साहित्य चक्र

21 October 2022

सुंदर गज़ल- ऐसा लगता है



खाली  दिल का कोना लगता है,
हंसना  अपना  रोना  लगता  है।

क्यों  लगते हो मृगतृष्णा से तुम,
खो कर उनका  होना  लगता है।

दावत - पंगत की बात करो मत,
खाना   पत्तल - दोना  लगता है।

कितना  मुश्किल होता है जीवन,
ख़ुद  को  हरदम खोना पड़ता है।

तुमने  कंकड़  फेंका  जो जल में,
वो  पत्थर अब  सोना  लगता है।

आती  है  याद  तुम्हारी जब-जब,
तब-तब  चांद  सलोना लगता है।

रहती है मन  में  हरदम   दुविधा,
कोई   जादू  - टोना   लगता  है।


                                       लेखक- नागेन्द्र नाथ गुप्ता


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