साहित्य चक्र

26 June 2024

पढ़िए आठ कविताएँ एक साथ...





मेघा गरजो और
ज़ोर से बरसो न ।
मेघा गरजो और
ज़ोर से बरसो न।
भिगा दो तन मन।
उन्हें बुलाओ न।
इन बूंदों में भीगु,
मगन मतवाला मैं।
गीत मधुर सा कोई
तुम भी गाओ न 
सखी आंखों में आँसू
क्यों लाती है ।
आयेंगे सजना दिल 
से बुलाओ न।
आंगन मेरा प्यारा 
प्यारा राह तके है,
आओ सखी साथ 
मेरे इसे सजाओ न।
दस्तक सावन की 
आग लगाए कैसी।
सखियां आने वाली 
तुम भी आजाओ न।
मुस्कानों को बांटों 
तुम भी आजाओ न।
खुशी मनाओ, संवरो 
और मुस्काओ न ।
बचपन प्यारा न्यारा 
न्यारा याद करो तुम।
सद्भावना के दीप 
सखियों जलाओ न।
आसमानों को किसने
छुआबोल  सखी री।
दो पल ही सजन तुम
अपने दे आजाओ न।
दिल के तारों पर आहट 
कैसी सावन की ।
दिल की धड़कन क्या 
बोले बतलाओ न।
दिल पागल सा गुम 
सुम रहने लगा क्यों ।
आभी जाओ  इसको
कुछ समझाओ  न।
बरगद बूढ़ा, पगडण्डी
भी सुनी सुनी सी।
पेड़ों पर जो  नाम 
लिखे थे  पढ़ जाओ न।
मैं सीधा साधा सा
 एक  मासूम परिंदा,
ज़ुल्फ़ों में अपनी ऐसे 
तो उलझाओ न।
परदेशी परदेशी गीत 
सुहाना कहां लगे है।
दर्द बढ़ा है हद से लौट 
के वापस आओं न।
तुम भूले हो मुझको
मैं भूला दूँ  कैसे तुमको।
हिकमत है कोई तो 
मुश्ताक़  हमें बताओ न।

                                            - डॉ .मुश्ताक़ अहमद शाह


*****

 रोशनी

अपना सूरज खुद बन जाओ।
अपने मन-मंदिर में रोशनी,
फैलाते चलो दिव्य रोशनी,
जगमग करते चलो।

अपने कर्म श्रेष्ठ करते चलो।
मन सुंदर स्वच्छ बनाओ।
फिर स्वत: ही मन उजाला,
ही उजाला फैला जाएगा।

सेवा भाव रख कर श्रेष्ठ,
कर्म करते चलो जिससे,
दूसरों के जीवन को सुमन,
सा महका कर खुशबू फैला दें।


                                          - संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया 


*****


सब पैसों का खेल

मन में तेरे मैल भरा, कर ले इसको साफ
कुर्सी पर भी बैठ कर, नहीं होगा इंसाफ।

कैसा समय अब आ गया कैसा हुआ व्यवहार
भूल जाता मां बहन को सुंदर दिखी जो नार।

नर और पशु समान है रिश्तों को जाए जो भूल
संस्कार भी भूल गए अब रहे न कोई उसूल।

दिन रात जो करते थे मन से डट कर काम
फ्री की आदत पड़ गई अब करते हैं आराम।

संस्कार सब भूल गए भूले इज़्ज़त मान
भीड़ बहुत हो गई शहर में गांव पड़े वीरान।

बड़े बुजुर्गों माता पिता का रहा न इज़्ज़त मान
ऐसी शिक्षा और संस्कार नहीं किसी के काम।

