साहित्य चक्र

23 February 2025

मातृभाषा पर विभिन्न रचनाकारों की टिप्पणी पढ़िए

मातृभाषा दुनिया के किसी भी हिस्से में रहने वाले मनुष्य के लिए न केवल उसकी भावनाओं और विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम है, बल्कि उसे अपने उस क्षेत्र विशेष की सभ्यता और संस्कृति को सहृदय महसूस कर गर्वान्वित होने का भी सरल अवसर प्रदान करता है। प्रत्येक मनुष्य का यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह वार्तालाप के अलावा शिक्षा-दीक्षा भी अपनी मातृभाषा में प्राप्त करे और इस क्रम में कोई भी कारक उसे अपनी मातृभाषा के चलते हीन भावना का अहसास न कराए। 





परंतु आज़ के समय में जबरन मातृभाषा को कुचलकर कुछ विशेष भाषाओं को ज्यादा महत्वपूर्ण और अनिवार्य दर्शाकर भाषा थोपने की होड़-सी मची है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि किसी भी मनुष्य या क्षेत्र या देश की तरक्की या शिक्षा के लिए चुनिंदे भाषाओं को जबरदस्ती स्वीकार करना ही पड़े। अगर ऐसा होता तो जापान और चीन जैसे देश कभी इतनी तेजी से विकास नहीं करते। जापान और चीन जैसे देशों में ग्लोबल भाषा घोषित अंग्रेजी की हैसियत उतनी ही है जितना कि गली में घूमते कुत्ते की। 

आप देख सकते हैं कि वहां सामानों के रैपर या डिब्बों तक में अंग्रेजी में कुछ भी नहीं लिखा रहता है। फ़िर भी दोनों ही देश विश्वपटल पर तकनीक और तरक्की के मामले में कई अंग्रेजी भाषी देशों से मीलों आगे है। इसलिए इस बात को समझने की आवश्यकता है कि अगर कोई अनिच्छा जाहिर करे तो जबरन भाषा न थोपकर मातृभाषा पर ही उसे आगे बढ़ने दिया जाय। अन्य भाषाएं सीखना उसके निजी रुचि पर छोड़ दिया जाना चाहिए।

                                                                              - कुणाल

*****


मां, मातृभूमि और मातृभाषा स्वर्ग से भी गरिमामयी है। प्रति वर्ष २१ फरवरी के दिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। परंतु मातृभाषा मात्र एक दिन के लिये गुरुत्वपूर्ण नहीं, अपितु जन्म से मृत्यु तक हमारा साथ निभाते हैं।

मातृभाषा तो मां से मिली भाषा है। हमारी पहली बोली, पहला शब्द, पहला उच्चारण, मातृभाषा में ही होता है। मातृभाषा वो भाषा है, जो हमारी कल्पनाओं को शब्दों में संवारती है। हमारे चिंतन की एक मात्र भाषा है। मातृभाषा ही है, जो सपनों की भाषा होती है। हम लाख कोशिश के बाद भी अपनी सोच, कल्पना, चिंतन और सपनो को दूसरी भाषा में नहीं देख सकते। अतः मातृभाषा हमारी अंतरात्मा की भाषा है। 

हम मनुष्य चाहे किसी भी धर्म, जाति, स्थान या भाषा से जुड़ें हों, हमें अपनी अपनी मातृभाषा के व्यवहारिक प्रयोग में लज्जा या संकोच नहीं करना चाहिए। हमें अपनी मातृभाषा पर गर्वित होना चाहिए है। मातृभाषा हमें अपने जड़ों से जोड़ें रखतीं हैं। अतः मातृभाषा ही हमारा प्रथम परिचय है। मै स्वीकार करती हूं, मैं अपनी मातृभाषा को समर्पित मन से सम्मान करती हूं।


                                                                 - सुतपा घोष 


*****

मातृभाषा वह भाषा है जिसे व्यक्ति जीवन के प्रारम्भ से मृत्यु तक विचारों के आदान प्रदान में प्रयोग में लाता है। मातृभाषा में प्रत्येक व्यक्ति एक  सहज भाव से अपने विचारों को प्रकट करने में सफल होता है। मातृभाषा हमारे संस्कारों, जीवन मूल्यों के संचार में भी सहायता  करती है। मातृभाषा सदैव ह्रदय से जुडी होती है। 

