली हिंसा वही थी
हर क्रांतिकारी की फाँसी पर गाँधी का हस्ताक्षर बताइये
क्या ऐसा ही होना चाहिये अहिंसा का सफर
क्रांतिकारी अरमानो की हिंसात्मक अहिंसा थी मोहनदास की.
बदौलत मचल के रह गये थे अरमां तड़पी भारती की आस थी
दिया क्रांतिकारियों का साथ नहीं जय हो अहिंसा के चाकू की है
ये गम की गाथा क्रांतिकारियों की सच्चाई पूजनीय बापू की

हिंसात्मक अहिंसा का प्रकोप इतना ज्यादा था
लगता है आजादी से भी समझौता का इरादा था
हरकतें जिसकी भारती के दामन पर तमाचा हो था
सत्ता का लोभ जिसे कहते क्यों चाचा हो
जिसकी एक गलती सौ अच्छाइयों पर भारी है
जिसकी बदौलत आज तक सीमा पर जंग जारी है

आजादी का उद्घोष हुआ जब देश की जनता सोई थी
सुन वतन के अरमॉ तड़पे, बिखरी बिंदिया रोई थी।
गर ये दो रईस आजादी से न खेले होते शायद
पाक होता न ही कश्मीर के झमेले होते

रचनाकार- बलवन्त बावला

# थल सेना..! देश की सबसे बड़ी ताकत..!

भारतीय थल सेना यानि हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत..। सशस्त्र बल का सबसे बड़ा अंग..। हमारी थल सेना..। हमारी थल सेना देश का वो ताकत है जिससे पूरी दुनिया हिलती है..। 


आइए..! आज हम आपको बताते हैं..। 'थल सेना' की कुछ विशेष तथ्य और जानकारी ...।  

हमारी 'थल सेना' की स्थापना '1 अप्रैल 1895' को हुई..। थल सेना का मुख्यालय 'नई दिल्ली' स्थापित है..। अगर थल सेना के 'आदर्श वाक्य' की बात करें... तो 'सर्विस बिफोर सेवक' यानि 'स्वपूर्ण सेवा' है..। हमारी थल सेना का  'संकेत रंग'- सुनहरा, लाल, काला हैं..। अगर वर्षगांठ की बात करें तो..। प्रति वर्ष '15 जनवरी' को 'सेना दिवस' के रूप में पूरे देश में मनाया जाता हैं...। हमारी थलसेना की वेब साइट  http://indianarmy.nic.in/ है। जिसके माध्यम से आप और अधिक जानकारी ले सकते हैं..और सेना के बारे में आप विस्तार से जान सकते हैं..।  
अगर सेना के 'प्रधान सेनापति' की बात करें..। तो सेना का 'प्रधान सेनापति' देश का 'राष्ट्रपति' होता है..। लेकिन थलसेना की पूरी कमान थलसेनाध्यक्ष के हाथों में होती हैं..। जो 'चार स्टार' 'जरनल' स्तर का अधिकारी होता है..।वहीं थलसेना में सर्वश्रेष्ठ पद 'पांच स्टार' यानि 'फील्ड मार्शल' की रैंक होती है..। जो अब तक के थलसेना इतिहास सिर्फ दो लोग बनें हैं..। 

अगर हम बात करें 'भारतीय सेना' के उद्भव की तो 'ईस्ट इंडिया कंपनी' के रूप में हमारी सेना बनीं थी..। जो बाद में 'ब्रिटिश भारतीय सेना' के रूप में परिवर्तित हुई थी..। स्वतंत्रता के पश्चात इसे 'राष्ट्रीय सेना' के रूप में स्थापित किया...। जो आप विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सेना हैं..। 

हमारी थलसेना का मुख्य उद्देश्य राष्ट्र की सुरक्षा, देश में शांति और राष्ट्रवाद की एकता को सुनिश्चित करना, तथा बाहरी शक्तियों से राष्ट्र की सुरक्षा करना, देश की सीमाओं में शांति व सुरक्षा प्रदान करना हैं..।  



                                                       रिपोर्ट - दीपक कोहली



# बर्फ की चादर, जवानों की जिंदगी

           


जी हां...! आज मैं उन जवानों की बात करूगां..। जो हमारे लिए अपनी जान दांव पर लगाते हैं..। चाहे दिन हो या रात, हर पल.. वो देश की सेवा में तैनात रहते हैं...। हमारे ये जवान देश के लिए अपनी जान दांव पर लगाए सीमा पर खड़े रहते हैं। चाहे धूप हो या बारिश या फिर बर्फ की चादर ही क्यों ना हो...। हौसले जिनके बुलंद...! मजबूत जिनके कंधे...! सीना जिनका 56 इंच चौड़ा...। वो कोई और नहीं मेरे देश की शान हैं...। मेरे देश के जवान..।  हमारे ये जवान...। ना झुकते है दुश्मन के सामने...! ना डरते है...! ऑंधी-तूफान से....! मैं जय हिंद...! जय हिंद...! से शुरू कर रहा हूं इनकी वीरता की गाथा...।



