साहित्य चक्र

12 February 2025

कुंभ रौ न्हाण




बात बाळपण री है 
म्हं टाबर हो 
पोह अर माघ रै माह 
जाडो घणों पड़तो 
नाक चालतो दांत बाजता 
धरती धौळी होंवती
आकड़ा तक बळज्यांवतां
न्हावण रै नावं सूं धूजता 
फुरसत अर अदितवार रै दिन 
न्हावण रौ ओपतो मुहुर्त होंवतों 
भींत री ओट मां पाटों झलाती 
म्हें धूळ माटी सूं खेलता 
अघोरी बाबा बण्यां फिरता
मां पकड़ जट पाट'अ पटकती 
म्हाने नंग धडंग 
बाखळ बिचाळें 
मां न्हावंती
म्हें नागा साधु बरगा लागता 
बळबळता पाणीं सूं
मां न्हावंती 
भाटा री टिकड़ी सूं 
काया रौ दाळद(मेल) उतारती 
मां म्हारें तेल रौ चौपड़ करती
ठोडी पकड़ पटा बाती
जट्टा रौ बुगो करती 
माथा माथे काळों टिकों करतीं 
आपरै हाथ दूध पिलावंती 
रोटी रौ चुरमों बणाय खिलावंती
मां रै हाथ त्रिवेणी बैंवती
आजै जद बाळपण याद करूं 
मां रै हाथ रौ न्हाण 
आज रै महाकुम्भ सूं सवायो लागै।


                                  - जितेन्द्र कुमार बोयल 

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