परिणामस्वरूप एक व्यक्ति का विकास एवं उन्नति मातृभाषा में अधिक बेहतर तरीके से सम्भव है। हमारे देश में आधिकारिक मातृभाषा,राजभाषा हिंदी है। मातृभाषा पूरे देश में लोगों में परस्पर सम्पर्क की भाषा होती है। हमें मातृभाषा का महत्व समझते हुए हिंदी भाषा का सम्मान करना चाहिए एवं हिंदी के प्रयोग को  सदैव प्रोत्साहित करना चाहिए। 

जापान, जर्मनी एवं चीन जैसे शक्तिशाली देश अपनी मातृभाषा को अन्य भाषाओं से वरीयता देते हैं जो इन देशों में विकास की एक कड़ी के रूप में मुख्य रूप से कार्य करती है। मातृभाषा का यह सम्मान अनुकरणीय है। हमें भी अपनी मातृभाषा को सर्वोपरि मान कर उसका अधिकतम प्रयोग करना चाहिए। इससे देश को विकास पथ पर अग्रसर होने में और अधिक मदद मिलेगी।

                                                                - प्रवीण कुमार

*****

मातृभाषा शब्द से ही माँ की ममता का एहसास हो जाता है। माँ जैसे अपने बच्चों को लाड प्यार से पालती है ,वैसे ही मातृभाषा भी बच्चे की तोतली बोली को स्वीकार कर अपना प्यार जताती है। 

मातृभाषा में कही गई बात बच्चा स्वाभाविक रूप से ही सीख जाता है। मातृभाषा को सीखने के लिए किसी बच्चे को अलग से शिक्षक की आवश्यकता नहीं होती ।बच्चा जब बड़ा होकर किसी दूसरे राज्य में जाता है और वहाँ उसे जब अपनी मातृभाषा में बोलने वाला कोई मिलता है तब वह बहुत ही खुशी के साथ उससे अपनी मातृभाषा में बात करता है। उस व्यक्ति से बात करने पर उसे सगे भाई बंधु से मिलने का एहसास होता है।

                                                           - अनुरोध त्रिपाठी 


*****


संसार में मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपने विचारों को बोली के रूप में व्यक्त करता है। मानव जन्म के बाद जिस भाषा को सबसे पहले सीखता है, वही उसकी मातृभाषा कहलाती है। मातृभाषा को मानव की प्रथम भाषा या देसी भाषा भी कहा जाता है। अपनी मातृभाषा को बालक धाराप्रवाह बोल पाता है और इसी भाषा से ही उसका समग्र विकास सम्भव होता है। 

बालक की प्राथमिक शिक्षा में भी उसकी मातृभाषा पर ही बल दिया गया है। मातृभाषा में वह अपने विचारों या भावनाओं को बेहतर तरीके से व्यक्त कर सकता है। मेरे क्षेत्र की मातृभाषा हिंदी है और हिंदी के बोले गए शब्दों का प्रभाव हमारे मन मस्तिष्क व हृदय पर बहुत अच्छे से पड़ता है। यह भारत की उत्तम भाषा में से एक है। मुझे अपनी मातृभाषा पर गर्व है। सभी देशवासियों को 21 फ़रवरी पर मातृभाषा दिवस की बहुत-बहुत बधाई।

                                                                         - आनन्द कुमार


*****


मातृभाषा हमारी पहली अभिव्यक्ति या भाषा होती है, जिससे हम अपनी भावनाओं को प्रकट करते है। मातृभाषा का नाता हमारे बचपन से ही प्रारंभ होता है, इसलिए हमारे दैनिक जीवन में मातृभाषा का अहम स्थान होता है।
मातृभाषा हम सभी की पहचान का स्मारक, संस्कृति की धरोहर और मूल्यों की जननी है। 

मातृभाषा हम सभी को एक दूसरे से जोड़ती है और एक सशक्त माध्यम की भूमिका निभाती है। मातृभाषा का संरक्षण करना हर एक नागरिक का कर्तव्य है, जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी भी अपनी जड़ों से जुड़ी रहें। मातृभाषा हमारे आत्मविश्वास को सुदृढ़ बनाती है।

