साहित्य चक्र

12 February 2025

कान्हा का आगमन

गांव के एक कोने में रामलाल और उसकी पत्नी सीता का छोटा-सा घर था। दोनों बेहद साधारण जीवन जीते थे, परंतु उनकी दिनचर्या में भक्ति और सेवा का बड़ा महत्व था। रामलाल और सीता दोनों भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे और हर जीव-जंतु में भगवान का वास समझते थे। उनकी दिनचर्या में कभी कोई जल्दबाजी नहीं थी। वे अपने समय को भगवान के नाम, पशु पक्षियों की सेवा और अपने छोटे से घर में शांति से बिताते थे।




एक सुबह, जब सीता आंगन में झाड़ू लगा रही थी, उसने देखा कि उनके घर के बाहर एक सफेद गाय खड़ी है। गाय पूरी तरह से सफेद थी, उसकी आंखें गहरी और शांत थीं, और उसकी चमकती हुई त्वचा जैसे किसी दिव्य प्रकाश की झलक देती हो। सीता ने उसे गौर से देखा। गाय वहां चुपचाप खड़ी सीता को देखती रही।

सीता ने सोचा कि यह भूखी होगी। उसने रसोई से रोटी और गुड़ लाकर गाय को दिया। गाय ने रोटी खाई और फिर सीता को देखते हुए अपना सिर झुका लिया, जैसे आभार व्यक्त किया और वहां से चली गई।

इसके बाद, वह गाय हर दिन आने लगी। सुबह, दोपहर और शाम—दिन में तीन बार। जब तक रामलाल या सीता उसे रोटी न देते, वह वहीं घर के दरवाजे पर खड़ी रहती। यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा। सीता और रामलाल उसे प्यार से "कान्हा" कह पुकारने लगे। गांव के अन्य लोगों ने भी गौर किया कि वह गाय केवल रामलाल के घर ही आती थी। लोग चर्चा करने लगे, "यह गाय कितनी अजीब है। वह तो बस उसी घर पर आती है!"

एक शाम, जब रामलाल घर पर नहीं था, और सीता अकेली रसोई में काम कर रही थी, वह गाय आंगन में आकर खड़ी हो गई। सीता ने सोचा कि रोज की तरह उसे रोटी देनी होगी। लेकिन जब उसने रोटी लेकर गाय की ओर कदम बढ़ाए, तो गाय ने अचानक जोर से डकार मारी। सीता चौंक गई। उसने देखा कि गाय की आंखें किसी अजीब से तेज से चमक रही थीं।

सीता घबराई और पीछे हट गई, लेकिन गाय अपनी जगह पर स्थिर खड़ी रही। तभी अचानक आंगन में तेज हवा चलने लगी और गाय ने अपने खुरों से जमीन को खोदना शुरू कर दिया। सीता डर गई और तुरंत पीछे हट गई।

गाय ने जहां-जहां खुर मारे थे, वहां कुछ जमीन फटने लगी, और एक रहस्यमयी आभा निकलने लगी। सीता पूरी तरह हैरान रह गई। उसने धीरे-धीरे जमीन के नीचे झांककर देखा तो वहां एक चमचमाता हुआ तांबे का घड़ा नजर आया। सीता ने तुरंत रामलाल को बुलाया और दोनों ने घड़ा निकाला। घड़ा सोने और चांदी के गहनों और सिक्कों से भरा हुआ था।

दोनों की आंखों में आंसू थे, और वह भगवान कृष्ण की कृपा से अभिभूत हो गए। वे समझ गए कि यह धन केवल भौतिक नहीं है, बल्कि यह भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद है। दोनों गाय को प्रणाम करने लगे। गाय ने भी एक एक कर दोनों को देखा और वहां से चल दी। दोनों ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह गाय नहीं रुकी और थोड़ी दूर जा कहीं खो गई। दोनों ने उसे खूब ढूंढा पर वह कहीं नहीं मिली।

गांव वालों को जब इस घटना का पता चला, तो सबने इसे भगवान कृष्ण की लीला माना, जो उनकी भक्ति और सेवा का फल देने आई थी। रामलाल और सीता ने दिल से भगवान कृष्ण का आभार व्यक्त किया और अपनी भक्ति में और भी गहरी श्रद्धा से लीन हो गए।

 
                                                  - विकास बिश्नोई



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