साहित्य चक्र

19 October 2024

कविता- नियत



नियत को साफ रख कर्म भी अच्छे कर ले

खुला मन है अगर तो खुशियां मिलती जहां की
ईर्ष्या अगर मन में है तो रहती हमेशा उदासी है
कर्म तेरे अच्छे हैं तो किस्मत तेरी दासी है
नियत अच्छी है तेरी तो घर में मथुरा काशी है

तन की मैल को तो पानी निकाल ले गया
कपड़ों की गंदगी भी साबुन ले जाएगा
उजला तन हो गया कपड़े भी उजले हो गए
मन में जो गन्दगी भरी है उसको कैसे धो पाएगा

नियत को साफ रख कर्म भी अच्छे कर ले
गुनाहों को छोड़ कर नेकी को गोद में भर ले
आखिर में यही काम आनी है तेरे
बुरे कामों को त्याग कर कुछ अच्छे काम कर ले

छोड़ेगा जब बुरे कर्म मन अपने आप अच्छा हो जाएगा
मज़बूती मन को मिलेगी कोई गम नहीं सताएगा
अच्छा करेगा तो आगे भी अच्छा ही मिलेगा
बुरा चाहेगा भी कोई तेरा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा।


                                                    - रवींद्र कुमार शर्मा


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