आइए आप भी जानिए..। हमारे सैनिकों का वीरगाथा...। जय हिंद-जय भारत..। 

हमारे देश की शान..! हमारे सेना के सैनिक-जवान हैं। जो हमारे लिए अपनी जिंदगी मौत के हवाले कर देते हैं। लेकिन आज हमारे देश में इन जवानों को भी सही तरीके का खाना और इनके परिवार वालों को सही सुविधा नहीं मिल पा रही हैं। जिसके चलते हमारे ये जवान आज सोशल साइट पर अपनी आपबीत बताने को मजबूर हो रहे हैं..। जिसके लिए हमारी सरकार ने अभी तक कोई बड़ा कदम नहीं उठाया हैं। वैसे होने को तो हमारी सरकार कई दांवे करती रही हैं। जिसमें वन रैंक-वन पेंशन, सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कई मुद्दे शामिल हैं। कई बार तो सरकार और विपक्ष आपस में ही लड़ते रहते हैं। वैसे मैं किसी पार्टी के पक्ष में नहीं बोलना चाहता हूं..! क्योंकि राजनीतिक पार्टियां सब एक जैसी होती हैं। और ना ही मैं इस विषय पर कोई राजनीतिक मुद्दा खड़ा  करना चाहता हूं। बस जवानों पर ही बात करूगां..। हमारे जवान किन हालातों में देश की रक्षा करते हैं। उन कठिनाइयों और मुश्किल पहाड़ों का सामना कैसे करते हैं...? जो खतरनाक ही नहीं जानलेवा भी होते हैं..। क्या आपने कभी आपने सोचा है आखिर कैसे रहते होंगे हमारे ये सेना के जवान...? उस बर्फ की चादर पर कैसे 24 घंटे खड़े रहते होंगे..? जहां हम सोच भी नहीं सकते...कि वहां जीवन जीना कैसा होगा...? आखिरकार अब वो समय आ ही गया है..! कि हर देशवासी को सेना के जवानों के बारे में पता हो..। हमारे जवान किन परिस्थियों में काम करते हैं और अपना समय बीतते हैं..।  

हर देशवासी को जानना होगा...! हमारी सेना कैसे रहती है..?  कैसे सीमा पर पैनी नज़र रखती हैं...? कैसे इसमें शामिल हुआ जा सकता है..?

आइए आपको बताते हैं..। कैसे हमारी सेना की भर्ती प्रक्रिया होती हैं..।  एक आम युवा को पहले भर्ती प्रतिक्रिया पार करनी होती है। उसके बाद उसे नौ महीने कड़ा अभ्यास कराया जाता हैं..। जिसके बाद उसे रंगरूट की ट्रेनिंग दी जाती हैं। जिसके बाद वह युवा उस लायक बनता हैं..। जिसकी जरूरत सेना को होती हैं..। अनुशासन, दया-भाव, नियम आदि सीखाया जाता है। जिसके बाद एक युवा सेना का सच्चा सैनिक बन पता हैं..। देश के लिए मर-मिटने की कसमें खाई जाती हैं..। चाहे घर में मां बीमार हो या फिर पत्नी गर्भ से हो..। अगर देश खतरें में है...! तो हमारे जवानों के लिए सबसे पहले देश यानि भारत माता हैं..।  



                                            * संपादक- दीपक कोहली *   

गीतों का कवि संपूर्ण 'गुलज़ार'...!



'गुलज़ार' यानि 'संपूर्ण सिंह कालरा' जो एक प्रसिद्ध 'गीतकार' और 'पटकथा लेखक' व एक प्रसिद्ध कवि थे...। जिनका जन्म 18 अगस्त 1934 को एक 'सिख' परिवार में  हुआ..। जिनके पिता का नाम 'मक्खन सिंह' तो माता का नाम 'सुजन' था..। वैसे आपको बता दूं...! 'गुलज़ार' का जन्म 'पंजाब' के 'झेलम' जिले के 'दीना' गांव में हुआ था..। जो अब पाकिस्तान में था..। 'गुलज़ार' अपने पिता की दूसरी पत्नी के इकलौते संतान थे..। उनकी माता उन्हें बचपन में ही छोड़ चल बसी थी...। 'गुलज़ार' को ना माँ का आंचल मिला और ना ही पिता का दुलार मिला..। भारत-पाक बंटवारे के समय 'गुलज़ार' का परिवार अमृतसर चला आया और वहीं बस गया...। वहीं 'गुलज़ार' साहब कुछ दिनोंं बाद माया नगरी चले आए..। जहां 'गुलज़ार' साहब ने फिल्म जगत में काम करना शुरू किया..। जिसके बाद 'गुलज़ार' साहब धीरे-धीरे एक महान कवि, गीतकार बनें...। एक बात और आपको बता दूं..। 'गुलज़ार' साहब इससे पहले वर्ली के एक गेरेज में बतौर मेकेनिक के रूप में काम करने लगे..। वहीं खाली समय में कविताएं लिखने लगें..। 'गुलज़ार' साहब ने  आपना पहला गीत 'बिमल राय' की फिल्म 'बंदनी' के लिए लिखा..। 'गुलज़ार' साहब त्रिवेणी छंद के सृजक है..। जो अपने गीतें के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं..। वैसे 'गुलज़ार' की रचनाएं..। हिन्दी, उर्दू, पंजाबी भाषा में ज्यादा पढ़ने को मिलते हैं..। 

