साहित्य चक्र

18 January 2017

- ये कैसा घूंघट-

                                      - ये कैसा घूंघट-

घूंघट का नाम लेते ही नारी शक्ति सामने आती है। वो नारी जो आज भी हर समय घूंघट में रहती हैं। आखिर इस घूंघट का क्या अर्थ है..? क्यों इसमें रहना जरूरी है। क्या ये घूंघट हमारी सभ्यता का हिस्सा है। अगर ये हमारी सभ्यता का हिस्सा है, तो वो क्या है जो हमारी शहरी क्षेत्र की स्त्रियां अपना रहीं हैं। मेरा उन स्त्रियों के पहनावे पर कोई विरोध नहीं है। लेकिन मैं उस संस्कृति देश के बारे में कहना चाहता हूं। जो अपनी संस्कृति दिन पे दिन खोता जा रहा है। वैसे हमें अपनी संस्कृति के बारे में सोचना होगा, कि इसे आगे ले जाना है या फिर पश्चिमी सभ्यताओं की आग में जलना है। वैसे मेरा ये कहना नहीं है, कि हमें पश्चिमी सभ्यताएं नहीं अपनानी चाहिए। मेरा ये कहना है, कि हमें अपने संस्कार और अपनी सभ्यता नहीं भूलनी चाहिए। हमें अपनी सभ्यताओं से उन चीजों को खत्म करना होगा, जो हमारे सामाज में हमें असहज महसूस करते हैं। जिससे किसी को कोई शिकायत नहीं हो। चाहे वो स्त्री हो या पुरूष। वैसे हमारे सामाज में अभी भी 60 फीसद स्त्रियां घूंघट में रहती है, जो महिलाओं के लिए एक सजा जैसी है। हमारे सामाज को इस बारे में ध्यान देने की जरूरत है। जिससे उन महिलाओं को आजादी मिल सके और साथ ही साथ अपनी सभ्यता, संस्कृति के बारे में भी सोचना होगा। जिससे हमारी संस्कृति भी बनी रहे और हमारी पहचान भी बनी रही। वैसे हमें पश्चिमी सभ्यताओं से बचना चाहिए, क्योंकि यह सभ्यताएं हमारे ऊपर हांवी हो रही हैं। जो हमारी संस्कृति के लिए कैंसर जैसा है। भारत की संस्कृति ही उसकी पहचान है। यहां का रहन-सहन, खान-पान, आदि यहां की पहचान है। जो खोती जा रही हैं। वैसे मेरा मुद्दा ये नहीं घूंघट पर है। आप तो जानते ही होंगे आखिर घूंघट क्या होता है। वैसे घूंघट ज्यादातर गांवों-देहात में देखने को मिलता है। मैंने कुछ ग्रामीण महिलाओं से इस घूंघट के बारे में जानने की कोशिश की, जिसमें कुछ महिलाओं का साफ कहना था कि ये हमारे लिए एक सजा जैसी है। वैसे कुछ महिलाओं का ये भी कहना था कि ये हमारे सभ्यता का हिस्सा है। लेकिन सवाल ये उठता है कि हमारा देश  21वीं सदीं में है, तो क्यों हमारे ग्रामीण महिलाएं 19वीं सदीं में जीने को मजबूर है। आखिर इसका कोई हल निकालना ही होगा। 

नारी ही इस देश की शक्ति है और हमें इस नारी की सम्मान करना है। 



                                            संपादक- दीपक कोहली                   

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