साहित्य चक्र

22 January 2017

= जल्लीकटटू खेल फिर शुरु =

                                                         
                  

                      


जल्लीकटटू को लेकर देशभर से अलग - अलग प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कोई इसे धर्म से जोड़ रहा है, तो कोई इसे खेल बता रहा है। आखिर ये खेल है क्या...?  इससे पहले हमें आपको इस खेल के संबंध में कुछ विशेष जानकारी दे दें। वैसे यह खेल तमिलनाडु में पोंगल त्योहार के मौके पर खेला जाता है। जो 400 साल पुराना पांरपारिक खेल है। जो फसल कटाई के अवसर पर आयोजित किया जाता है। वैसे जल्लीकटटू एक पुरानी प्रथा है। जो इन दिनों विवादोंं में है। जहां सुप्रीम कोर्ट इस प्रथा पर अंतरिम रोक लगा चुका है, तो वहीं तमिलनाडु की जनता इसे अपनी संस्कृति का एक हिस्सा मानती है। जिसके चलते तमिलनाडु में पिछले लंबे समय से आंदोलन चल रहा था। इसी के चलते पिछले  पांच दिनों से तमिलनाडु में जनजीवन अस्त-व्यस्त चल रहा था। जिसके बाद राज्यपाल विद्यासागर राव ने अध्यादेश जारी करते हुए इस खेल से प्रतिबंध हटा दिया है। वहीं रविवार से इस खेल की शुरुआत तीन साल बाद एक बार फिर हो गई है।  जिससे तमिलनाडु वासियों में खुशी की लहर दौैड़ी है। वैसे आपको बता दूं, कि इस खेल को तीन साल पहले ही प्रतिबंध कर दिया गया था। कई विवादों के चलते एक बार इसे फिर इस खेल को मान्यता मिली है। इस खेल में बैलों को काबू किया जाता है। इस खेल में सांडों को शराब पिलाकर और उनकी आंखों में मिर्च डालकर फिर उन्हें  दौड़ाया जाता है। जिसके बाद उन्हें काबू किया जाता है। यह जानलेवा खेल का मेला तमिलनाडु के मदुरै में लगता है। जिसकी तुलना स्पेन की बुलफाइटिंग से भी की जाती है। लेकिन इस खेल में बैलों को मारा नहीं जाता है और ना ही काबू करने वाले युवकों के पास कोई हथियार होता है। वैसे इस खेल से पहले यहां के लोग अपने बैलों को इसका अभ्यास भी करते है। जिससे बैल इस खेल के लिए तैयार हो। वैसे इस खेल की एक और विशेषता है। इस खेल के योध्दाओं से प्राचीन काल में महिलाएं स्वयंवर भी किया करती थी। इस खेल में बैलों के सींगों में पैसे बांधे जाते है। जिन्हें प्रतियोगिता में भाग लिए योध्दा निकालते है या कहे जीतते है। यह खेल लगातार तीन दिनों तक खेला जाता है। जिसके बाद योध्दाओं को सम्मानित किया जाता है। इसी प्रकार यह खेल खेला जाता है।
प्रचीन सभ्यताओं और रोमांच से भरपूर होती है ये जल्लीकटटू का खेल...।।



                        संपादक- दीपक कोहली     


No comments:

Post a Comment