अगर हम बात करें..। 'गुलज़ार' को सम्मानित करने की तो इन्हें कई बार सम्मानित किया जा चुका हैं...। सन् 2002 में इन्हें 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' तो वहीं साल 2004 में भारत सरकार ने इन्हें देश का तीसरा सर्वोच्च पुरस्कार 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया..। वर्ष 2009 में इन्हें 'डैनी बॉयल' की निर्देशन में बनी फिल्म 'स्लम्डाग मिलियनेयर' में जय हो गीत के लिए 'ऑस्कर पुरस्कार' से सम्मानित किया जा चुका हैं..। वहीं इसी गीत के लिए इन्हें 'ग्रैमी पुरस्कार' से भी सम्मानित किया जा चुका हैं..। वहीं 'गुलज़ार' को 2013 में 'दादा साहेब फाल्के पुरस्कार' भी मिल चुका हैं..। जो 'गुलज़ार' की हकीकत और सामर्थ्य को दर्शाता हैं..।   

आइए एक नज़र इनकी रचनाओं में डालते हैं..। 
चौरस रात, जानम, एक बूंद चांद, रावी पार, खराशें आदि जैसे इनकी कई रचनाएं हैं..। 'गुलज़ार' जी अपनी रचनाओं से सबका दिल जीत लेते हैं..। चाहे वह आज एक युवा हो या फिर 19वीं सदी का एक उम्र दराज आदर्य हो..।   

अगर 'गुलज़ार' साहब के बतौर निर्देशक जीवन की बात करें...तो इन्होंने बतौर निर्देशक अपना सफर 1971 में 'मेरे अपने' फिल्म से शुरू किया..। इससे पहले 'गुलज़ार' साहब ने 'आशीर्वाद, खामोशी' जैसे फिल्मों के लिए पटकथा लिखी थी..। जो फिल्म आज भी लोगों के जुबां पर याद हैं..। 
'गुलज़ार' वो शख्स है जो हिंदी-उर्दू का मिश्रण बखूबी करते हैं..। 'गुलज़ार' अपनी हर  कविता और गीत में उर्दू और हिंदी को एक नया रूप देते हैं..। जो हिंदी-उर्दू भाषा के लिए अमृत जैसा है..।  हम आशा करते हैं..। 'गुलज़ार' अपनी कविताओं और गीतों से हमारा मन हर हमेशा बहलाते रहें..। भगवान उन्हें हर खुशी दें..। उनकी हर मनोकामना पूर्ण हो..। 

                                                           'धन्यवाद' 


                                                                संपादक: दीपक कोहली



#पहाड़ का गाँधी- इंद्रमणि बडोनी#



+                                               


'पहाड़ का गांधी' :- इंद्रमणि बडोनी वो नाम है जो देवभूमि उत्तराखंड की आत्मा में बसा हैं..।  आज अगर आप उत्तराखंड राज्य के नागरिक हैं..तो आपको भी जानना चाहिए..। आखिर कौन है 'उत्तराखंड का गांधी'...? 
इंद्रमणि बडोनी वो शख्स है जिन्होंने उत्तराखंड राज्य की नींव रखी..। इन्हें 1994 उत्तराखंड आंदोलन का सूत्रधार भी कहा जाता हैं..। बडोनी जी जुबान के पक्के और मजबूत इरादों  वाले शख्सियत थे..। जो अपने दम पर सत्ता हिलाने का माद्दा रखते थे..।  




