साहित्य चक्र

26 February 2025

कविता- सास और बहू



सास बहू का रिश्ता है बड़ा पुराना
इसकी चर्चा करता है सारा जमाना। 

नई नवेली बहू जब घर में है आती
सास रिश्तेदारों से मुलाकात है करवाती। 

बहू आने की खुशी भी खूब है जताती
आपस में हंंसी खुशी से समय बिताती। 

समय की गति सदा एक जैसी  नहीं रह पाती। 
कभी कभी आपस में तकरार भी हो जाती। 

सास बहू को दहेज न लाने के ताने भी लगाती
बहू माँ बाप की लाज बचाने में चुपचाप सह जाती। 

वक्त बदलने में देर नहीं लगती
अब बहू बिन दहेज खूब है जचती। 

जब मैं थी बहू ये कहानी सास सुनाती
सास के सामने हमेशा घूंघट में ही नजर आती। 

अब सास , वो सास कहाँ रही
जिनकी बहूओं ने लाख परेशानियां है सही। 

आज बहू सास को माता है कहती
सास भी बहू को बेटी की तरह है सहलाती। 

सहेलियों की तरह आपस में है रहती
अपने सुख दुःख एक दूसरे से हैं कहती। 


                      - विनोद वर्मा



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