साहित्य चक्र

24 September 2019

हिन्दी हूं मैं

हिन्दी हूं मैं।
पुनित अक्षर हूं मैं।
शब्द का सौंदर्य हूं मैं।


हिन्दी हूं मैं।
वाक्य की व्यंजना हूं मैं।
भाषा की गरिमा हूं मैं।

हिन्दी हूं मैं।
कर्णों को प्रिय हूं मैं।
सुमधुर संगीत हूं मैं।

हिन्दी हूं मैं।
ज्ञान की गिरा हूं मैं।
अमृत का कलश हूं मैं।

हिन्दी हूं मैं।
तिमिर मिटाती हूं मैं।
प्रकाश फैलाती हूं मैं।

हिन्दी हूं मैं।
शिखर की ऊंचाई हूं मैं।
सागर की गहराई हूं मैं।

हिन्दी हूं मैं।
सौम्य शांत तन्वंगा हूं मैं।
उछलती कूदती रेवा हूं मैं।

हिन्दी हूं मैं।
पापों की नाशिनी हूं मैं।
शिव का अर्धांग हूं मैं।

हिन्दी हूं मैं।
हिन्द को जोड़ती हूं मैं।
अवरोधों को तोड़ती हूं मैं।

हिन्दी हूं मैं।
संस्कृति की प्रतीक हूं मैं।
सभ्यता की मूरत हूं मैं।

हिन्दी हूं मैं।
बहनों में जेठी हूं मैं।
विश्व में व्याप्त हूं मैं।

हिन्दी हूं मैं।
कुंकुम तिलक हूं मैं।
विजय केतन हूं मैं।

हिन्दी हूं मैं।
मां भारती का मुकुट हूं मैं।
तेजोमयी धारा हूं मैं।

हिन्दी हूं मैं।
भारतवर्ष की गौरवमयी गाथा हूं मैं।
गौरवमयी गाथा हूं मैं।
गौरवमयी गाथा हूं मैं।

                                                  समीर उपाध्याय


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