2 अगस्त 1994 का वो दिन उत्तराखंड प्रदेशवासी कभी नहीं भूल पाएगें..। जब पौड़ी के प्रेक्षागृह के सामने बडोनी जी आमरण अनशन पर बैठे...। जिस अनशन ने पूरे देश की राजनीति में खलबली मचा दी..। जिसके बाद 7 अगस्त 1994 को इंद्रमणि जी को जबरदस्ती मेरठ अस्पताल में भर्ती करवाया गया..। कुछ ही दिनों बाद इंद्रमणि को दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती करवाया गया...। जहां उन्हें कड़े पहरे में रखा गया..। इसी दौरान यह आंदोलन पूरे प्रदेश में फैल गया...। यह इंद्रमणि बडोनी की ही आवाज थी..। जिसने 1994 के आंदोलन को एक विशाल रूप दिया..। जनता के भारी दबाव में बडोनी जी ने 30वें दिन ही अपना अनशन तोड़ दिया..। 

उस समय बीबीसी की एक रिपोर्ट में बीबीसी ने कहां था..। 
'अगर आपको चलते-फिरते और जीवित गांधी को देखना है, तो आप उत्तराखंड चले जाअो..। वहां गांधी आज भी विराट आंदोलनों का नेतृत्व कर रहे है'..। 

1 सितम्बर और 2 सितम्बर 1994 का वो काले दिन जब खटीमा हत्याकांड और मसूरी हत्याकांड हुआ था..। जिन कांडों ने पूरे देश को हिला  कर रख दिया..। जिसने पूरे देश की राजनीति में तहलका मचा दिया..। इसके बाद 15 सितम्बर को जब बडोनी जी शहीदों को श्रद्धांजलि देने लिए मसूरी पहुंचे तो पुलिस ने 'बडोनी' जी को 'जोगीवाला' में गिरफ्तार कर सहारनपुर भेज दिया..। इस दमन की प्रदेश में निंदा होने लगी..। जिसके बाद पूरे प्रदेश में उत्तराखंड राज्य की एक नई आग लगने लगी..।  
इंद्रमणि बडोनी एक पतले-दुबले, लम्बी दाढ़ी वाले अदम्य शख्स थे। जिनका जन्म 24 दिसम्बर 1925 को टिहरी रियासत के जखोली ब्लॉक में हुआ था..। इंद्रमणि की प्राथमिक शिक्षा गांव और माध्यमिक शिक्षा नैनीताल से और उच्चतम शिक्षा देहरादून से हुई थी..। बडोनी जी की शादी मात्र 19 साल की उम्र में सुरजी देवी से हुई..। बडोनी जी 1961 में अपने गांव के प्रधान फिर जखोली विकास खंड के प्रमुख भी रहे..। जिसके बाद बडोनी जी ने उत्तर प्रदेश विधान सभा में तीन बार देव प्रयाग विधानसभा से विधायक रहे..। 1977 के विधान सभा चुनावों में बडोनी जी निर्दलीय चुनाव लड़े और कांग्रेस सहित सभी पार्टियों की जमानतें जीत जब्त करवा दी..।  1980 में इंद्रमणि उत्तराखंड क्रांति दल के सदस्य बनें। 1988 में बडोनी जी ने 105 दिन पैदल जन-संपर्क यात्रा की..। जिस यात्रा में बडोनी जी घर-घर जाकर उत्तराखंड राज्य का अवधारणा लोग तक पहुंचायी..। उत्तराखंड राज्य का सपने सबसे पहले बडोनी जी ने ही देखा था..। इस दौरान बडोनी जी को कड़ा संघर्ष किया..। पहाड़ी राज्य के इस सपूत ने 72 साल की उम्र में एक अलग राज्य की निर्णायक लड़ाई लड़ी..। इंद्रमणि बडोनी सन् 1994 से1999 तक इस लड़ाई में जूझते रहे..। लगातार संघर्ष, जन-संपर्क, जनांदोलनों की वजह से बडोनी जी की तबीयत खराब होने लगी..। जिसके बाद 18 अगस्त 1999 का यह सपूत अपनी अंतिम यात्रा की तरफ महाप्रयाण कर गया...।  


                                                       संपादक- दीपक कोहली


अमन का सूर्योदय


सूर्योदय होते ही,
झूम उठता है संसार।

और
अंधकार रूपी ये सँसार,
हो उठता है उजागर,
पड़ते ही सूर्य का प्रकाश।

भंवरे
गुनगुनाते हुए,
आ बैठे फूलों पर।

और
सुगंधित हो उठता है संसार,
मानो लगता है आज सवेरा हुआ है बरसों बाद।

हे ईश्वर करना आप दया,
अपनी बनाई हुई इस श्रष्टि पर।

हो जाये जग मग , जग मग,
ये बनाया हुआ आपका संसार।

                        


                                      अमन वशिष्ठ

तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
सिंह की सवार बनकर
रंगों की फुहार बनकर
पुष्पों की बहार बनकर
सुहागन का श्रंगार बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
खुशियाँ अपार बनकर
रिश्तों में प्यार बनकर
बच्चों का दुलार बनकर
समाज में संस्कार बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
रसोई में प्रसाद बनकर
व्यापार में लाभ बनकर
घर में आशीर्वाद बनकर
मुँह मांगी मुराद बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
संसार में उजाला बनकर
अमृत रस का प्याला बनकर
पारिजात की माला बनकर
भूखों का निवाला बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी बनकर
चंद्रघंटा, कूष्माण्डा बनकर
स्कंदमाता, कात्यायनी बनकर
कालरात्रि, महागौरी बनकर
माता सिद्धिदात्री बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
तुम्हारे आने से नव-निधियां
स्वयं ही चली आएंगी
तुम्हारी दास बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ


                                       ।।हरीश बहुगुणा।।






फ़तवे की चोट..?