                                                                           - अंशिता त्रिपाठी

*****


मेरी मातृभाषा बंगाली है, मातृभाषा का तात्पर्य ही यह है कि जो भाषा हम मां की गोद में रहकर सीखते हैं, मुझे गर्व है कि हमारी मातृभाषा को समृद्ध बनाने के लिए श्री ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने बंगला लिपि को सरल बनाया, जिस पर कार्य करते हुए कवि गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर का लिखा हुआ जन गण मन आज हमारी राष्ट्र गान है तथा वंदे मातरम् जो हमारा राष्ट्रीय गीत है उसकी रचना भी वंकिम चंन्द्र जी ने की थी।

यूनेस्को ने बंगला भाषा को सबसे मीठा भाषा की श्रेणी में रखा था। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अपनी मातृभाषा को प्रतिष्ठित करने के लिए कितने लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी।

आज हम इसी पर कुछ प्रकाश डाल रहे हैं। बंगाली भाषा आंदोलन (बराक घाटी)1960 में असम सरकार के उस फैसले के खिलाफ शुरू हुआ था जिसमें असमिया को राज्य की एकमात्र आधिकारिक भाषा बनाने का फैसला किया गया था, जबकि बराक घाटी के ज़्यादातर निवासी बंगाली बोलते थे।

घाटी के लगभग 80% निवासी जातीय बंगाली हैं और बराक घाटी क्षेत्र में बंगाली आबादी में हिंदू और मुस्लिम दोनों लगभग बराबर संख्या में हैं, जो आबादी का भारी बहुमत है। भारत के अन्य हिस्सों से आए मूल जनजातियों और अप्रवासियों की भी पर्याप्त अल्पसंख्यक आबादी है।

भाषा शहीदों की याद में बनाया गया स्मारक मुख्य घटना 19 मई 1961 को सिलचर रेलवे की हत्या कर दी थी। भाषा आन्दोलन में शहीद हुए लोगों की सूची- कमला भट्टाचार्या, हितेश विश्वास, शचींद्र मोहन पाल, चंडी चरण सूत्रधर, तरणी देवनाथ, कुमुद दास, सुनील सरकार, सुकोमल पुरकायस्थ, कानाइ लाल नियोगी, वीरेंद्र सूत्रधर आदि

भाषा आंदोलन से जुड़ी कुछ और बातें- बंगाली भाषा आंदोलन के बाद, 21 फ़रवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। यह दिवस भाषाई  विविधता और सांस्कृतिक विरासत के महत्व को दिखाता है।

                                                                       - रत्ना बापुली


*****


मातृभाषा हमारी हो या तुम्हारी सबको जान से प्यारी है।
मातृभाषा और हमारा नाता जन्मों जन्मांतर से है।

सींचा है मातृभाषा ने हमें बड़े ही प्रेम से अपने आंचल में जैसे इक मां छोटे बच्चे को अपने आंचल में रखती है। मां बिना किसी स्वार्थ के हम सभी को हमेशा बड़े ही प्रेम से संजो कर और जोड़ कर रखती है। मातृभाषा ने हमें जीना सिखाया और सिखाएं जीवन जीने के सभी उसूल। कैसे चुकाएंगे हम मातृभाषा आपका ऋण क्योंकि आपका धरती पर है ना कोई मूल।

                                                                         - रजनी उपाध्याय

*****


मातृभाषा दिवस की सभी सम्मानित साथियों को बधाई। आज विश्व मातृ भाषा दिवस है। मातृ का मतलब मां और भाषा मतलब बोली यानि कि मां की भाषा। मां ही हमें पहला शब्द सिखाती है जो हमारी मातृ भाषा होती है। मातृ भाषा हमें अपनों से जोड़े रखती है हमें प्यार सिखाती है। 

मातृ भाषा को हम देशी भाषा में दुध बोली भी कहते है। सभी को अपनी मातृ भाषा से बहुत ही प्यार होता है चाहे वह देश या विदेशी हों। जब भी जहां भी कभी किसी को अपनी भाषा का व्यक्ति अगर मिल जाए तो उनको लगता है कि ये हमारा अपना ही प्रिय है वह बहुत प्रेम से मिलते है और अपनी मातृ भाषा में बातें करते है, जिससे उन्हें बहुत सुकून मिलता है।

                                                                 - सुमन डोभाल काला


No comments:

Post a Comment