साहित्य चक्र

17 October 2022

कविताः कितना अच्छा होता





        
बचपन के वो दिन काश लौट आते तो कितना अच्छा होता ।
बीते हुए पल फिर से जी पाते तो कितना अच्छा होता।।

पहले के जैसे सब एक समान होते तो एक दूजे के साथ होते,  
मिट्टी के खिलौने से बच्चे खुश हो जाते कितना अच्छा होता ।

नफरत की आंधियाँ सी थम जाती प्यार की हवाएं बहने लगती ।
हर तरफ काश प्यार ही प्यार होता तो कितना अच्छा होता ।।

हर रिश्ते में विश्वास होता एक अटूट प्यार का बंधन होता ।
सब सुख _ दुख में एक दूजे के साथ होते तो कितना अच्छा होता।।

ना किसी को अपनी अमीरी का घमंड होता न गरीबी का दुख:
हर एक दूसरे को सम्मान देते तो कितना अच्छा होता ।।

खुशी के पल फिर से जी पाते अपनो से जब चाहें मिल पाते 
किसी को खोने का कभी गम नही होता तो कितना अच्छा होता।।

सबको दो वक्त की रोटी नसीब होती न कोई प्यासे सोता ।
न किसी को भूख से तड़पना होता तो कितना अच्छा होता।।

न किसी से कोई बैर होता न कोई साजिश करते ।
ना किसी बेगुनाह की खून होती तो कितना अच्छा होता ।।

केवल पानी की प्यास होती , लक्ष्य पाने की आश होती 
मेहनत से सब कमाते आगे बढ़ते तो कितना अच्छा होता।।

संघर्ष से ज़िंदगी जीते ना कभी किसी से छल करते । 
ईमानदारी की एक दुनियां होती तो कितना अच्छा होता।।


                                         कवियत्री- मनीषा झा


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