फ़तवा शब्द सुुनते ही इस्लाम याद आता है। या फिर मुस्लिम धर्म गुरू याद आते हैं। आखिर यह फ़तवा क्या है..?  क्या फ़तवा एक अधिकार है..? आखिर क्या है...?  फ़तवा की हकीकत और सच्चाई...? 

आइए आज मैं आपको इस शब्द से रूबरू करता हूं...। आखिर क्या है फ़तवा और किसे कहते है फतवा..? जब मैंने इस शब्द पर अपनी खोज या रिसर्च की तो मुझे कई तर्क मिलें। जैसे फतवे का मतलब अरबी भाषा में लफ्ज़ होता है। जिसका अर्थ मुस्लिम लॉ के अनुसार किसी निर्णय पर नोटिफिकेशन जारी करना या एक राय देना होता है। इस्लाम में फ़तवा शब्द का बड़ा ही महत्व है। आम जनता समझती है, कि फ़तवा किसी विशेष व्यक्ति की जान लेना होता है। वैसे फ़तवे का यह मतलब नहीं होता है। फ़तवा एक इस्लामिक शब्द है जो इस्लामिक कानून से संबंधित हैं या संबंध रखता है। फ़तवे को एक तरह से सुझाव कह सकते है। फ़तवे का शाब्दिक अर्थ असल में सुझाव ही है। इसका मतलब यह है, कि कोई इसे मानने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है। वैसे हमारा देश धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहांं कानून का राज चलता है। संसद जो कानून बनाता है, वह कानून सभी धर्मों पर लागू होता हैं। चाहे हिंदू धर्म हो या फिर इस्लाम ही क्यों ना हो। वैसे आपको बता दूं, मुसलमानों के लिए एक अलग कानून की अवधारणा अग्रेजों की देने है। जो सन् 1937 में मुस्लिम पर्सनल लॉ बनाकर लागू किया गया था। जो आज भी पूरे देश के मुस्लिम समुदाय के लिए लागू हैं। इसलिए यह अंग्रेजों की विरासत है, बल्कि कोई इस्लामिक सिंद्धात नहीं है। दरअसल अग्रेजों ने इसे कानूनी रूप से एक अलग दर्जा देकर उस समय अपना राजनीतिक हित साधा था। जो आज भी होता जा रहा है। जी हां.. आज भी हमारे देश में राजनेता राजनीति के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तत्पर है। चाहे दो अलग-अलग धर्मों के लोगों को लड़ना हो या फिर किसी मुद्दे पर राजनीति करना हो। यह हमारे देश के लिए कैंसर के भी गंभीर बीमारी है...। 




                                                                                       रिपोर्ट- दीपक कोहली  



* देश के सबसे महंगे- 'वकील'


जब - जब वकालत की बात आती है, तो वकीलों का नाम चर्चाओं में आ जाता है..। चाहे मशूहर वकील 'राम जेठमलानी' हो या फिर 'कपिल सिब्बल'...। आज हम बात करेंगे उन नामी वकीलों की, जो एक केस के लाखों रूपये लेते है..। आखिर आम जनता को भी तो पता चलें, इन नामी वकीलों की फीस क्या हैं..?






हमारे देश के सबसे महंगे वकीलों में 'राम जेठमलानी' का नाम सबसे ऊपर आता है..। जो सुप्रीम कोर्ट में एक केस के लिए 25 लाख रूपये लेते है..। तो वहीं हाई-कोर्ट में भी उनकी फीस 25 लाख रूपये ही हैं..। 'राम जेठमलानी' के बाद 'फाली नरीमन' का नाम आता है..।  जो सुप्रीम कोर्ट में 8 से 15 लाख और हाई- कोर्ट में 10 से 15 लाख फीस लेते है..। वहीं तीसरे नंबर पर 'कपिल सिब्बल' का नाम आता है..।





जो सुप्रीम कोर्ट के लिए 5 से 15 लाख फीस लेते है..। इसी तरह 'केटीराज तुलसी' और फिर 'पी. चिंदबरम' व 'सलमान खुर्शीद' का नाम आता है..। 




