साहित्य चक्र

21 October 2024

कविता- बेटी




जब-जब बेटी आती,
धरा पर संग लाती,
खुशियां अपार,
ईश्वर का उपहार हैं बेटियॉं, 
सूर्य की प्रथम किरणें हैं बेटियॉं,
माता-पिता की भौंर हैं बेटियॉं,
तारों से शीतल छाव हैं बेटियॉं,
घर-प्लऑंगन में चिड़ियों-सी,
चहचहाट हैं बेटियॉं,
गुलाब,जूही,चंपा,चमेली,
मोगरा-सी खूशबू हैं बेटियॉं, 
दो कुल को रोशन करती हैं बेटियॉं,
कोयल-सी मधुर गीत हैं बेटियॉं,
माता-पिता का सौभाग्य होती हैं बेटियॉं,
पंचामृत में तुलसी-सी हैं बेटियॉं,
मॉं की सखि हैं बेटियॉं,
खिलती कली है बेटियॉं, 
पुलकित सुमन-सी हैं बेटियॉं,
मॉं बाप का दुख-दर्द दूर करती हैं बेटियॉं,
घर की रोशनी हैं बेटियॉं, 
परसों होती हैं बेटियॉं,
अंश और गर्व होती हैं बेटियॉं,
संस्कार और संस्कृति हैं बेटियॉं, 
बाग और दुआ हैं बेटियॉं,
देवी का रूप हैं बेटियॉं, 
मॉं की इच्छा हैं बेटियॉं, 
पिता का अभिमान हैं,बेटियॉं,
चंदन की महक हैं बेटियॉं,
पापा की लाड़ली दुलारी परी हैं बेटियॉं।

                                         - संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया 


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