साहित्य चक्र

16 February 2017

सोमेश्वर की 51- विधानसभा

                                     सोमेश्वर की 51- विधानसभा


जी हॉं... आज मैं बात करूगां। उत्तराखंड की सोमेश्वर विधानसभा सीट की। जो एक आरक्षित सीट है। वैसे इस सीट पर ज्यादा दबदबा किसी भी एक पार्टी का नहीं रहा है। अगर पिछले पंद्रह सालों में नज़र डालें तो, इस 
सीट पर टम्टा परिवार का कब्जा था। उत्तराखंड बनने के बाद साल 2002 में यहां पहला विधानसभा चुनाव हुआ। जिसमें इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप टम्टा विधायक चुने गए। इसके बाद साल 2007 में दूसरे विधानसभा चुनाव हुए। जिसमें बीजेपी प्रत्याशी अजय टम्टा विधायक चुने गए। वहीं साल 2009 में कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप टम्टा लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। जिसके बाद ये सीट औऱ भी रोमांचक हो गई। क्योंकि जहां कांग्रेस के पास विधायक के लिए कोई नामी चहेरा सामने नहीं था तो वहीं बीजेपी प्रत्याशी अजय टम्टा लोकसभा चुनाव हार गए। जिससे बीजेपी के लिए 2012 के विधानसभा चुनाव और आसान हो गया। क्योंकि कांग्रेस के पास 2012 में कोई नामी चेहरा नहीं था। साल 2012 में सोमेश्वर विधानसभा सीट से एक बार फिर बीजेपी प्रत्याशी अजय टम्टा को शानदार जीत मिली।
असली खेल तो तब शुरू हुआ जब 2014 में लोकसभा चुनाव हुए। क्योंकि यहां बीजेपी के पास कोई उम्मीदवार नहीं था। उसे विधायक अजय टम्टा को ही यहां से एक बार फिर लोकसभा टिकट देना पड़ा। जिसमें मोदी की लहर के साथ अजय टम्टा यहां भी जीत गए। बड़ी बात तो ये थी कि उनके विरुद्ध कांग्रेस के सबसे नामी नेता प्रदीप टम्टा थे। जिन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। वहीं एक बार फिर सोमेश्वर विधानसभा सीट खाली हो गई।
क्योंकि विधायक अजय टम्टा सांसद बन गए, जिसके चलते ये सीट खाली हो गई। इस बार यह खेल और भी रोमांचक हो गया। क्योंकि एक ओर कांग्रेस के नामी नेता प्रदीप टम्टा ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। वहीं बीजेपी में भी कोई नामी चेहरा नहीं था। तो दूसरी ओर बीजेपी प्रत्याशी अजय टम्टा सांसद बन चुके थे। ना कांग्रेस के पास कोई चेहरा था, ना बीजेपी के पास कोई बड़ा चेहरा। आखिर करे तो क्या करें, जिस सीट में टम्टा परिवार का दबदबा हुआ करता था। वह सीट खाली थी। खेल का असली मजा तब शुरू हुआ, जब 2012 की निर्दलीय विधानसभा प्रत्याशी  रेखा आर्या को कांग्रेस से टिकट दिया गया। इसे पहले रेखा बीजेपी की ओर जाती दिखी थी, लेकिन बीजेपी ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया। जिसके बाद रेखा ने कांग्रेस से 2014 का उप विधानसभा लड़ा। जिसमें उन्हें भारी मतों से जीत मिली थी। वहीं बीजेपी ने अपने पुराने कार्यकर्ता मोहन राम आर्या पर विश्वास जताया। जिसमें मोहन राम आर्या जनता का विश्वास नहीं जीत पाए। वहीं एक बार फिर इस सीट को लेकर काफी कयास लगाए गए। जहां एक ओर कांग्रेस प्रत्याशी रेखा आर्या ने कांग्रेस से बगावत कर, बीजेपी शामिल हो गई। जिससे कांग्रेस में टिकट को लेकर चिंता की लहर दौड़ और एक बार फिर राजेंद्र बाराकोटी को बलि का बकरा बनाया गया। वहीं बीजेपी ने रेखा को टिकट देकर बीजेपी के कर्यकर्ताओं में फूट जरूर पाड़ दी। क्योंकि रेखा इससे पहले कांग्रेस से चुनाव लड़ चुकी है। जिससे ये साफ होता है कि रेखा एक दलबदलू या बागी नेता है। वैसे रेखा आर्या सोमेश्वर की रनमन क्षेत्र से है। इससे पहले रेखा आर्या जिला पंचायत सदस्य भी रह चुकी है। जिसके बाद 2012 में रेखा ने सोमेश्वर विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा जिसमें वो हार गई। लेकिन खास बात ये रही कि निर्दलीय चुनाव लड़ने के बाद भी रेखा दूसरे स्थान पर रही। जिससे ये साबित होता है कि रेखा ने लोगों में किस तरह अपनी पहचान बनाई। लेकिन यह एक बड़ा सवाल भी खड़ा करता है। आखिरकार कोई अपनी पहचान इतनी जल्दी कैसे बना सकता है..? वैसे रेखा अपने पति और चुनाव प्रचार में पैसों को लेकर काफी सुर्खियों में रही है। रेखा के पति  गिरधारी लाल उर्फ शाहू यूपी का एक हिस्ट्रीशटर है। जिनके ऊपर कई केस दर्ज हैं। जिसमें एक केस ये भी है कि उन्होंने कई लोगों की जमीन अवैध तरीके से बेची हैं। वैसे रेखा के पति मुरादाबाद के रहने वाले है। वहीं नैनीताल, सोमेश्वर, रुद्रपुर, हल्द्वानी, में करोड़ो की जमीन रेखा के नाम है, साथ ही तीन गाड़िया और एक किलो जेवरात भी है। जो ये बताते है कि आखिर एक सामान्य परिवार की बेटी इतना कैसे कमा सकती है। जो 2012 से पहले कुछ करती ही नहीं थी। बस एक बार जिला पंचायत सदस्य जरुर रही। आखिर सवाल ये उठते है कि एक जिला पंचायत सदस्य या फिर एक विधायक जो ढ़ाई साल रहा हो, वह इतना कहा से कमा लेता है। ये सोचने वाली बात जरूर है। आखिरकार हम भी इस देश के नागरिक है। हमारे पास भी जानने का पूरा अधिकार है। हम भी आजाद है।

                                   संपादक- दीपक कोहली     

       
           







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