साहित्य चक्र

23 January 2017

= यूपी में चुनावी गठबंधन =

                              = यूपी में चुनावी गठबंधन =

जी हां...आपने सही सुना और सही पढ़ा...। जी हां.. मैं बात कर रहा हूं यूपी विधानसभा में सपा और कांग्रेस में गठबंधन की। जहां कुछ दिनों पहले  कांग्रेस 27 साल यूपी बेहाल का नारा देकर जनसभाओं को संबोधित कर रही थी। तो अब वही कांग्रेस सपा के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। इस गठबंधन को बिहार के महागठबंधन की तरह देखा जा रहा है। इस गठबंधन को प्रियंका गांधी से भी जोड़ा जा रहा है। क्योंकि इस बार प्रियंका चुनावी मैदान में उतर सकती है। वैसे कई वरिष्ठ पत्रकार ये भी कहे चुके है कि ये गठबंधन प्रियंका गांधी का यूपी की राजनीति में पर्दापण कर सकता है। तो वहीं इस गठबंधन को राहुल-अखिलेश से भी जोड़ा जा रहा है। लेकिन जो भी हो इस गठबंधन का परिणाम चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा। आखिर ये गठबंधन कितना कारगर साबित हुआ। वहीं एक ओर बीजेपी इस गठबंधन को कांग्रेस और सपा की नई चाल मान रही है। तो वहीं कांग्रेस इसे यूपी चुनाव के लिए एक महत्वपूर्ण कदम मान रही है। वैसे इस गठबंधन को बिहार के तर्ज पर लिया गया है। एक ओर जहां कांग्रेस का इस गठबंधन का मकसद बीजेपी को हराना है, तो वहीं सपा (अखिलेश) का मकसद दुबारा यूपी में सरकार बनाना है। वहीं कांग्रेस चाहती है कि वो दुबारा अपना अस्तित्व वापस पाये। जिससे उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में मदद् मिल पाये। तो वहीं सपा इस गठबंधन से यूपी की सत्ता में वापस आना चाहती है। चाहे जो भी हो इस गठबंधन से कई सवाल पैदा होती है। जैसे क्या सपा को अपने नेताओं और अपने विकास में भरोसा नहीं था...? वैसे ये भी कयास लगाए जा रहे है कि इस गठबंधन से राहुल औऱ अखिलश नजदीक जरूरी आइगें। जिससे राहुल और अखिलेश के राजनीतिक जीवन में एक नया मोड़ आ सकता है। वहीं प्रियंका गांधी भी इसे अपने राजनीति कैरियर के लिए एक सही मौका मान रही होगीं। जिससे वो अपना राजनीति जीवन की शुरुआत कर सकती है। यूपी के विधानसभा चुनावों में कयासों के दौर शुरु हो गए है। अब देखने वाली बात ये रहेगी कि आखिर ये कयासों के दौर और कब तक चलते रहेगें। यूपी चुनावों से पहले यूपी की राजनीति में कई फेर बदलाव देखने को मिले। जहां कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बीजेपी में शामिल हुए तो वहीं सपा में परिवार वाद चर्चों में रहा। वैसे इस गठबंधन को राहुल और अखिलेश की नई चाल की कहे सकते है। क्योंकि एक ओर सपा में परिवार वाद ने सुर्खिया पकड़ी तो दूसरी तरफ गठबंधन ने सपा के टीआऱपी में रख दिया। जो यूपी विधानसभा चुनावों के लिए महत्वपूर्ण बिंदु हो सकता है। वैसे मेरा मानना है। यूपी चुनाव कोई भी पार्टी जीत सकती है, क्योंकि यूपी में बीजेपी का चेहरा मोदी ही होगें। जो बीजेपी का प्रचारक बनेगें। वही बीएसपी भी गहरी राजनीति खेल रही है। जिससे साफ हो जाता है, कि यूपी का चुनाव अभी तक किसी भी पार्टी के पक्ष में झुकता नज़र नहीं आ रहा है। हालांकि राजनीति विशेषज्ञ अपने बयान में बीजेपी को शीर्ष पर देख रहे हो। लेकिन मुझे नहीं लगता कि यूपी में पूर्ण बहुमत से बीजेपी की सरकार आएगी। इससे पहले भी बिहार के चुनावों में बीजेपी शीर्ष पर थी। लेकिन महागठबंधन ने सारे अनुमान झुठे साबित कर दिए। ऐसा ही दिल्ली के में देखने को मिला था। जिससे साफ हो जाता है कि आजकल जनता विकास के नाम पर ही वोट देती है।  क्योंकि जनता भली भांति जानती है कौन नेता कैसा है और कौन पार्टी कैसी हैं। अब जनता के हाथ में ही फैसला होगा, आखिर कौन उनकी आवाज़ सुनेगा। चलिए देखते है कौन बाजी मारता है। इस चुनावी दंगल में.....और जनता की अदालत में......।।
 
                      
                                       संपादक- दीपक कोहली                                

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