!! अनमोल रिश्तें !!
आपस में रिश्ते एक स्नेह की जंजीर है।
यह मानो एक डोर है यह एक अंजीर है।
ना तुम साथ रहकर निभा पाए।
ना तुम अलग रहकर जोड़ पाए।
गुजर रही है जिंदगी कब करोगे कोशिश?
क्या? कभी नहीं नमाओगे अपना शीश?
संभलने को तो अभी-भी शेष है।
जान लो तुम अभी-भी विशेष है।
सर झुका कर हाथ ही तो आगे बढ़ाना है।
बस सामने रिश्तों का अनमोल खज़ाना है।
*****
अजनबी कौन हो तुम ?
मैं बात कर रही हूँ और मौन हो तुम।
क्या, आंखों-आंखों में ही सब कहोगे ?
अपने दिल की बात मुझसे नहीं कहोगे।
मुझे समझ नहीं आया तो क्या करोगे?
तब तो मौन व्रत तोड़ोगे।
अजनबी कौन हो तुम ?
मैं बात कर रही हूँ और मौन हो तुम।
क्या, हाथों में हाथ ले दोगे मेरा साथ ?
क्या, ऐसी भी होती है कभी मुलाकात ?
ये कैसा रिश्ता है मौन में भी पिसता है ?
क्या तू कोई फरिश्ता है ?
अजनबी कौन हो तुम ?
मैं बात कर रही हूँ और मौन हो तुम।
- संजय एम. तराणेकर
No comments:
Post a Comment