साहित्य चक्र

29 November 2016

सच हम नहीं - सच तुम नहीं



सच हम नहीं सच तुम नहीं 
सच ये संसार नहीं....।

सच हमारे नैन नहीं, 
सच तुम्हारे नैन नहींं..।
सच तो है ये परमात्मा..।।

सच हम नहीं - सच तुम नहीं 
सच ये संस्कृति नहीं....।।

सच हमारी नियत नहीं , 
सच तुम्हारी नियत नहीं..।
सच तो है ये ईश्वर.....।।

सच हम नहीं - सच तुम नहीं
सच ये प्रकृति नहीं...।।

सच हमारी बात नहीं, 
सच तुम्हारी बात नहीं...।
सच तो ये परमेश्नर है...।।

सच हम नहीं - सच तुम नहीं 
सच ये जगत नहीं..।।

सच हमारी जाति नहीं,
सच तुम्हारी जाति नहीं..।
सच तो ये मानव आत्मा है...।।

                        कवि- दीपक कोहली

#कलयुग की पहचान#

                                #कलयुग की पहचान#


प्राणी में  प्राण नहीं,
मानव में मानवता नहीं।
यहीं कलयुग की पहचान है।।


धर्म में धर्मता नहीं, 
पवित्र में पवित्रता नहीं।
यहीं कलयुग की पहचान है।।

वाणी में सत्य नहीं, 
पहनावे में शर्म नहीं।
यहींं कलयुग की पहचान है।।

पानी में मीठास नहीं, 
भोजन में स्वाद नहीं।
यहीं कलयुग की पहचान है।।

                                    कवि- दीपक कोहली


 
 

24 November 2016

सपा का सफरनामा & मुलायम की राजनीति

             

समाजवादी पार्टी का मुख्या या प्रमुख मुलायम सिंह यादव का राजनीति सफर बहुत ही उतार - चढ़ाव भरा रहा है। 22 नवंबर 1939 में इटावा जिले के सैफई गांव में एक किसान के यहां इनका जन्म हुआ। मुलायम अपने भाई- बहनों में सबसे छोटे है। मुलायम के पांच भाई- बहन है- रतन सिंह, अभयराम सिंह, शिवपाल सिंह, रामगोपाल, कमला देवी। 

वैसे मुलायम सिंह के पिता सुधर सिंह मुलायम को पहलवान बनाना चहते थे। लेकिन मुलायम सिंह तो उत्तरप्रदेश की राजनीति में अपना लोहा मनवाना चहते थे। किसे पता था कि एक किसान का बेटा तीन बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनेगा। मुलायम ने अपना राजनीति सफर जसवंत नगर से शुरु किया। राजनीति में आने से पहले मुलायम सिंह आगरा विश्वविद्दालय से स्नातकोर (एम.ए.) की डिग्री ली और मैनपुरी के जैन इंटर कॉलेज करहल में अध्यापक भी रहे है। मुलायम उन नेताओं में गिने जाते है जो किसानों, पिछड़े वर्ग को महत्वपूर्ण स्थान देते हैं। मुलायम सिंह को जनता प्यार से नेताजी भी कहती है। नेता जी 1967 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीतकर विधानसभा सदस्य बनें। वैसे मुलायम सिंह अपना गुरु डॉ. राम मनोहर लोहिया को मानते है। नेता जी ने लोहिया जी के साथ ही राजनीति में प्रवेश किया था। जिस समय भारतीय लोक दल & भारतीय क्रांति दल राजनीति पार्टी हुआ करती थी। 1968 में लोहिया जी का देहांत हो गया जिसके बाद मुलायम सिंह अकेले और पूरी जिम्मेदारी आ गई। लोहिया जी वो राजनेता थे जिन्होंने उत्तरप्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वैसे कई राजनेताओं का मानना है कि मुलायम के गुरु चौधरी चरण सिंह भी थे। जिन्होंने मुलायम को राजनीति के गुरु सिखाए लेकिन मुलायम ने उन्हें गुरु दक्षिणा के बादले धोखा दिया। ये मेरी अपनी राय नहीं ये उन राजनेताओं का कहना हैं जो मुलायम को बचपन से जानते हैं। 