ये सभी हमारे देश के जाने- पहचाने वकीलों में से एक हैं..। जो अपने फीस को लेकर काफी सुर्खियों में रहते हैं...। कुछ महीने पहले 'राम जेठमलानी' दिल्ली के सीएम 'अरविंद केजरीवाल' के केस की फीस को लेकर सुर्खियों में आए थे...। जब उन्होंने केजरीवाल को अपनी फीस को लेकर नोटिस भेजा था...। मीडिया में यह मामला काफी सुर्खियों में रहा..। विपक्ष पार्टियों ने दिल्ली सरकार पर कई आरोप भी लगाए..।  जिसके कुछ समय बाद यह मामला शांत हो गया...। आप अंदाजा लगा सकते हैं...। हमारे राजनेता अपने केसोंं के लिए लाखों-करोड़ों रूपये इन वकीलों के घर देते हैं...। इससे यह सिद्ध होता है...कि हमारे देश के राजनेता अपने केस के लिए जनता का पैसा कैसे स्वाहा करते हैं...।  यह रिपोर्ट लीगली इंडिया रिपोर्ट  2015 के अनुसार है..।   



                                      रिपोर्ट- दीपक कोहली

भाव में


भाव में
ज्ञात में अज्ञात में
विचार में व्यवहार में
प्रेम में घृणा में
पाप में पुण्य में                
सब में भय !
मेरा शरीर मेरी संम्पत्ति
मेरा यश मेरी प्रतिष्ठा
मेरे संबंध मेरे संस्कार
मेरा विश्वास मेरे विचार           
सब मे भय !
यही "मैं"  मेरे प्राण बन गए
मृत्यु मुझे " मैं " को छीन लेगी            
इसमें भय !
जिसे हम भय सोचते है
सुनते समझते है
वह " मैं "  झूठ हूँ  सर्वधा झूठ !
क्योंकि......न
जैसे तन से " मैं " का त्याग हुआ
भ्रांतियां टूटने लगी
अहंकार से युक्त कामनाएं
हृदय से मुक्त होती चली गई।
"मैं" मेरापन सब मिटता गया
पर हितार्थ जीने के सिवा
अब कोई बिषय कहाँ रहा।
      
मैं सेवक साधन ये सृष्टि        
जीवन मे अब भी भय कहाँ !!

           सुशीला राजपूत


कश्मीर की अमन-अशांति...?



कश्मीर में  अमन और शांति को लेकर आतंक को खत्म करने के प्रयास जारी है..। लेकिन फिर भी कोई रास्ता नहीं निकल पा रहा है..। केन्द्र से लेकर विपक्ष के कई राजनेता कश्मीर का दौरा कर चुके है..। लेकिन फिर भी हालात वहीं के वहीं धरे है..। कभी सेना पर पत्थरबाजी होती है तो, कभी पटाखे और गोलाबारी...। जिससे यह साफ होता है,  कश्मीर के हालात अभी भी गंभीर है..। 


जहां एक ओर केंद्र की मोदी सरकार कई बड़े-बड़े दांवे करती नज़र आती है...तो , वहीं कश्मीर के हालातों से यह साफ हो जाता है, कि कश्मीर मेंं शांति नहीं है..। कभी भारत के हार पर जश्न मनाया जा रहा है, तो कभी सेना के विरूद्ध नारेबाजी...। फिर भी हमारे राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी रोटियां सेंकने में लगी हुई हैं..। 

हर रोज सेना का कोई-ना-कोई जवान कश्मीर में शहीद होता है..। हमारे राजनेता और सरकारें चंद रूपये देकर शहीद के परिवार को चुप कराने की कोशिश करने लगते है..। शहीद का परिवार चंद रूपये लेकर चुप तो हो जाता है..। लेकिन कब तक ऐसा ही चलता रहेगा..। आखिरकार कितने और हमारे जवान शहीद होंगे..? अब वक्त आ गया है...फैसला करने का... या तो आर या फिर पार..। 




सरकारों और राजनीतिक पार्टियों को कश्मीर में ठोस कदम उठाने होंगे..। चाहे आपातकाल लागू करके उठाएं..। हम साथ है केंद्र सरकार के हर फैसले पर..। 

जहां एक ओर पीएम नरेंद्र मोदी अपनी विदेश यात्रायों का सफर रोकने का नाम नहीं ले रहे है..। तो वहीं पीएम मोदी हर महीने किसी ना किसी विदेश दौरे पर रहते है...। जो समझ से परे है...। मुझे पीएम मोदी की विदेश यात्राओं से कोई आपत्ति नहीं है.. । बस हमारे सेना के लिए कुछ अहम कदम उठा लें..। जो हर रोज अपनी जान गंवाते है..और देश की सेवा करते है..।
कश्मीर ही नहीं कई जगहों पर सेना के जवान अपनी जान गंवाते है..। चाहे फिर वो दार्जिलिंग ही क्यों ना हो...या फिर नक्सली इलाके..। 



