साहित्य चक्र

28 January 2017

काली रात

                             

जी हाँ....। ये काली रात आपातकाल की रात थी। जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने अचानक देश में आपातकाल घोषित किया था। ये भी कहा जाता है कि विपक्ष की डर से प्रधानमंत्री इंदिरा  गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया। जिसके बाद इंदिरा को इसका हिसाब भी चुकाना पड़ा था। वैसे आपातकाल 25 जून 1975 से 21 जून 1977 तक लगा रहा। जिस बीच देश में कई असामान्य घटनाएं हुई। विपक्ष के कई नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। मीडिया पर प्रतिबंध ( सेंसरशिप) लगा दिया गया। जिसके चलते आम लोगों तक कोई भी सूचना नहीं पहुंच सकी थी। इसी आपातकाल के दौरान इंदिरा गाधी के संजय गांधी ने नशबंदी अभियान चलाया था। जिसके चलते कई घरों की आश बुझ गई। यह आपातकाल धारा 152 के अंतर्गत लगाई गई थी। आपको बता दूं कि देश में आपातकाल कब - कब लगाया जा सकता है। धारा-  (352) देश की सुरक्षा के लिए, धारा- (356) राज्य में राष्ट्रपति शासन होने पर, धारा- (360) देश में वित्तीय संकट के दौर में आपातकाल लग सकता है। इस आपातकाल का असर मीडिया ही नहीं बालीवुड में भी देखने को मिला था। वैसे अभी तक देश में आपातकाल कुल तीन बार लगा है। 
1)- 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान।
2)- 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान। 
3)- 1975 से 1977 तक जब इंदिरा गांधी अपनी सरकार बचाने के लिए लगाया था। 
वैसे इस आपातकाल के दौरान संजय गांधी, वीसी शुक्ला, ओम मेहता की तिकड़ी पूरे देश में बहुत ही लोकप्रसिद्ध रही थी। क्योंकि संजय गांधी ने देश के लोगों  से पॉंच सूत्रीय मांग की थी- जो इस प्रकार है-
1)- वयस्क शिक्षा।
2)- देहज प्रथा का खात्मा।
3)- पेड़ लगाना।
4)- परिवार नियोजन।
5)- जाति प्रथा का उन्मूलन।

वैसे आपातकाल एक प्रकार का असीमित अधिकार है। जिसमें जनता के अधिकार बिल्कुल खत्म हो जाते है। जिसमें जनता मूरदर्शक बन जाती है। 
बस जनता देख और सह सकती है। कई प्रकार की धाराएं लागू हो जाती है। आज देश में आपातकाल नाम आते ही इंदिरा गांधी की याद आ जाती है। जिन्होंने अपनी सरकार बचाने के लिए आपातकाल जैसे कदम उठाए है। जो ये दर्शाती है कि राजनीति पार्टियां (कांग्रेस) अपने हितों के लिए कुछ भी कर सकती है। क्या इंदिरा गांधी के लिए अपनी राजनीति पार्टी इतनी बड़ी थी।  जिससे उन्हें ऐसे कदम उठाने पड़े। इस आपातकाल या काली रात का डर आज भी लोगों के दिमाग में बैठा है। वैसे सवाल ये भी उठते है कि, क्या लोकतंत्र में अपने हितों के लिए आपातकाल लगाना सही है..? आखिर सुप्रीम कोर्ट इस विषय पर आज तक ठोस कदम क्यों नहीं उठा पायी..? क्या इस में भी कोई राजनीति मसला तो नहीं है..? इन सवालों के माध्यम से आप सोचने के लिए मजबूर जरूर होंगे। कि आखिर सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार के दवाब में तो काम नहीं करती.....क्या....?        
वैसे यह काली रात भारत के इतिहास में हर हमेशा ये याद दिलाएगीं कि सत्ता के लिए हमारे राजनेता कुछ भी कर सकते है। चाहे देश की साख दांव पर लगाने की बात ही क्यों ना हो। वैसे इस आपातकाल से देश में कुछ परिवर्तन तो जरूर आया था। लेकिन लोगों में निराशा थी। लोगों को समझ में आ गया कि ये इंदिरा का एक हिटलर रूप है। जिसके बाद इंदिरा को लोकसभा चुनावों में जोरदार हार का सामाना करना पड़ा था। बाद में इंदिरा समझ जरूर गई थी कि ये कदम उनका गलत साबित हुआ है। इस आपातकाल को इंदिरा काल का अंत भी कहां जाता है। वैसे यह इमरजेंसी हमारे देश के लिए एक घातक कदम था। जिससे हमारे देश को काफी नुकसान और परिवर्तन का सामना करना पड़ा था। जिसे कुछ लोग अच्छा भी बताते है, तो कुछ लोग इसे कालीरात का नाम देते है। इस आपातकाल के दौर में देश के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद थे। इसे संविधान की कमजोरी भी कहते है। क्योंकि केंद्र सरकार अपनी मन मानी करती है।  



                                  संपादक- दीपक कोहली     

No comments:

Post a Comment