किसान रो साथी
रात रौ बेली
एक टांग रौ धणीं
बापड़ो अड़वों
खेत रूखाळ'अ
भूखों तिसायों
एक लता गाबा मांय
स्यावड़ तांई साथ निभावें
बाबो भला हीं गांईतरां करै
पण अड़वो आपरी पूरी ड्यूटी बजावें
अड़वो भला हीं बेजान हुवे
पण बाबा रो (किसान)जीव
पूरी रात अटक्यों रेवै अड़वा मांय
सांझ री बैळ्यां घरां टीपती बगत
बाबो अड़वा नै समळावणीं देवणों कद भूले हैं
समळावणीं लेंवतीं बगत
अड़वा रौ हांडों सो सिर
पून रै थपैड़ा सूं
हालतों बगै
ज्याण्यों अड़वों मुऴकैं हैं
अड़वों आपरी खातर
कद मांगें हैं रोटी
पण अड़वें रै पाण
धान सूं भरिजे हैं
किसान अर देस री कोठी।
- जितेन्द्र कुमार बोयल
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