कभी भारतीय क्रांति दल से चुनाव लड़ने वाले मुलायम सिंह आज खुद अपनी पार्टी के अध्यक्ष है या कहे आज खुद उनकी आपनी पार्टी है। राजनीति में मुलायम ने वो उतार - चढ़ाव देखे हैं जो किसी भी राजनेता ने कभी देखें होंगे। मुलायम सिंह लगातार जसवंत नगर से तीन बार विधायक रहे। जब 1990 में जनता दल टूटा तो मुलायम समाजवादी जनता दल से चुनाव लड़ और जीते भी। 1992 में मुलायम सिंह ने एक पार्टी बनाने का ऐलान किया। जिसका नाम समाजवादी पार्टी रखा गया। जिससे मुलायम के विरोधी पार्टियां उन्हें कमजोर करने में जुट गए। लेकिन फिर भी मुलायम ने हार नहीं मानी और एक बार फिर 5 दिसबंर 1993 को मुख्यमंत्री बने। इससे पहले मुलायम 1989 में सीएम रह चुके थे। 

अगर आज मुलायम सिंह को सपा का भीष्मपित्माह कहां जाए तो गलत नहीं होगा। तीन बार यूपी के सीएम और केंद्र सरकार में रक्षामंत्री रह चुके है मुलायम। इसके अलावा कई पदों पर भी रहे हैं। वैसे मुलायम की पहचान एक धर्मनिरपेक्ष नेता के रुप में की जाती हैं। नेता जी संयुक्त मोर्चा सरकार में रक्षा मंत्री रहे थे। वेृैसे देखें तो मुलायम का केंद्रीय राजनीति में 1996 से प्रवेश हुआ। जब कांग्रेस पार्टी को हरा संयुक्त मोर्चा ने सरकार बनाई। तभी एचडी देवगौड़ा को  प्रधानमंत्री बनाया गया। जबकि मुलायम सिंह का नाम सामने आया था। कुछ नेताओं के विरोध के चलते मुलायम पीएम नहीं बन पाए। 28 मई 2012 को मुलायम सिंह को उनके विचारों और उनकी लोकतंत्र, राष्ट्रवाद सोच के लिए लंदन में अंतर्राष्ट्रीय जूरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आज भी विपक्ष प्रदेश में मुलायम सिंह का लोहा मानता है। अब सबकी नज़र 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव पर टिकी है। क्या मुलायम का जादू एक बार फिर देखने को मिलेगा। या फिर बेटे के दाम पर सपा चुनाव लड़ेगी। 




                                    संपादक - दीपक कोहली  

17 November 2016

-सोलह साल आठ मुख्यमंत्री-

                                
                   
