विश्व में लगभग हर प्राणी चिंता से ग्रस्त है। चिंता एक मानसिक क्रिया है। हमारे समाज में कई लोग चिंता को अच्छा बताते हैं, क्योंकि चिंता करने से हम सामने वालों या अपनों के प्रति अपना प्यार और स्नेह आसानी से प्रकट करते हैं। चिंता हमारे मन के काल्पनिक संकल्पों की एक उपज है, जो हमारे भीतर की चेतना और रचनात्मकता को नष्ट कर देती है। हम सभी जानते हैं कि चिंता करने से हमारा समय और शक्तियों का क्षय होता है। चिंता से मुक्त होना बहुत ही कठिन है। अगर कोई व्यक्ति चिंता से ग्रस्त होता है तो चिंता से मुक्त होने में काफी समय लग जाता है।
चिंता का मुख्य कारण हमारे समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी से चिंता करने की प्रथा का चलते आना है। बचपन से ही हमारे मां-बाप हमें यह बताते हैं कि चिंता करना अच्छा है। मगर जब हम एकांत में बैठकर सोचते और देखते हैं तो पाते हैं कि चिंता हमारे अंदर एक डर की भावना पैदा करती है। जिसके कारण हम कई बीमारियों से ग्रस्त हो सकते हैं। हम किसी के प्रति चिंतित तभी होते हैं, जब हमारा स्वार्थ वहां छिपा होता है। हमारी चिंता का मूल कारण हमारे अंदर असुरक्षा की भावना है, जो हमें अंदर ही अंदर परेशान करती रहती है।
अगर हम वर्तमान में जीना सीखें तो हम चिंता से मुक्त हो सकते हैं या चिंता मुक्त जीवन जी सकते हैं। हमें नकारात्मक भविष्य और पीड़ादायक भूतकाल के बारे में ज्यादा सोच कर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। हमें अपने उज्जवल वर्तमान पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए और अपनी शक्तियों का इस्तेमाल अपने वर्तमान को बेहतर करने के लिए करना चाहिए। याद रखें शांति की अनुभूति हमें केवल आज हो सकती है ना ही भविष्य में और ना ही भूतकाल को याद करके। इसलिए हम सभी को अपने आज के बारे में सोचना चाहिए और दूसरों के प्रति शुभ भावनाएं रखनी चाहिए, ताकि हमारा आज प्रकाशमय और सुखमय हो। आइए चिंता से दूर वर्तमान में जीने का प्रयास करते हैं।
संपादक- दीपक कोहली
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