साहित्य चक्र

03 September 2019

पहली दफा जब हुई रूबरू

 गुजरे  लम्हें


याद हैं तुम्हे वो दिन ,
देख के नजरअंदाज करती थी।
पलकों की छाव से तुम्हें ,
छुप छुप के निहारा करती थी।


गलती से जब तेरा हाथ ,
मेरे हाथ से छू गया था ।
एक अनोखा सा एहसास ,
धड़कनों को बढ़ा गया था।


पहली दफा जब हुई रूबरू,
नजरो से नजरे टकराई थी ।
अजीब सा सन्नाटा था पसरा,
खुश्बू सी मन में समायी थी।


सैकड़ो सवाल थे जुबा पर,
लबो पर खामोशी सी छायी थी।
कही बुरा ना लग जाय कुछ ,
हर ख्वाहिश मन में दबाई थी।


किसी ना किसी बहाने से ,
रोज पास चक्कर लगाती थी।
समझते थे शायद तुम भी ,
आँखे तेरी भी इंतजार बया करती थी।


कुछ मुलाकाते अधूरी सी,
कुछ मुकम्मल हुई पूरी सी।
आज भी जब याद आ जाती है ,
चेहरे पर एक हँसी सी छा जाती हैं।


                                                  शशि कुशवाहा

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