उत्तराखंड को बने सोलह साल हो चुके है। इन सोलह सालों में उत्तराखंड आठ मुख्यमंत्री देख चुका हैं। लेकिन अभी तक बस एक ही मुख्यमंत्री पांच साल तक राज कर सके। इसे उत्तराखंड का नसीब ही कहां जा सकता है। जो उसने इन सोलह सालों में आठ सीएम देखें। इन सोलह सालों में प्रदेश ने कितनी प्रगति की ये आपके सामने है। चाहे आज प्रदेश सरकार या विपक्ष कितने ही दांवे क्यों ना कर लें लेकिन हकीकत आपके सामने साफ दिख रही है। प्रदेश की क्या हालत है ये आप जानते ही है। लेकिन फिर भी मैं आपको उन समस्याओं से रूबरू करऊंगा जो प्रदेश की प्राथमिकता है। सबसे पहले मैं बात करूंगा शिक्षा और बिरोजगारी की, जो प्रदेश के हालतों को उजागर करता हैं। प्रदेश में लगातार शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। जो राज्य भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है। प्रदेश की  जनता शिक्षा को लेकर काफी परेशान नजर आती हैं। मैं बात उन इलाकों की कर रहा हूं जहां आज भी लोग शिक्षित नहीं हैं। शिक्षा तो दूर की बात कई इलाके ऐसे भी है जहां स्कूल तक नहीं है। अगर कोई स्कूल है भी तो वह बंद पड़ा हुआ है या वहां कोई टीचर ही नहीं है। सब राम भरोसे चल रहा है। अापको में बाता दूं राज्य अध्यापकों के क्या हालात हैं। सुबह आते है 11 बजे और शाम को 2 बजे चले जाते है। ये मैं अपने आंखों देखों का हालात बाता रहा हूं। उसमें भी अाधा समय चाय पानी और कागज कार्रवाई में चला जाता है। कुल मिलकर शिक्षा व्यवस्था का हाल राम भरोसे है। अब में आपको ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत, विधायकों आदियों के हाल बताता हूं। प्रदेश में जितना विकास हो रहा है उससे कई गुना भ्रष्टाचार तेजी से आगे बढ़ रहा है। अगर आप कभी किसी काम के लिए तहसील या पटवारी आदि के पास जाइगें तो वहां आप बिना पैसे दिए काम नहीं कर सकते या आपका काम देर में होगा या होगा ही नहीं। ये वे समस्या है जिससे आम जनता परेशान हैं। यहीं हाल प्रदेश के सस्ता - गल्लों की दुकानों का भी हैं। जहां राशन आता तो है लेकिन दुकानदार उसे ब्लैक में बेचते है। जिससे राज्य में आक्रोश की स्थिति बन जाती है। वहीं प्रदेश की सड़कों का हाल बेहद ही खराब है। तो वहीं कई स्थानों में सड़कों है ही नहीं लोग 10-किलोमीटर चलकर अपने रोजमर्रा का सामान ले जाते हैं। समस्या कई है लेकिन समाधान ना मात्र है। 
कहे तो किस से कहे, सुनेगा तो कौन सुनेगा..? ये एक बड़ी चिंता है। हालात तो ये भी है कि प्रदेश में पलायन दिन पे दिन बढ़ता जा रहा है। इसका कोई परामर्श अभी तक निकलता नहीं दिख रहा है और ना ही अभी तक लगता है कि राज्य सरकार इसके लिए कोई कदम उठाएगी। प्रदेश में सरकार अभी तक बीजेपी & कांग्रेस के अलावा किसी दूसरी पार्टी की बनी नहीं हैं।  इन सोलह सालों में ये दो पार्टी एक- दूसरे पर आरोप थोपती नज़र आई है। कब होगा प्रदेश का विकास कब मिलेगा युवाओं को रोजगार..? ये एक चिंता का विषय ही नहीं बल्कि प्रदेश की समस्या भी है। प्रदेश में स्वामी से लेकर रावत तक कर चुके हैं शासन। लेकिन राज्य का हाल दश की तश है। राज्य में एक और समस्या चिंता का मूल विषय है। जंगली जनवरों का आंतक जिन्हें उत्तराखंड की जनता का जीना ना मुमकिन कर दिया है जिसके चलते यहां की जनता ने खेत करनी कम कर दी हैं। वहीं आंवारा जानवरों ने भी यहां की खेती चोपट कर दी है। एक ओर यहां के जंगल लीसे के लिए समाप्त होते दिख रहे है। तो वहीं कुछ लकड़ी चोरों का आंतक इन्हें नष्ट कर रहे है। लेकिन प्रदेश सरकार सोयी हुई है। जो कोई कदम नहीं उठाती है। मेरा प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार से यहीं निवेदन है कि जनता का भी ध्यान रखें और साथ ही प्रदेश की समस्याओं का निदान करें।


                                    संपादक- दीपक कुमार कोहली     

  

15 November 2016

मेरा- तेरा

मेरा- तेरा

कोरा कागज था मन मेरा,
लिख दिया है नाम तेरा।।

सुना आंगन था मन मेरा, 
बसा दिया है प्यार तेरा।।

खाली दर्पण था मन मेरा,
रच गया है रुप तेरा।।

टूटा तारा था मन मेरा,
बना दिया है चांद तेरा।।

          कवि- दीपक कोहली



14 November 2016

-मोती का लाल, देश का चाचा-

                        

