साहित्य चक्र

04 October 2022

कविताः समाज के लिए घातक लोग




घातक होते है वो पुरुष समाज के लिए जिनकी
 सोच उनकी नजर  से भी गंदी होती है।

जो झाँकती है बच्चियों और महिलाओं के बदन को,
साड़ी पहनी हो उस ने या पहना हो  सलवार सूट।

पर उन की गंदी नजर औरतों के बदन को नापती है।

कुछ तो बेटी और बच्चियों को भी नोच खाते है।
फ्रांक और स्कर्ट में अपनी सोच की लार बहाते है।

बस उन की नजर उन की सोच से छोटी होती है।
जो वस्त्रों के अंतर वस्त्रों को टटोलती है।

यदि करने जाते पूण्य स्नान गंगा के तट पर भी
नही रोक पाते वो नयनों की ताका झांकी को।

निहारते रहते कपड़े बदल रही नारी को।

कुछ महिलाएं भी घातक बन जाती है समाज के लिए
जो परोसती खुद को और लालच बढ़ाती है मर्दो का

फैशन की अंधी दौड़ में बदनों की निवाइश करती है।
चंद इंचों के ड्रैस पहन कर खुद पर इतराती है।

उन चंद बिकाऊ बदनों की वजह से शिकार होती है
छोटी बच्चियां दरिदंगी और हैवानियत का ।

घातक है ये लोग समाज के लिए जो 
गंदी सोच और गंदी नजर लिए फिरते है।


                                                     लेखिका- संध्या चतुर्वेदी


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