साहित्य चक्र

23 February 2025

कविता- हिमालय और जीवन





ऐ हिमालय! जरा बताओ
तुम इतने ऊंचे तो हो,
क्या तुम्हारे पास तुम्हारे अपने हैं ?
अगर हैं तो फिर तुम अकेले क्यों हो ?
अगर नहीं है तो फिर तुम्हारा
इतना ऊंचा होने का क्या फायदा ?
ऐ हिमालय! कही तुम स्वार्थ के 
घमंड में जकड़े तो नहीं हो ?
शायद! तुम्हारे पास 
सिर्फ झूठी शान है।
बाकी तुम हर रोज आंसू बहते हो।
क्योंकि! गंगा एकमात्र तुम्हारी बेटी थी,
वो भी तुम्हें छोड़कर चली गयी।
तुम ऊंचे तो हो, मगर अकेले हो।


                                   - दीपक कोहली



No comments:

Post a Comment