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरू जी को उनके जन्मदिन पर शत्-शत् नमन....। 14 नवंबर 1889 को संगम नगरी इलाहाबाद में मोती लाल नेहरू और स्वरुप रानी नेहरू के घर जन्म लिया। जूी हां.....चाचा नेहरू बचपन से ही तीव्र बुद्धी के व्यक्ति थे। नेहरू जी को धार्मिक रस्में खूब पंसद थी। चाहे हिंदू रीति-रिवाज हो या मुस्लिम धर्म के त्योहार उन्हें खूब भाते थे। लेकिन कभी ये आकर्षण उनके मन में विश्वास नहीं जगा सकी। चाचा जी का बचपन मुंशी मुबारक अली की देख-रेख में गुजरा। मुबारक अली उन दिनों उनके नौकर हुआ करते थे। जो चाचा नेहरू को रानीलक्ष्मीबाई व अनेक वारों के बारे में बाताया करते थे और अलिफलैला जैसी कथाएं सुनाय़ा करते थे। वैसे नेहरू जी का जन्म बचपन में एक अलग ही अंदाज में मनाया करते थे मोती लाल। नेहरू जी मोती लाल के इकलौते बेटे थे। जिन्हें मोती लाल एक राजा की तरह रखा करते थे। जिस दिन नेहरू जी का जन्मदिन हुआ करता था तो मोती लाल उन्हें तराजू में तौला करते थे। तराजू में एक तरफ नेहरू जी तो दूसरी तरफ बटे की जगह अनाज, कपड़े, मिठाई, रख कर तौला जाता था। उसके बाद वो अनाज, कपड़े आदि गरीबों में बांट दिए जाते थे। यह प्रकिया लगभग कई बार होती थी।      नेहरू जी की पढ़ाई लगभग इंग्लैंड में ही हुई। 13 मई 1905 में वो पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए और 1912 में भारत वापस लौटें। जिसके बाद उन्होंने अपने पिता के साथ वकालत करनी शुरु कर दी। 1916 में पिता मोतालाल ने इनका विवाह कमला कौल से नामक लड़की से कर दिया। सन् 1917 में नेहरू जी होम रूल लीग में शामिल हुए। जिसके बाद सन् 1919 में ये बापू के संपर्क में आए। जहां से नेहरू जी ने राजनीति में कदम रखा और 1920-22 के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रुप से  हिस्सा लिया। इस दौैरान चाचा नेहरू कई बार जेल भी गए। सन् 1924 में  नेहरू जी  इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए। सन् 1929 के लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में नेहरू  जी को राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष चुना गया।  26 जनवरी 1930 में नेहरू जी ने लाहौर में स्वतंत्र भारत का तिरंगा फहराया था। नेहरू जी  1930 और 40 के दशक के आंदोलनकारियों के प्रमुख नेता थे। सन् 1942 से 1946 तक चाचा नेहरू अहमदनगर जेल में रहे। जहां उन्होंने "भारत एक खोज" नाम की किताब लिखी थी। जिसमें उन्होंने पूर् भारत का इतिहास लिखा है। 1947 में जब भारत अाजाद हुआ तो नेहरू जी देश के प्रथम प्रधानमंत्री बनाए गए। नेहरू जी ही वे व्यक्ति है जिन्होंने देश के लिए गुटनिरपेक्ष नीतियों की शुरुआत की। जिसका फायदा आज हमें मिल रहा है। 27 मई 1964 का वे दिन देश के लिए अंधकार लेकर आया और अचानक  नेहरू जी की मृत्यु हो गई। जब भी देश में राजनेताओं की बात होगीं तो चाचा नेहरू का नाम जरूर आएगा। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपने कलम को विराम देता हूं। 

