नामाज़ या सलाह
नमाज़ का अर्थ "सलाह का पर्याय" होता है। सलाह को ही नामाज़ कहा जाता है। नमाज़ इस्लाम की पवित्र कुरान शरीफ में बार-बार आया एक शब्द है। जो मुसलमान को इसे पढ़ने का आदेश देता है। वैसे नमाज़ एक प्रकार से हिंदूओं की पूजा-पाठ की तरह है। जिस तरह हिंदूओं में पूजा-पाठ करना जरूरी माना जाता है, ठीक उसी तरह इस्लाम में नमाज़ अदा करना जरूरी है। नमाज़ पढ़ना मुसलमानों के लिए बहुत बड़ा कर्तव्य है। आज मैं आपको इस्लाम में नमाज़ की क्या भूमिका है या नमाज़ क्यों पढ़ी जाती है...? नमाज़ किस तरह अदा की जाती है। कितने तरीके की नमाज़ होती है..? हर वो तथ्यों से मैं आपको रूबरू कराऊंगा। आखिररकार इन तथ्यों को जानना भी चाहिए। जो हमारे समाज के लिए बेहद जरूरी है।
वैसे नमाज़ पांच प्रकार की होती है। जो इस प्रकार है-
1) नमाज़-ए-फजर - जिसे (उषाकाल की नमाज़) भी कहते है। जो सूर्य उदय से पहले पढ़ी जाती है।
2) नमाज़-ए-जुह्ल - जिसे ( अवनति काल की नमाज़) भी कहते है। जो मध्याह सूर्य के ढ़लना शुरू करने के बाद पढ़ी जाती है।
3) नमाज़-ए-अस्र- जिसे ( दिवसावसान की नमाज़) भी कहते है। जो सूर्य अस्त होने से पहले पढ़ी जाती है।
4) नमाज़-ए-मगरिब - जिसे ( पश्चिम की नमाज़) भी कहते है। जो सूर्यास्त के तुरंत बाद पढ़ी जाती है।
5) नमाज़-ए-अशा - जिसे ( रात्रि की नमाज़ ) भी कहते है। जो सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद पढ़ी जाती है।
अब आपको नमाज़ पढ़ने से पहले क्या किया जाता है। उन तथ्यों से अवगत कराता हूं।
नमाज़ पढ़ने से पहले प्रत्येक नमाज़ अदा करने वाले व्यक्ति को (अर्धस्नान) बुजू यानि बाजू तक हाथ धोना, धुटने तक पैर धोना, पूरा मुख धोना, नाक साफ करना, आदि।
वहीं अगर नमाज़ किसी मस्जिद में हो रही हो तो अजॉं भी दी जाती है। अब आप सोच रहे होंगे अजॉं क्या होती है। अजॉं एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ पुकार होता है। यानि आवाज देना, या संदेश देना। अजॉं नमाज पढ़ने से पहले 15 मिनट दी जाती है। अजॉं इसलिए दी जाती है, ताकि मस्जिद के आस-पास या जहां तक आवाज जा रही हो, वहां के मुसलमान नमाज़ के लिए मस्जिद आ सके जिससे वो नमाज़ अदा कर सके। अजॉं मुसलमानों के लिए एक प्रकार की सूचना है। जो ये बताती है कि, मुसलमान लोग नमाज़ के लिए मस्जिद आए। नमाज़ में एक और खास बात ये है कि, नमाज में कुरान का पहला बाब पढ़ना आवश्यक माना जाता है। वैसे नमाज़ दो रकअतों में पढ़ी जाती है, कभी कभी चार रकअतों में भी पढ़ी जाती है। कुरान के अनुसार पांच बार की नमाज अदा करना, किसी पांच पवित्र नदियों का दर्शन द्वार है। प्रतिदिन पांच नमाज़ों के सिवा शुक्रवार को एक जुम्मअ की नमाज होती है। जिसे पढ़ने से पहले एक भाषण दिया जाता है। वहीं दूसरी नमाज़ ईदुलफित्र के दिन यानि ईद के दिन पढ़ी जाती है। एक और नमाज़ के बारे में आपको बता दूं, जब कोई मुसलमान मार जाता है तो उसे नहला कर श्वेत वस्त्र (कफन) में ढक कर मस्जिद ले जाया जाता है। वहां सब लोग एक लाइन में खड़े हो जाते है। जिसके बाद मृतक व्यक्ति की आत्मा के लिए नमाज अदा की जाती है। जिसके बाद मृतक का अंतिम संस्कार किया जाता है। अगर नमाज को देखा जाए तो पूजा-पाठ की तरह इस्लाम में इसे जगह दी गई है। जो हमें ये बताती है कि धर्म अलग-अलग हो सकते है। लेकिन ईश्वर एक ही है। चाहे राम कहलो या फिर अल्ला कह लो।।
संपादक- दीपक कोहली
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