अच्छाई के आगे बुराई की
जीत होती हैं,असत्य के आगे
बाते कहीं झूठी तो नहीं गीता का
सार अर्थ विहीन तो नहीं,कौन
कहता हैं कमबख्त अच्छाई के
आगे बुराई झुकती हैं,जिस्म तो
जिस्म भी रोज लुटती हैं,मां बाप
ने तो ब्याह कर के घर से निकाल
दिया,फिर मूड कर कौन देखता हैं,
की बेटी रोज मरती हैं या जीती हैं,
रोती हैं बिलखती हैं पर उसकी आवाज
उन तक कहां पहुंचती हैं,जो कभी छोटी
सी चीख पर उनकी जान निकल जाती थी,
आज उस बेटी की मुस्कान के
पीछे की दर्द भी दिखती हैं,
लेखिका- मनीषा झा जी
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