                                           संपादक- दीपक कोहली

-राष्ट्र निर्माता & देश के भविष्य-

 
चौदह नवंबर पूरे देश में बाल दिवस के रुप में  मनाया जाता है। बाल दिवस चाचा नेहरू की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है। इसके पीछे भी कई तथ्य है। वैसे बाल दिवस की नींव 1925 में रखी गई थी। जिसे विश्व कांफ्रेस की ओर से बच्चों के कल्याण के लिए घोषित किया गया।  सन् 1954 में इसे पूरे विश्व में मान्यता प्राप्त हुई। जबकि संयुक्त राष्ट्र ने 20 नवंबर को बाल दिवस के रुप में मनाने की तिथि तय की थी। लेकिन आज बाल दिवस अलग - अलग देशों में अलग - अलग तिथि को मनाया जाता है। जबकि भारत ने इसे प्रथम प्रधानमंत्री चाचा नेहरू के जन्मदिन के रुप में मनाने की घोषणा की थी। वैसे कई विद्वान कहते है कि चाचा नेहरू बच्चों से बहुत ही प्रेम करते थे। जिससे उन्होंने बाल दिवस को अपने जन्मदिन के रुप में मनाने का फैसला किया था। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि चाचा नेहरू का ये सोचना था कि कहीं देश उन्हें न भूल जाए इसलिए उन्होंने इसे अपने जन्म दिवस के रुप में चुना था। यह दिन (बाल दिवस) इस बात को याद दिलता है कि हर बच्चा खास है और देश का भविष्य है। वैसे बाल दिवस इस लिए भी खास है क्योंकि यह दिवस हमें हमारा बचपन याद दिलाता है और देश को उसका भविष्य दिखता है। बाल दिवस उन नन्हें - मुन्ने के लिए मनाया जाता है जो भविष्य के सितारे होते हैं।  जब बाल दिवस की बात होती है तो मुझे वे बच्चे याद आते है जो सड़क के किनारे भीख मांग कर अपना पेट भरते हैं। क्या ये देश के भविष्य नहीं नहीं है..?  खै़र मैं कोई राजनीति या किसी व्यक्ति विशेष पर बात नहीं करना चाहता। बस इतना कहना चाहता हूं कि क्या इन बच्चों को पढ़ने का अधिकार नहीं  हैं। बाल दिवस तो बच्चों को समर्पित भारत का एक प्रमुख त्यौहारों में से एक है। वैसे बाल दिवस स्कूल के दिनों को ताजा कर देता हैं। जब बाल दिवस के मौके पर हम सज - धज कर स्कूल जाया करते थे और स्कूल में अपनी मौजूदगी का लौहा मनवाते थे। वैसे अाज भी बाल दिवस पूरे भारतवर्ष में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। 
इस बाल दिवस के मौके पर इतना ही कहूंगा,  मेरे देश का भविष्य वर्तमान से बेहद अच्छा और खुशहाल हो।


                            संपादक- दीपक कोहली            
   

11 November 2016

-ट्रंप का हुआ व्हाइट हाउस -

                     -ट्रंप का हुआ व्हाइट हाउस -
                                        &
                   -ट्रंप बने विश्व के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति-