                                            


                                                            संपादक- दीपक कोहली



* किक्रेट का भगवान...'सचिन'



किक्रेट यानि सचिन...! किक्रेट का नाम लेते ही सीधे सचिन रमेश तेंदुलकर याद आता है..। जी हाँ...! किक्रेट के भगवान सचिन रमेश तेंदुलकर को ही कहा जाता है..। अगर आप भारत में रहते है..। तो आप सचिन तेंदुलकर को जरूर जानते होगें..। भारत में सचिन का मतलब ही किक्रेट होता है..। या किक्रेट मतलब सचिन होता है..। ठीक उसी तरह ऑस्ट्रेलिया में भी किक्रेट का मतलब डॉन ब्रैंडमैन होता है..!






आज हम आपको सचिन और किक्रेट से जुड़ी कुछ अहम जानकारियाँ देने जा रहे है..। शायद ही आपने पहले कभी सुनी हो..। भारत में किक्रेट एक धर्म की तरह पूजा जाता है..। आप ही नहीं हम भी किक्रेट को अपना धर्म मानते है..।  भारत में किक्रेट को 1983 के बाद जो पहचान मिली..। शायद ही उतनी किसी और खेल को मिली होगी..। 1983 से पहले भारत के लोग किक्रेट को जानते तक नहीं तो..यानि किक्रेट से ज्यादा हॉकी खेला जाता था..। उसके बाद जो हुआ...वो आज आपके सामने है...। 1983 का विश्वकप जीतकर भारत ने एक नई उमंग पैदा कर दी..। इस खेल के प्रति..। आज भी बच्चा पैदा होते ही किक्रेटर बनना चाहता है..। सचिन बनना चाहता है..। धोनी बनना चाहता है..। 1983 को विश्वकप जीते के बाद देश को एक ऐसा महान खिलाड़ी मिला..। जो आज किक्रेट का भगवान कहा जाता है..। जी हां वो शख्स कोई और नहीं बल्कि सचिन तेंदुलकर है। 24 अप्रैल 1973 को सचिन तेंदुलकर का जन्म हुआ। सन् 1989 में सचिन ने विश्व किक्रेट में कदम रख दिया...। साल 2013 में सचिन ने विश्व किक्रेट से संन्यास लेने की घोषणा की। 





सचिन ने अपने किक्रेट करिअर में 200 टैस्ट मैच, जबकि 463 वनडे मैच, वहीं एकमात्र 20-20मैच खेला है। सचिन एकमात्र ऐसे खिलाड़ी है जिन्हें देश का सर्वोच्च पुरस्कार 'भारत रत्न' से नवाज गया है..। वहीं साल 2012 में सचिन को राज्यसभा सांसद के रूप में भी नामित किया गया..। सचिन भारतीय किक्रेट टीम के कप्तान भी रहे है..।  सचिन के अपने किक्रेट करियर की शुरूआत 15 नवम्बर 1989 में पाकिस्तान के खिलाफ करांची में पहला टेस्ट मैच खेलकर की..।  तब सचिन मात्र 16 साल के लड़के थे..।





 सचिन ने अंतर्राष्ट्रीय किक्रेट में सबसे ज्यादा रन और सबसे ज्यादा मैच और शतक बनाए हैं...। 30 हजार से ज्यादा रन और 100 शतक लगभग 665 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेले है..। पहला एकदिवसीय दोहरा शतक भी सचिन ने ही लगया..।  सचिन भारत के ही नहीं बल्कि पूरे विश्व क्रिकेट के भगवान माना जाते है..।। 


                                       संपादनः- दीपक कोहली



          

# आतंकवाद - अलगाववाद #

 अातंकवाद व अलगाववाद जैसे शब्द आपने सुने ही होंगे। आखिर मैं इन शब्दों से जाे कहना चाहता हूं। वो मैं आपको इस लेख के जरिए पूरी तरह समझाने की कोशिश करुंगा। आखिर आतंकवाद की शुरुआत कहां से हुई और अलगाववाद क्या है.....?



