साहित्य चक्र

17 November 2016

-सोलह साल आठ मुख्यमंत्री-

                                
                   
उत्तराखंड को बने सोलह साल हो चुके है। इन सोलह सालों में उत्तराखंड आठ मुख्यमंत्री देख चुका हैं। लेकिन अभी तक बस एक ही मुख्यमंत्री पांच साल तक राज कर सके। इसे उत्तराखंड का नसीब ही कहां जा सकता है। जो उसने इन सोलह सालों में आठ सीएम देखें। इन सोलह सालों में प्रदेश ने कितनी प्रगति की ये आपके सामने है। चाहे आज प्रदेश सरकार या विपक्ष कितने ही दांवे क्यों ना कर लें लेकिन हकीकत आपके सामने साफ दिख रही है। प्रदेश की क्या हालत है ये आप जानते ही है। लेकिन फिर भी मैं आपको उन समस्याओं से रूबरू करऊंगा जो प्रदेश की प्राथमिकता है। सबसे पहले मैं बात करूंगा शिक्षा और बिरोजगारी की, जो प्रदेश के हालतों को उजागर करता हैं। प्रदेश में लगातार शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। जो राज्य भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है। प्रदेश की  जनता शिक्षा को लेकर काफी परेशान नजर आती हैं। मैं बात उन इलाकों की कर रहा हूं जहां आज भी लोग शिक्षित नहीं हैं। शिक्षा तो दूर की बात कई इलाके ऐसे भी है जहां स्कूल तक नहीं है। अगर कोई स्कूल है भी तो वह बंद पड़ा हुआ है या वहां कोई टीचर ही नहीं है। सब राम भरोसे चल रहा है। अापको में बाता दूं राज्य अध्यापकों के क्या हालात हैं। सुबह आते है 11 बजे और शाम को 2 बजे चले जाते है। ये मैं अपने आंखों देखों का हालात बाता रहा हूं। उसमें भी अाधा समय चाय पानी और कागज कार्रवाई में चला जाता है। कुल मिलकर शिक्षा व्यवस्था का हाल राम भरोसे है। अब में आपको ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत, विधायकों आदियों के हाल बताता हूं। प्रदेश में जितना विकास हो रहा है उससे कई गुना भ्रष्टाचार तेजी से आगे बढ़ रहा है। अगर आप कभी किसी काम के लिए तहसील या पटवारी आदि के पास जाइगें तो वहां आप बिना पैसे दिए काम नहीं कर सकते या आपका काम देर में होगा या होगा ही नहीं। ये वे समस्या है जिससे आम जनता परेशान हैं। यहीं हाल प्रदेश के सस्ता - गल्लों की दुकानों का भी हैं। जहां राशन आता तो है लेकिन दुकानदार उसे ब्लैक में बेचते है। जिससे राज्य में आक्रोश की स्थिति बन जाती है। वहीं प्रदेश की सड़कों का हाल बेहद ही खराब है। तो वहीं कई स्थानों में सड़कों है ही नहीं लोग 10-किलोमीटर चलकर अपने रोजमर्रा का सामान ले जाते हैं। समस्या कई है लेकिन समाधान ना मात्र है। 
कहे तो किस से कहे, सुनेगा तो कौन सुनेगा..? ये एक बड़ी चिंता है। हालात तो ये भी है कि प्रदेश में पलायन दिन पे दिन बढ़ता जा रहा है। इसका कोई परामर्श अभी तक निकलता नहीं दिख रहा है और ना ही अभी तक लगता है कि राज्य सरकार इसके लिए कोई कदम उठाएगी। प्रदेश में सरकार अभी तक बीजेपी & कांग्रेस के अलावा किसी दूसरी पार्टी की बनी नहीं हैं।  इन सोलह सालों में ये दो पार्टी एक- दूसरे पर आरोप थोपती नज़र आई है। कब होगा प्रदेश का विकास कब मिलेगा युवाओं को रोजगार..? ये एक चिंता का विषय ही नहीं बल्कि प्रदेश की समस्या भी है। प्रदेश में स्वामी से लेकर रावत तक कर चुके हैं शासन। लेकिन राज्य का हाल दश की तश है। राज्य में एक और समस्या चिंता का मूल विषय है। जंगली जनवरों का आंतक जिन्हें उत्तराखंड की जनता का जीना ना मुमकिन कर दिया है जिसके चलते यहां की जनता ने खेत करनी कम कर दी हैं। वहीं आंवारा जानवरों ने भी यहां की खेती चोपट कर दी है। एक ओर यहां के जंगल लीसे के लिए समाप्त होते दिख रहे है। तो वहीं कुछ लकड़ी चोरों का आंतक इन्हें नष्ट कर रहे है। लेकिन प्रदेश सरकार सोयी हुई है। जो कोई कदम नहीं उठाती है। मेरा प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार से यहीं निवेदन है कि जनता का भी ध्यान रखें और साथ ही प्रदेश की समस्याओं का निदान करें।


                                    संपादक- दीपक कुमार कोहली     

  

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