सत्ता के पीछे फिरें करते सब गुणगान
सत्ता के जाने के बाद बनते सब अनजान।

दिल में बेईमानी भरी कपट भरा है मन
काला मन है छुपा हुआ बाहर उजला तन।

कपड़े उजले पहन लिए मन से गई न मैल
रिश्ते नाते सब भूल गया पैसे का है खेल

                                                                - रवींद्र कुमार शर्मा

*****


दोस्ती


दोस्ती का एक
नया रिश्ता बनाएँगे।
महबूब से ज्यादा
आपको चाहेगे।
जिस्मों के बाजार में
आपकी रूह से
रिश्ता बनाएँगे।
रूठ गया
अगर वक्त तो
उसको भी
आपके लिए मनाएगे।
छोड़ जाएगा जब
आपके अपने
तो भी हम
दिल से रिश्ता निभाएगे।

                                                       - डॉ.राजीव डोगरा


*****


बहुत किया मनचाहा तूने,
अब है तेरी बारी।
जीवो को मारा है तूने,
तुझे पड़ेगा भारी।
तुझे झेलनी होगी मौसम,
की ये मारा मारी।
पेड़ों को काटा है तूने,
तपी धरा है सारी।।

गर्मी का तांडव झेलेगा,
ये कर्मों की भरनी।
क्यों हाहाकार मचाया है,
ये है तेरी करनी।
अभी तो शुरूआत हुई है,
तुझे बहुत है सहना।
मान भूल को अपनी मानुष,
नहीं पड़े फिर कहना।

                                                 - सीमा रंगा इन्द्रा

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सच्चा प्यार

सच्चा प्यार क्या होता है, 
ये कोई तुमसे पूछे, 
निस्वार्थ भाव से प्यार करते हो, 
कोई तमन्ना नहीं है तुम्हारी, 
बहुत प्यार करते हो तुम, 
दिल की गहराई में उतर कर देखो, 
प्यार बहुत अनमोल होता है, 
तुम बहुत अच्छे लगने लगे हो, 
तुम्हारी हर हरकत मन को गुदगुदाती है,
तुम्हारे साथ बिताया हर पल बहुत याद आता है, 
प्यार का अह्सास बहुत खूबसूरत होता है, 
मेरी चाहत तेरे लिए है, 
मेरी सासें तुम्हारे लिए है, 
मेरी हर धड़कन पर तेरा नाम लिखा है, 
प्यार भगवान की इबादत है, 
प्यार निस्वार्थ होता है, 
सच्चा प्यार बड़े नसीब से मिलता है।

                                                            - गरिमा लखनवी


*****


कितने में बिका तू
जरा अपना दाम बताना,
अब तेरा वजूद मिटा
फिर कैसा शर्माना,

बस मुल्यों का फर्क रहता
कोई चाय की कुल्हड़ में
कोई मयखाने में
कोई चंद नोटों में
कोई बड़े पैमाने पर,

हाँ हर कोई बिकता हैं
कहीं मीठे शब्दों के मोल, 
कहीं बातें बड़ी झोल
कहीं दुनियां ही गोल, 

हर कोई बिकने-बेचने वाला
फिर तू ईमान की दुहाई
देते फिर रहा हैं,
ईमानदारी की भीड़ में
बहरूपिया बनकर सब
अपनी नजरों से गिर रहा हैंl 

                                                               - अभिषेक राज शर्मा 


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नाना जी सूरज

चंदा मामा हम बच्चों के
सूरज नाना जी कहलाते
रात सुहानी मामा करते
दिन में नाना हमें सताते ।
आयेगी छुट्टी जब अपनी 
खेलेंगे हम बाहर जाकर
जब सब आते बाहर बच्चे
नाना डराते आंख दिखाकर।
नाना सदा नवासों पर
प्यार अकूत बरसाते आये
ये कैसे नाना जी 'सूरज'
नवासों पर रोव जमाये ।
अब है छुट्टी हम खेलेंगे
नाना तुम्हें समझना होगा
हम बच्चों की प्रार्थना तुमसे
मंद मंद अब जलना होगा।
गुस्सा न करो तपो ना इतना
नानाजी तुम्हें पाप लगेगा
हम सब बच्चे कहते तुमसे
सुन लोगे तो अच्छा लगेगा।
    
                                             - व्यग्र पाण्डे

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