आतंकवाद शब्द की उत्पति आतंक शब्द से हुई है। आतंकवाद एक प्रकार का माहौल है..। आतंकवाद  को हिंसात्मक गतिविधियों के लिए परिभाषित किया गया है। जो अपने आर्थिक, मानसिक, धार्मिक, राजनीतिक प्रतिपूर्ति के लिए सैन्य और गैर-सैनिकों की सुरक्षा को भी निशाना बनाती है। आतंकवाद ऐसे कार्यों को कहते है, जो किसी प्रकार का आंतक फैलाने के लिए किया जाता है। जो ऐसे कार्य करते है, उन्हीं को आंतकवादी कहते है।आतंकवाद के भी कई रूप है..। जैसे अपारंपरिक युद्ध और मनोवैज्ञानिक युद्ध आदि..। आतंकवाद आज दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है..।





हर देश आज आतंकवाद या फिर अलगाववाद से पीड़ित दिखता है..। आतंकवाद से भारत ही नहीं अमेरिका जैसे देश प्रभावित हो चुके हैं..। आतंकवाद ने दुनिया को कई जख्म दिए है...। आज हर देश आतंकवाद को खत्म करना चाहता है...। आतंकवाद की एक सटीक परिभाषा देना बेहद ही कठिन है...। आतंकवाद किसी भी प्रकार का हो सकता है..। हर देश आतंकवाद को अलग-अगल परिभाषित करता है...। आतंकवाद का मतलब ही तबाही-तबाही है..। आतंकवाद एक ऐसा कीड़ा है..। जिसका मतलब दुनिया में तबाही और आतंक फैलाना है...। संगठन, सरकार, आबादी को डराना ही आतंकवाद की मूल रूप है..। 

                                                        संपादनः-  दीपक कोहली


   





सीमा सुरक्षा बल स्थापना दिवस


जब-जब देश की सुरक्षा की बात होती है तब-तब हमारे सैनिकों और रक्षा बलों की जरूर होती है...। सीमा पर 24 घंटे तैनात रहने वाले सैनिकों को हमारा सलाम...। दोस्तों आज यानि 1 दिसंबर देश के सबसे बड़ी सुरक्षा बल बीएसएफ का स्थापना दिवस है..। इसी मौके पर हम आपके लिए लेके आए है...। बीएसएफ की कुछ महत्वपूर्ण जानकारी...। बीएसएफ या सीसुब जिसे सीमा सुरक्षा बल के नाम से पहचाना जाता है...। जो विश्व का सबसे बड़ा सीमा रक्षक बल है..। जिसका गठन 1 दिसंबर 1965 में हुआ...। जिसे भारत का एक प्रमुख अर्धसैनिक बल भी कहा जाता है..।


बीएसएफ की जिम्मेदारी सीमा पर शांति बनाए रखना और सीमाओं पर निरंतर निगरानी रखना साथ ही सीमा की रक्षा करना..। दोस्तों आपको बता दें, इस वक्त सीमा सुरक्षा बल की 188 बटालियन है। जो 6385.36 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर सुरक्षा करती है...। इतना ही नहीं बीएसएफ की जिम्मेदार सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों में सुरक्षा का बोध विकसित करना भी है...। सीमा पर होने वाले अपराधों और अवैध गतिविधियों को रोकना भी बीएसएफ की जवाबदेही है...।

1965 भारत-पाक युद्ध के बाद भारत सरकार ने सीमा सुरक्षा बल को एक केंद्रीय एजेंसी के रूप में विकसित किया..। जिसके बाद अतंर्राष्ट्रीय सीमाओं की जिम्मेदार सीमा सुरक्षा बल को दी गई..। जो आज भी इन्हीं जवानों के कंधों पर है..। जब 1965 भारत-पाक युद्ध में हमारे राज्य सशस्त्र पुलिस कमजोर पड़ी तब भारत सरकार को नियंत्रित सीमा सुरक्षा बल की आवश्यकता महसूस हुई..। जिसके परिणामस्वरूप सचिवों की समिति की सिफारिशों से सीमा सुरक्षा बल 1 दिसंबर 1965 में के एफ रूस्तमजी के पहले महानिदेशक के रूप में अस्तित्व में आया...।

जिसका का परिणाम हमें 1971 भारत-पाक युद्ध में देखने को मिला..। जिसमें बीएसएफ ने अहम भूमिका निभाई थी..। इतना ही नहीं बीएसएफ ने बांग्लादेश लिबरेशन में भी अहम भूमिका निभाई थी...। जिसें भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी स्वीकार किया था..। बीएसएफ को लंबे समय का नर बुर्ज भी कहा जाता है..। बीएसएफ केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है..। जिसका मूल सिद्धांत जीवन पर्यन्त कर्तव्य है..। आपको बता दें, सीमा सुरक्षा बल का मुख्यालय दिल्ली के लोधी रोड पर स्थित है..। जिसके वर्तमान महानिर्देशक केके शर्मा है..। बीएसएफ देश की उन सुरक्षा बलों में गिनी जाती है जिसके जाबांज जवान देश के लिए अपने प्राण आए दिन निछावर करते रहते है...। इन्ही जाबाजों के कारण हम अपने घरों में सुरक्षित बैठे है..। इन जाबाजों जवानों को मेरा कोटि-कोटि सलाम...। जय हिंद जय भारत.....।


संपादनः- दीपक कोहली