साहित्य चक्र

03 January 2017

तलाक..तलाक..तलाक..?

                             तलाक..तलाक..तलाक..?

ये शब्द सुनते ही दिमाग में अलग होना या कहे किन्हीं दो शादीशुदा लोगों का अलग होना या उनकी शादी टूटना आता हैं। वैसे आजकल तीन तलाक का मामला खूब छाया हुआ है। आखिर क्या है ये तीन तलाक जो आजकल हर न्यूज़ चैनल की खब़र बनी हुई है। आखिर क्यों सुप्रीम कोर्ट में जाना पड़ा। क्या ये किसी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना हैं..? या फिर एक नारी को उसके अधिकार देना हैं। सवाल तो कई हैं। लेकिन हर सवाल का हल ढूढ़ना बेहद मुश्किल है। जहाँ एक तरफ तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपना पक्ष रखा या कहें अपना फैसला सुनाया। जिसके बाद से तीन तलाक का मुद्दा एक बार फिर चर्चा कर विषय बना हुआ है। इस देशव्यापी विषय में लगभग तमाम मुल्ले-मौलवी अपना - अपना पक्ष और तर्क दे रहे हैं। वहीं एक ओर मुसलमानों  का एक बड़ा पक्ष इसका विरोध करता दिख रहा है। तो वहीं  दूसरे पक्ष के लोग इसका समर्थन करते दिख रहे हैं। दरअसल मैं ज्यादा तो जानकार नहीं हूं लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं, कि इस्लाम के पवित्र कुरान में तीन तलाक की व्यवस्था को गैर- कानूनी बताया गया है। कुरान में ये साफ-साफ लिखा है कि स्त्रियों की गरिमा, सम्मान, सुरक्षा को ठेस पहुंचाना एक अपराध है। वहीं कुरान में तलाक को ना करने लायक काम बताया गया है। वैसे आपको बता दूं कि इस्लाम धर्म में तीन तलाक को मान्यता तो प्राप्त है, लेकिन दोनों पक्षों के रजामंदी से। वैसे आपको पता होगा कि तीन तलाक क्या है..? अगर नहीं तो तीन तलाक का मतलब है कि अगर आपकी शादी किसी लड़की या किसी लड़के से होती हैं । तो शादी के बाद उस लड़की या लड़के से किसी बात पर आपकी नहीं बन रही है तो आप उसे तीन बार तलाक..तलाक..तलाक कहकर तलाक दे सकते है। लेकिन इसके कई नियम भी बनें हैं जो इस्लामिक धर्म के आधारित है। लेकिन स्त्रियों के लिए इसमें कोई खास तरह कि छूट नहींं है। जिसमें एक पुरुष अपने अधिकार के लिए अपनी धर्मपत्नी को तलाक दे देता है। जो नारी शक्तिों का हनन है। वैसे जब से सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है, तब से कई धार्मिक गुरुओं के बयान सुनने को मिल रहे हैं। जो इस मुद्दे को और भी रोचक बनाते है। वैसे इतना ही नहीं इस मुद्दे पर राजनीति भी कम नहीं हो रही है। वैसे मेरा मानना है कि ये कदम मानवता से जुड़े है जिस पर राजनीति की जा रहीं है। इस विषय पर सवाल तो कई है, लेकिन उनको सही तरीके से हल किया जाए तो देश में कोई अराजकता नहीं फैलेगी। वैसे अगर इस मुद्दे पर मुस्लिम औरतों की माने तो वो पहले से ही तीन तलाक के विरोध में खड़ी नज़र आती हैं। इतना ही नहीं हिंदू धर्म में भी महिलाओं के साथ भेदभाव की खब़र आती रही है। जो देश के लिए चिंता का विषय है। सर्वोच्च न्यायालय को इन विषयों पर एक टीम का गठन कर इसकी जांच करनी चाहिए कि क्या वाकई में देश अभी भी पुरानी सदीं में जी रहा है क्या..? 


         संपादक - दीपक कोहली

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