क्या मेरे अस्तित्व के
कोई मायने
रहेंगे ?
अगर मैं उतार भी दूँ
चेहरे ओर से चेहरा
मेरे स्वयं का
अस्तित्व ही पिघल
जायेगा
और
मैं अनाम हो जाऊंगी।
तेज झंझावतों में उठे
धूलकणों की तरह
हो चुका होगा
जर्जर मेरा अंग-प्रत्यंग
मेरा वर्ण धीमा हो जाएगा
चेहरा, चेहरा नही रहेगा।
काश !
मेरी थोड़ी-सी सांस
मेरी इच्छा के
अधीन हो,
यह कौन-सी आज्ञा लेकर
तुम आये हो।
मैं अकेली-सी पड़ गईं हूँ,
मन करता है
कि मैं
अपने जख्म दिखा दूँ
अपना आवरण उतार दूँ
तब क्या
मेरे अस्तित्व के
कोई मायने रहेंगे ?
अगर मैं स्वयं ही
आवरण उतार दूँ तो
मेरा नाम ही खो जायेगा।
- डॉ. पल्लवी सिंह 'अनुमेहा'
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