अमेरिका को मिला 45वां राष्ट्रपति। आठ सालों के लंबे इंतजार के बाद अमेरिकी रिपब्लिकन पार्टी ने बहुत ही शानदार जीत के बाद वापसी की है। बराक ओबामा के बाद अमेरिका को नया व एक अच्छे राष्ट्रपति की जरुरत थी। जो अमेरिका को मिल गया है। जी हां अमेरिका के अब अगले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप होंगे। वैसे इस दौड़ में ट्रंप के साथ डेमोक्रेट उम्मेदवार हिलेरी क्लिंटन भी थी। जो ट्रंप से करीब 56 वोटों से हारी। वहीं इस जीत से अमेरिकियों में नई उमंग दिख रही है। इस चुनाव में अमेरिका में पहली बार 20 करोड़ मतदाताओं ने वोट किए।  जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। वैसे डोनाल्ड ट्रंप ने इस चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी का एक नारा भी अपनाया था। जो " अबकी बार ट्रंप सरकार" के नाम से अमेरिका में बेहद ही लोकप्रिय हुआ था। ट्रंप अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के रुप में शपथ ग्रहण लेंगे। अमेरिका में कुल 538 इलेक्टोरल है। जिसमें इस बार ट्रंप ने 278 इलेक्टोरल जीती हैं। वैसे ट्रंप एक बिजनेसमैन, राजनेता, लेखक, टीवी पर्सनलिटी व एक अर्थशास्त्री भी है। अब देखने वाली बात ये रहेगी कि क्या नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की तरह अमेरिका को एक नई ऊंचाई दे पाइगें। सवाल तो कई है। इन्हीं सवालों में एक सवाल भारत को लेकर भी उठ रहा है। क्या भारत की दोस्ती अमेरिका से बनी रहेगी...? क्या अब अमेरिका भारत का साथ देगा...? वैसे इस विषय पर भारत के कई विषेशज्ञों का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप भारत का साथ हमेशा देते रहेंगे। वहीं कुछ विषेशज्ञ का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप भारत विरोधी है। वैसे अगर देखा जाए जब से मोदी प्रधानमंत्री बने है तब से भारत के अमेरिका के साथ अच्छे रिश्ते दिख रहे हैं। अब देखने वाली बात ये है कि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद भारत के रिश्ते कैसे रहेंगे। वहीं अमेरिका में इस जीत के बाद जो एक नया माहौल देखने मिल रहा है। जहां जनता में एक अलग ही जोश-जज्बा दिख रहा है। तो वहीं जब से अमेरिका में ट्रंप की जीत हुई है तब से अमेरिकी युवाओं में खुशीयों की लहर देखने को मिल रही है। हम आपको बात दें कि अमेरिका में राष्ट्रपति का कार्यकाल मात्र चार साल का होता है। इससे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा थे। जो लगातार आठ साल तक बनें रहे। जिन्होंने अपने कार्यकाल में आतंकी ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था। बराक ओबामा अमेरिका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति है। जो लगातार आठ साल तक रहे। अमेरिका में चुनाव प्रत्येक चार साल बाद अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति के तहत दो से आठ नवंबर के बीच के मंगलवार को होते हैं। वैसे अमेरिका में दो से आठ नवंबर के मध्य आने वाला मंगलवार चुनावी दिवस के रुप में मनाया जाता है। अमेरिका में पहली बार चुनाव 1789 में हुए थे। तब प्रथम राष्ट्रपति जार्ज वॉशिगटन बनें थे। अमेरिका में चुनाव वहीं लड़ता है जो 35 वर्ष और वहां का मूल स्थानीय निवासी हो या फिर 14 सालों से वहां रह रहा हो। वैसे यहां दो ही पार्टी चुनाव लड़ती है। 


                                                          संपादक- दीपक कोहली 


  

07 November 2016

* मॉं सरस्वती *

* माँ सरस्वती *

तुम हंसवाहिनी तुम सरस्वती,
तुम ही विद्दा - वाहिनी।।

तुम सुर - तुम विद्दा,
तुम ही संगीत वाहिनी।।

तुम ज्ञान - तुम विज्ञान ,
तुम ही मनोविज्ञान।।

तुम रूप -तुम सुन्दर,
तुम ही रूपवाहिनी।।

तुम शांति - तुम शीतल ,
तुम ही शांति- वाहिनी।।


तुम वीणा - तुम बांसुरी ,
 तुम ही वीणा- वाहिनी।।

                    कवि- दीपक कोहली

02 November 2016

- मेरी जन्मभूमि की पहचान -

- मेरी जन्मभूमि की पहचान  -

पर्वतों का प्रदेश, लहरों का ऑंगन,
फूलों की वादी, नदियों का अॉंचल,
यहीं है मेरी जन्मभूमि की पहचान।।

हवा की लहरें, फलों की मीठास, 
सुन्दरता की चमक, वनों का सौन्दर्य,
यहीं है मेरी तपोभूमि की पहचान।।

खेतों की फसल, अॉंगन की सब्जी,
घरों में मंदिर, मंदिरों की मूर्तियॉं,
यहीं है मेरी देवभूमि की पहचान।।


                         कवि - दीपक कोहली