ओढ़ निराशा का आँचल जो, क्रंदन को मजबूर हुई ।
विवश उसी भारत माता की, व्यथा सुनाने आयी हूँ ।
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छंद लिखें कितने कवियों ने, अधर, नयन, मुख, गालों पर ।
रुदन नहीं क्यों लिख पाये वो, रिसे पाँव के छालों को ।
मौन हुए भारत के जन भी, निर्धन की निर्धनता पर ।
दुबके रहे घरों के भीतर, झांके नहीं विवशता पर ।
मैं अबोल माँ के जायों की,पीड़ा गाने आयी हूँ ।
विवश उसी भारत माता की, व्यथा सुनाने आयी हूँ ।
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अफरा -तफरी मची हुई है,और अभी हाँ और मिले ।
शानों शौकत, गाड़ी, बंगला, धन दौलत पुरजोर मिले ।
दिन ढलते ही जा मदिरालय, रूप रसों का पान करें ।
घुँघरू,ठुमकों में रम कर वो, यौवन का गुणगान करें ।
असली सूरत उनकी जन-जन, को दिखलाने आयी हूँ ।।
विवश उसी भारत माता की,व्यथा सुनाने आयी हूँ ।
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रिश्वतखोरी, सीनाजोरी, ये सब बातें आम हुई ।
मजहब चला बैर के रस्ते ,अच्छाई नाकाम हुई ।
दुनियां भले चाँद पर पहुँची, शिक्षा ठंडे बस्ते में ।
महँगाई ने रोटी छीनी, रक्त बहा है सस्ते में ।
कितना और अभी सोओगे, जगो जगाने आयी हूँ ।
विवश उसी भारत माता की, व्यथा सुनाने आयी हूँ ।
।। रीना गोयल ।।
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